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This Article is From Dec 20, 2022

केंद्र सरकार को जजों की नियुक्ति का जिम्मा देना 'आपदा' होगी: कपिल सिब्बल

कपिल सिब्बल ने दावा किया कि अदालतें सांसदों की तुलना में अधिक मेहनत करती हैं. सिब्बल ने कहा कि पिछले एक साल में जनवरी से दिसंबर तक संसद ने 57 दिन काम किया है. जबकि अदालत साल में 260 दिन काम करती है."

कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा ज्वॉइन किया था और अब सपा से राज्यसभा सांसद हैं.

नई दिल्ली:

सीनियर वकील और समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने केंद्र सरकार पर "स्वतंत्रता के अंतिम गढ़" न्यायपालिका (Judiciary) को अपने हाथ में लेने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि अदालतें इसके खिलाफ दृढ़ता से खड़ी रहेंगी. जजों की नियुक्ति को लेकर जारी खींचतान और केंद्र के साथ तनाव पर कपिल सिब्बल ने यह साफ कर दिया कि वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली में अपनी कमियां हैं, लेकिन सरकार को इसमें पूर्ण स्वतंत्रता देना उपयुक्त तरीका नहीं है.

एनडीटीवी को दिए एक खास इंटरव्यू में पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार जजों की नियुक्ति पर "अंतिम निर्णय" लेना चाहती है और ऐसा हुआ तो ये "आपदा" होगी.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री किरेन रिजिजू की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर सिब्बल ने कहा कि वे किसी अन्य मुद्दे पर चुप नहीं रहे हैं वे इस पर चुप क्यों रहेंगे? "उन्होंने कहा, "न्यायपालिका स्वतंत्रता का अंतिम गढ़ है, जिसे उन्होंने (सरकार) अभी तक कब्जा नहीं किया है. उन्होंने चुनाव आयोग से लेकर राज्यपालों के पद तक, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से लेकर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और सीबीआई (केंद्रीय ब्यूरो) तक अन्य सभी संस्थानों पर कब्जा कर लिया है. जांच विभाग, एनआईए और निश्चित रूप से मीडिया पर भी कब्जा हो गया है." 

सिब्बल ने कानून मंत्री की इस टिप्पणी को 'पूरी तरह से अनुचित' करार दिया कि अदालतें 'बहुत अधिक छुट्टियां' लेती हैं. सिब्बल ने तंज कसते हुए कहां, 'कानून मंत्री प्रैक्टिसिंग एडवोकेट नहीं हैं. एक जज याचिकाओं की सुनवाई करने, अगले दिन की सुनवाई की पृष्ठभूमि को पढ़ने और निर्णय लिखने में 10 से 12 घंटे का समय बिताता है. उनकी छुट्टियां स्पिलओवर को संभालने में बीतती हैं.' 

उन्होंने दावा किया कि अदालतें सांसदों की तुलना में अधिक मेहनत करती हैं. सिब्बल ने कहा कि पिछले एक साल में जनवरी से दिसंबर तक संसद ने 57 दिन काम किया है. जबकि अदालत साल में 260 दिन काम करती है."

बता दें कि इस महीने की शुरुआत में उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा में अपने पहले संबोधन में NJAC यानी न्यायिक नियुक्तियों पर रद्द किए गए कानून का मुद्दा उठाया था. उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय पर “संसदीय संप्रभुता” से समझौता करने और “लोगों के जनादेश” की अनदेखी करने का आरोप लगाया था.


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