शिरोमणि अकाली दल के दोहरे संविधान के आरोप में पंजाब की होशियारपुर अदालत में लंबित कथित जालसाज़ी और धोखाधड़ी के मामले में लंबित कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है. यह याचिका सुखबीर सिंह बादल, प्रकाश सिंह बादल और दलजीत सिंह चीमा की ओर से दायर की गई है. याचिका में होशियारपुर की अदालत की कार्यवाही को चुनौती दी गई है. जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ ने होशियारपुर निवासी बलवंत सिंह खेड़ा द्वारा दायर शिकायत के आधार पर लंबित मामले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा है.
धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के विपरीत नहीं है: याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया है कि धार्मिक होना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के विपरीत नहीं है और केवल इसलिए कि एक राजनीतिक संगठन गुरुद्वारा समिति के लिए चुनाव लड़ रहा है इसका मतलब यह नहीं है कि यह धर्मनिरपेक्ष नहीं है. ईसीआई और जीईसी के समक्ष दायर पार्टी के संविधान पर जालसाजी और धोखाधड़ी के आरोपों के आपराधिक मामले का कोई आधार नहीं था. पीठ ने कहा कि ये मामला जालसाजी या धोखाधड़ी का कैसे बनता है? शिरोमणि अकाली दल एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है या नहीं, यह एक ऐसा मुद्दा था जिस पर वर्तमान कार्यवाही में विचार नहीं किया जा सकता था और इसे केवल भारत के चुनाव आयोग जैसे उपयुक्त अधिकारियों द्वारा चुनौती दी जा सकती थी.
झूठा शपथपत्र प्रस्तुत करने का है आरोप
नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और अन्य के खिलाफ जालसाजी के एक मामले में निचली अदालत में सुनवाई पर रोक लगा दी थी. आरोप है कि उनकी पार्टी ने भारत निर्वाचन आयोग से मान्यता प्राप्त करने के लिए एक झूठा शपथपत्र प्रस्तुत किया था. पीठ ने शिकायतकर्ता को आपराधिक मामले के खिलाफ आवेदनों को खारिज करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 27 अगस्त, 2021 को बादल और अन्य द्वारा अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट होशियारपुर के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था.
सामाजिक कार्यकर्ता बलवंत सिंह खेड़ा ने दर्ज करवाई थी शिकायत
सामाजिक कार्यकर्ता बलवंत सिंह खेड़ा ने प्रकाश सिंह बादल और दलजीत सिंह चीमा के खिलाफ 2009 में दर्ज कराई गई शिकायत में आरोप लगाया था कि शिरोमणी अकाली दल में दो संविधान है. एक जो गुरुद्वारा चुनाव आयोग में जमा किया गया और दूसरा वह जो राजनीतिक दल के तौर पर मान्यता के लिए भारत निर्वाचन आयोग में दिया गया है. उन्होंने आरोप लगाया था कि शिरोमणी अकाली दल ने चुनाव आयोग को झूठा शपथ-पत्र दिया था कि उसने समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को शामिल करने के लिए अपने संविधान में संशोधन किया था. जबकि उसने एक 'पंथिक' पार्टी के रूप में अपनी गतिविधियों को जारी रखा और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) चुनाव में भाग लिया.
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