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फूल जल्दी खिल गए, परिंदे भी हैरान... फरवरी में ही अप्रैल जैसी गर्मी, कहां खो गया बसंत?

जनवरी में देश का औसत तापमान 18.98 डिग्री सेल्सियस रहा, जो 1901 के बाद से इस महीने का तीसरा सबसे अधिक तापमान था, जो 1958 और 1990 के बाद सबसे अधिक था. इससे पहले, आईएमडी ने पूर्वानुमान जताया था कि जनवरी से मार्च के बीच उत्तर भारत में वर्षा सामान्य से कम होगी.

फूल जल्दी खिल गए, परिंदे भी हैरान... फरवरी में ही अप्रैल जैसी गर्मी,  कहां खो गया बसंत?
दिल्ली में 2019 के बाद सबसे गर्म जनवरी दर्ज की गई.
नई दिल्ली:

मौसम ने एकदम से ऐसी करवट ली है कि लोगों को जनवरी में ही गर्मी का अहसास होने लगा है. फरवरी महीने में ठंड गायब हो रही है और लोगों को अप्रैल वाली गर्मी महसूस हो रही है. मौसम में आया ये बदलाव पक्षियों के लिए भी परेशानी बन गया है. उत्तराखंड में सर्दी के मौसम में जहां पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती थी वो अब शांत हो गई है. बढ़ते तापमान के कारण प्रवासी पक्षी समय से पहले पलायन कर रह हैं. ये पक्षी आमतौर पर नवंबर में यूरोप और मध्य एशिया से यहां आते हैं और मार्च तक रहते हैं, लेकिन इस बार फरवरी की शुरुआत में अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है, जो कि इस समय न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है.

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उत्तराखंड में क्यों बदल रहा मौसम

उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन का ऐसा असर हो रहा है कि बारिश और बर्फबारी ना के बराबर हो रही है. उत्तराखंड में अब तक 80 फीसदी कम बारिश रिकॉर्ड हुई है. वैज्ञानिक इसके पीछे मौसमी चक्र में बदलाव और ग्लोबलवार्मिंग को वजह मानते है. वैज्ञानिकों के मुताबिक-जंगलों में आग लगने, पेड़ों का कटान, बड़े निर्माण और पहाड़ों पर वाहनों की संख्या ज्यादा होने की वजह से मौसमी चक्र में बदलाव आ गया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि बारिश का बेहद कम होना चिंताजनक है, जो आने वाले समय के लिए एक बड़ा खतरा दर्शा रहे हैं.

जलवायु परिवर्तन का असर मौसम पर पड़ रहा है, जिसके कारण गर्मी समय से पहले ही दस्तक दे रही है. मौसम वैज्ञानिकों ने जनवरी माह के सामान्य से अधिक गर्म होने का कारण मजबूत पश्चिमी विक्षोभ की अनुपस्थिति को बताया है, जो आमतौर पर बारिश लाता है और तापमान को कम करता है. जनवरी में गर्म और शुष्क मौसम के बाद फरवरी में भारत के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक तापमान और सामान्य से कम बारिश होने की आशंका है.

जनवरी में देश का औसत तापमान 18.98 डिग्री सेल्सियस रहा, जो 1901 के बाद से इस महीने का तीसरा सबसे अधिक तापमान था, जो 1958 और 1990 के बाद सबसे अधिक था. इससे पहले, आईएमडी ने पूर्वानुमान जताया था कि जनवरी से मार्च के बीच उत्तर भारत में वर्षा सामान्य से कम होगी.

मौसम विभाग ने बताया कि उत्तर-पश्चिम और प्रायद्वीपीय भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रों में फरवरी में न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहने का पूर्वानुमान है. आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने बताया कि इसी तरह पश्चिम-मध्य और प्रायद्वीपीय भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रों में अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक रहने की संभावना है. उन्होंने बताया कि भारत में जनवरी में औसतन 4.5 मिलीमीटर (मिमी) बारिश हुई, जो 1901 के बाद से चौथी बार और 2001 के बाद तीसरी बार सबसे कम बारिश दर्ज की गई.

फसलों पर भी पड़ेगा असर

रॉयटर्स ने सूत्रों के आधार पर एक खबर छापी है कि भारत में फरवरी में औसत से अधिक तापमान रहने की संभावना है.  ऐसा होने से गेहूं और रेपसीड उगाने वाले प्रमुख राज्यों में कुछ दिनों में अधिकतम तापमान औसत से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहने की संभावना है. जिससे फसलों को नुकसान पहुंच सकता है.

आईएमडी के एक अन्य अधिकारी के अनुसार "फरवरी के कुछ दिनों में कुछ राज्यों में अधिकतम तापमान औसत से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो सकता है. उसके बाद देश के उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में दिन के तापमान में तेज वृद्धि देखी जा सकती है."

बता दें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सर्दियों (अक्टूबर से दिसंबर) में गेहूं, मटर, चना और जौ जैसी रबी फसलों की खेती होती है और गर्मियों (अप्रैल से जून) में उनकी कटाई की जाती है. मुख्य रूप से पश्चिमी विक्षोभ के कारण सर्दियों में होने वाली वर्षा इन फसलों की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन मौसम में बदलाव फसलों को नुकसान पहुंचाता है. गर्म और बेमौसम के कारण फसलों के उत्पादन में कमी आती है.

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