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डायबिटीज कंट्रोल नहीं, डायबिटीज रिवर्सल पर ध्यान देने की जरूरत, हर्बल उत्पादों की बढ़ी मांग

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस दौरान प्रदर्शनी का दौरा किया और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में भारत के हर्बल औषधि क्षेत्र की बढ़ती क्षमता पर जोर दिया.

डायबिटीज कंट्रोल नहीं, डायबिटीज रिवर्सल पर ध्यान देने की जरूरत, हर्बल उत्पादों की बढ़ी मांग
लखनऊ:

लखनऊ में आयोजित सीएसआईआर स्टार्टअप सम्मेलन में पारंपरिक औषधियों और आधुनिक विज्ञान के संयुक्त प्रयासों के तहत किफायती व वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी उत्पाद प्रदर्शित किए गए. उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे आयोजन हर्बल स्वास्थ्य देखभाल के मामले में वैश्विक केंद्र बनने के भारत के प्रयासों को गति प्रदान करने में सहायक हैं. डायबिटीज कंट्रोल नहीं, बल्कि डायबिटीज रिवर्सल के लिए भी हर्बल उत्पादों की अहम भूमिका है.

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस दौरान प्रदर्शनी का दौरा किया और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में भारत के हर्बल औषधि क्षेत्र की बढ़ती क्षमता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह पहल नवाचार के ‘प्रयोगशाला से जनमानस तक' की अवधारणा का बेहतरीन उदाहरण है.उन्होंने ‘स्टार्टअप' से आग्रह किया कि वे सरकार द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाएं तथा उन्हें वैश्विक बाजारों तक पहुंचाएं, जहां प्राकृतिक व हर्बल उपचारों की मांग बढ़ रही है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी प्रदर्शनी का दौरा किया और उन्होंने शोधकर्ताओं को हर्बल उत्पादों के व्यावसायीकरण में तेजी लाने के लिए प्रोत्साहित किया. उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि सीएसआईआर स्टार्टअप सम्मेलन जैसी पहल शोध और उद्यमिता के बीच सेतु का कार्य करती हैं और भारत को हर्बल स्वास्थ्य नवाचार का वैश्विक केंद्र बनाने के प्रयासों को गति प्रदान करती हैं.

दो दिवसीय सम्मेलन में अनुसंधान संस्थान, 'स्टार्टअप' और नीति निर्माता मिलकर यह प्रदर्शित करने के लिए एकजुट हुए कि कैसे हर्बल उत्पाद प्रयोगशालाओं से निकलकर बाजारों में धूम मचा रहे हैं, जिनमें मधुमेह रोधी दवा बीजीआर-34 एक प्रमुख आकर्षण के रूप में उभरी है. इसमें वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की लखनऊ में स्थित चार प्रयोगशालाओं राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई), केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीआईएमएपी), भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर) और केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) के कार्यों को प्रदर्शित किया गया.

इन संस्थानों ने मिलकर जीवनशैली और दीर्घकालिक बीमारियों से निपटने के लिए 13 प्रमुख हर्बल दवाएं विकसित की हैं। इनमें मधुमेह से निपटने के लिए बीजीआर-34, रक्त कैंसर के लिए अर्जुन वृक्ष की छाल से बनी ‘पैक्लिटैक्सेल', और फैटी लीवर व लीवर कैंसर के लिए पिक्रोलिव प्रमुख हैं. एनबीआरआई और सीआईएमएपी द्वारा संयुक्त रूप से विकसित बीजीआर-34 दवा में छह जड़ी-बूटियों - दारुहरिद्रा, गिलोय, विजयसार, गुड़मार, मंजिष्ठा और मेथी का उपयोग किया जाता है।

रक्त शर्करा को नियंत्रित करने की अपनी क्षमता के लिए पहले से ही मान्यता प्राप्त बीजीआर-34 दवा को दीर्घकालिक मधुमेह निवारण के एक संभावित समाधान के रूप में भी देखा जा रहा है।.दीर्घकालिक मधुमेह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसपर अब वैश्विक स्वास्थ्य जगत ध्यान केंद्रित कर रहा है. बीजीआर-34 दवा का विपणन करने वाली एमिल फार्मास्युटिकल्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. संचित शर्मा ने कहा,  दुनिया अब केवल डायबिटीज कंट्रोल नहीं बल्कि डायबिटीज रिवर्सल पर जोर दे रही है.डॉ. शर्मा ने कहा, 'बीजीआर-34 जैसे फार्मूले आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान का मेल हैं और यही भविष्य में डायबिटीज-मुक्त समाज का आधार बन सकते हैं.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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