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'सोना हर दौर में सुरक्षा कवच', वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के सचिन जैन बोले- भारतीय गृहिणियां दुनिया की सबसे स्मार्ट निवेशक

एनडीटीवी वर्ल्ड समिट 2025 में सचिन जैन का यह संबोधन उस समय आया जब वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितताओं से गुजर रही है- ब्याज दरों से लेकर तेल की कीमतों और मुद्रा मूल्यों तक में भारी उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है.

'सोना हर दौर में सुरक्षा कवच', वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के सचिन जैन बोले- भारतीय गृहिणियां दुनिया की सबसे स्मार्ट निवेशक
  • वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के रिजनल सीईओ सचिन जैन ने सोने को सबसे सुरक्षित निवेश और टाइमलेस हेज बताया
  • बोले- भारत में सोना केवल निवेश नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतीक होने के कारण महत्वपूर्ण स्थान रखता है
  • बताया कि सोना वित्तीय संकट, महामारी और भू-राजनीतिक तनाव के दौरान निवेशकों के पोर्टफोलियो में स्थिरता लाता है
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एनडीटीवी वर्ल्ड समिट 2025 (NDTV World Summit) के मंच पर वर्ल्‍ड गोल्‍ड काउंसिल के रिजनल सीईओ सचिन जैन ने गोल्‍ड की 'गोल्‍डी स्‍टोरी' सुनाई. उन्‍होंने बताया कि आखिर क्‍यों गोल्‍ड सेफ हेवेन यानी सबसे सुरक्षित निवेश बना हुआ है. गोल्‍ड को सेफ हेवेन बताते हुए उन्‍होंने कहा कि इस साल अब तक गोल्‍ड के दाम 54 फीसदी तक बढ़ गए हैं. जैन ने भारतीय गृहिणियों (Indian Houswife) को दुनिया का सबसे स्‍मार्ट इन्‍वेस्‍टर बताया. कहा, 'भारतीय गृहिणियों से ज्‍यादा स्‍मार्ट इन्‍वेस्‍टर दुनिया में और कोई नहीं. वो थोड़ा-थोड़ा ही सही, गोल्‍ड में निवेश करती और करवाती रहती हैं.' 

'सोना हर दौर में सुरक्षा कवच'

एनडीटीवी वर्ल्ड समिट 2025 (NDTV World Summit) के दूसरे सत्र में वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के रिजनल सीईओ सचिन जैन ने कहा कि सोना सिर्फ एक 'स्लीपी एसेट क्लास' नहीं है, बल्कि समय के हर उतार-चढ़ाव में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाला निवेश साधन है. उन्होंने गोल्‍ड को 'टाइमलेस हेज' बताया. कहा कि सोना हर दौर में निवेशकों के लिए एक भरोसेमंद 'हेज' यानी सुरक्षा कवच साबित हुआ है.

हम वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल में सोने के एक्‍सपर्ट हैं. सोना, जो सदियों से एक ऐसी एसेट क्लास रहा है, जिसने समय के हर बदलाव में स्थिरता दिखाई है. इसे  टाइमलेस हेज' कहा जा सकता है क्योंकि यह बाजार के अनिश्चित माहौल में भी मजबूती बनाए रखता है.

सचिन जैन

रिजनल सीईओ, वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल

कहां कितनी सोने का इस्‍तेमाल?

सचिन जैन ने बताया कि मौजूदा समय में सोने का उपयोग अलग-अलग रूपों में हो रहा है. उन्‍होंने कहा, 'करीब 74% वार्षिक सोने की खपत विकासशील बाजारों जैसे चीन, भारत और मिडिल ईस्ट से आती है. वहीं करीब 20% खपत सेंट्रल बैंकों और उन देशों से होती है जो अपनी आर्थिक ताकत बढ़ा रहे हैं. करीब 33% सोने की खपत आभूषणों में होती है, जबकि 7% सोना तकनीकी क्षेत्र में इस्तेमाल होता है.'  

भारत की सामाजिक बुनावट में शामिल है सोना

सचिन जैन ने कहा कि भारत में सोना सिर्फ निवेश नहीं, बल्कि एक परंपरा और सामाजिक प्रतीक है. उन्होंने कहा, 'भारत में सोना हमारी सामाजिक बुनावट का हिस्सा है. चाहे कोई भी आर्थिक या भौगोलिक वर्ग हो, हर कोई किसी न किसी रूप में सोने का उपभोग करता है. यह केवल आर्थिक संपत्ति नहीं, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक मूल्य से भी जुड़ा है.'

भारत में सोना प्राचीन साम्राज्यों, खजानों और मंदिरों में भी शक्ति और समृद्धि का प्रतीक रहा है. हमने सोने की कहानियां न केवल तिजोरियों में, बल्कि लोककथाओं और परंपराओं में भी देखी हैं. हम सोने को केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि आने वाले कल की स्थिरता का आधार मानते हैं. 

सचिन जैन

रिजनल सीईओ, वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल

'स्लीपी एसेट' नहीं, बल्कि 'परफॉर्मिंग एसेट'

सचिन जैन ने यह भी स्पष्ट किया कि सोने को अब केवल 'पारंपरिक या निष्क्रिय निवेश' की तरह देखने का समय खत्म हो चुका है. उन्‍होंने कहा, 'सोना वह एसेट क्लास है जिसने हर अस्थिर माहौल में अपने मूल्य को साबित किया है -चाहे वह वित्तीय संकट का दौर हो, महामारी का समय हो या भू-राजनीतिक तनाव. यह निवेशकों के पोर्टफोलियो में स्थिरता लाने वाला 'एंकर' बन चुका है.'

बदलते जियो-पॉलिटिकल हालात में सोने की भूमिका  

जैन ने आगे कहा कि जब दुनिया में भू-राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं और देश अपनी रणनीतियों को नए सिरे से गढ़ रहे हैं, तब सोना एक 'फंडामेंटल ग्रोथ ड्राइवर' के रूप में उभर रहा है. उन्होंने कहा, 'आज देश अलग-अलग तरह से व्यवहार कर रहे हैं, उनकी प्राथमिकताएं बदल रही हैं. आने वाले वर्षों में सोना इस वैश्विक आर्थिक बदलाव की बुनियाद बनेगा.'

एनडीटीवी वर्ल्ड समिट 2025 में सचिन जैन का यह संबोधन उस समय आया जब वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितताओं से गुजर रही है -ब्याज दरों से लेकर तेल की कीमतों और मुद्रा मूल्यों तक में भारी उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है. जैन ने साफ संदेश दिया, 'सोना न सिर्फ एक पुरानी परंपरा है, बल्कि भविष्य की आर्थिक सुरक्षा का भी स्तंभ है.' 

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