सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो की दो याचिकाओं में से एक को खारिज़ कर दिया है. इस याचिका में बिलकिस बानो ने 2002 की गुजरात सांप्रदायिक हिंसा (Gujarat Riots) के दौरान उनके साथ बलात्कार करने और उनके परिवार के कई सदस्यों की हत्या करने वाले 11 दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा मई 2022 के दिए आदेश की समीक्षा करने की मांग की गई थी. इस आदेश में गुजरात सरकार को दोषियों की रिहाई याचिका पर विचार करने के लिए कहा गया था. हालांकि, बिलकिस की दूसरी याचिका, जो दोषियों की रिहाई के आधार को चुनौती देती है, इस फैसले से तुरंत प्रभावित नहीं होगी.
आजीवन कारावास की सजा काट रहे बिलकिस के 11 दोषियों को 15 अगस्त को जेल से रिहा कर दिया गया था. समय से पहले रिहा करने के लिए "अच्छे व्यवहार" को आधार बनाया गया था. 1992 की नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार ने इस पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से मंजूरी ली थी. हालांकि, नवीनतम नीति कहती है कि गैंगरेप और हत्या के दोषियों की जल्दी रिहाई नहीं की जा सकती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क से सहमति जताई थी कि 1992 की नीति में ऐसी कोई बाध्यता नहीं थी. इसलिए इनकी रिहाई हो सकती है.
1992 की नीति तकनीकी रूप से 2008 में प्रभावी थी. 2008 में बिलकिस के 11 गुनहगारों को दोषी ठहराया गया था. जेल में लगभग 15 साल बिताने के बाद, 11 दोषियों में से एक ने आजीवन कारावास की नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के लिए अदालत चला गया. यह विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मई में गुजरात सरकार से कहा कि इन गुनहगारों की याचिका पर विचार किया जाना चाहिए. इसके बाद, तीन महीने से भी कम समय में सभी दोषी मुक्त हो गए.
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