
- SC में एक याचिका में मौत की सजा के तरीके को बदलने की अपील की गई है लेकिन केंद्र इसे बदलने के लिए राजी नहीं है.
- इस पर SC ने नाराजगी जाहिर करते हुए मौखिक रूप से कहा कि “समस्या यह है कि सरकार बदलने को तैयार नहीं है.”
- दोषी को फांसी या जहर में से चुनने का विकल्प देने का सुझाव, पर केंद्र ने इसे ‘व्यावहारिक रूप से संभव नहीं’ कहा.
देश के सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मृत्युदंड की सजा के तरीके को बदलने की अपील की गई है लेकिन केंद्र सरकार इसे बदलने के लिए तैयार नहीं है. सुनवाई के दौरान यह सुझाव दिया गया कि दोषी को फांसी या जहर का इंजेक्शन में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया जा सकता है. हालांकि, केंद्र के हलफनामे दायर कर कहा गया कि ऐसा करना ‘व्यावहारिक रूप से संभव नहीं' है. इस पर अदालत ने नाराजगी जताई और कहा कि केंद्र समय के साथ विकसित होने को तैयार नहीं दिख रहा है.
केंद्र की ओर से वरिष्ठ वकील सोनिया माथुर ने दलील दी कि यह मामला नीतिगत निर्णय से जुड़ा है.
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को इस याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने मौखिक रूप से कहा कि “समस्या यह है कि सरकार बदलने को तैयार नहीं है.”
उन्होंने कहा कि “यह बहुत पुरानी प्रक्रिया है, समय के साथ चीज़ें बदल गई हैं.”
याचिका में क्या मांग की गई?
इस याचिका में मांग की गई है कि फांसी की जगह मौत की सजा जहर का इंजेक्शन, शूटिंग, इलेक्ट्रोक्यूशन या गैस चैंबर से दी जा सकती है, इन तरीकों से सजायाफ्ता की मौत कुछ ही मिनटों में हो जाती है. यह जनहित याचिका वकील ऋषि मल्होत्रा ने दायर की है. इसमें फांसी को अत्यधिक पीड़ादायक, अमानवीय और क्रूर बताया गया है.
याचिकाकर्ता ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 354(5) के तहत ‘फांसी देकर मृत्युदंड देने' को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है. साथ ही, यह भी कहा गया है कि सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त होना चाहिए.
याचिकाकर्ता के अनुसार, फांसी की प्रक्रिया में दोषी की मृत्यु घोषित करने में लगभग 40 मिनट लगते हैं, जबकि शूटिंग या जहर के इंजेक्शन के जरिए यह प्रक्रिया 5 मिनट में पूरी हो जाती है.
याचिका में संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव का भी हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि जहां मृत्युदंड दिया जाता है, वहां उसे यथासंभव कम पीड़ा पहुंचाने वाले तरीके से लागू किया जाना चाहिए.
अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी.
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