भारतीय सेना की कुमाऊ रेजीमेंट के जवान वाशिंगटन स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे की एक बिल्डिंग में धावा बोल रहे हैं। छिपते, इधर-उधर देखते, दौड़ते, फायरिंग करते और अपने रेडियो सेट पर बात करते हुए जवान आगे बढ़ रहे हैं - पढ़ने पर यह दृश्य किसी हॉलीवुड मूवी का दृश्य लग सकता है, लेकिन वास्तव में यह आतंकी हमले की स्थिति में की जाने वाली सैन्य कार्रवाई की ट्रेनिंग है।
यह संयुक्त प्रशिक्षण भारतीय और अमेरिकी सेना द्वारा आयोजित किए जाने वाले वार्षिक युद्ध अभ्यास कार्यक्रम का एक हिस्सा था, जो दोनों देशों में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है।
भारतीय सैनिकों के हेलमेट और राइफल में लेजर सेंसर लगे हुए थे और उन्होंने डमी और वास्तविक सैनिक रूपी अपने लक्ष्य पर खाली फायर किए। इसके बावजूद हरेक शॉट पर नजर रखी जा रही थी, ताकि सैनिकों और कमांडरों को उसी समय पता चल जाए कि लक्ष्य पर निशाना लगा है या नहीं।
दो सप्ताह लंबा अभ्यास जो सोमवार को समाप्त हुआ है, उसमें संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियान और आतंकी हमलों से निपटने संबंधी फील्ड ट्रेनिंग की हुबहू नकल शामिल थी।
यदि इसे समेकित रूप से कहा जाए, तो संयुक्त कार्रवाई का अभ्यास किया गया। इसका उद्देश्य यह परखना था कि विद्रोह जैसे बड़े मामलों, नागरिक सहायता, बंधक बनाए जाने की परिस्थितियों या आतंकी हमलों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई के समय विश्व के दो देशों की सेनाओं के सैनिक मिलकर कैसे कार्य करेंगे।
भाषा है चुनौती
भारतीय और अमेरिकी सेनाओं के मामले में भाषा संबंधी बैरियर से पार पाना सबसे बड़ी चुनौती होता है। ज्यादातर भारतीय जवानों को धाराप्रवाह इंग्लिश नहीं आती, यहां तक कि बोलने की स्टाइल में भिन्नता के कारण दोनों ओर के अधिकारियों के बीच भी संवाद कठिन हो जाता है। विषम परिस्थितियों में हाथ से सिग्नल देना और मिशन शुरू करने से पहले उद्देश्य स्पष्ट करना ये सब वह चीजें हैं जिनसे अमेरिकी और भारतीय सेनाओं को साथ-साथ निपटना होता है।
यह संयुक्त प्रशिक्षण भारतीय और अमेरिकी सेना द्वारा आयोजित किए जाने वाले वार्षिक युद्ध अभ्यास कार्यक्रम का एक हिस्सा था, जो दोनों देशों में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है।
भारतीय सैनिकों के हेलमेट और राइफल में लेजर सेंसर लगे हुए थे और उन्होंने डमी और वास्तविक सैनिक रूपी अपने लक्ष्य पर खाली फायर किए। इसके बावजूद हरेक शॉट पर नजर रखी जा रही थी, ताकि सैनिकों और कमांडरों को उसी समय पता चल जाए कि लक्ष्य पर निशाना लगा है या नहीं।
दो सप्ताह लंबा अभ्यास जो सोमवार को समाप्त हुआ है, उसमें संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियान और आतंकी हमलों से निपटने संबंधी फील्ड ट्रेनिंग की हुबहू नकल शामिल थी।
यदि इसे समेकित रूप से कहा जाए, तो संयुक्त कार्रवाई का अभ्यास किया गया। इसका उद्देश्य यह परखना था कि विद्रोह जैसे बड़े मामलों, नागरिक सहायता, बंधक बनाए जाने की परिस्थितियों या आतंकी हमलों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई के समय विश्व के दो देशों की सेनाओं के सैनिक मिलकर कैसे कार्य करेंगे।
भाषा है चुनौती
भारतीय और अमेरिकी सेनाओं के मामले में भाषा संबंधी बैरियर से पार पाना सबसे बड़ी चुनौती होता है। ज्यादातर भारतीय जवानों को धाराप्रवाह इंग्लिश नहीं आती, यहां तक कि बोलने की स्टाइल में भिन्नता के कारण दोनों ओर के अधिकारियों के बीच भी संवाद कठिन हो जाता है। विषम परिस्थितियों में हाथ से सिग्नल देना और मिशन शुरू करने से पहले उद्देश्य स्पष्ट करना ये सब वह चीजें हैं जिनसे अमेरिकी और भारतीय सेनाओं को साथ-साथ निपटना होता है।
सभी फोटो Facebook से साभार.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
कुमाऊ रेजीमेंट, भारतीय सेना, युद्ध अभ्यास, भारत-अमेरिका युद्ध अभ्यास, अमेरिकी सेना, Kumaon Regiment, Indian Army, Yudh Abhyas, India-america Yudh Abhyas, American Army