फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) और इंदिरा ने पिता जवाहरलाल नेहरू की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की थी.
नई दिल्ली:
यूं तो इंदिरा गांधी फिरोज (Feroze Gandhi) को बचपन से जानती थीं, लेकिन दोनों के बीच नजदीकियां बहुत बाद में बढ़ीं. लंदन में पढ़ाई के दौरान फिरोज और इंदिरा एक दूसरे के करीब आए और आगे चलकर शादी करने का फैसला लिया. हालांकि इंदिरा के पिता जवाहरलाल नेहरू को दोनों के रिश्तों पर ऐतराज था और इसके पीछे इंदिरा गांधी की सेहत वजह बताई गई. इंदिरा ने जब पिता नेहरू के सामने फिरोज से शादी का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने डॉक्टरों की नसीहत याद दिलाई और इंदिरा को बताया कि शादी के बाद क्या-क्या दिक्कतें हो सकती हैं. हालांकि इंदिरा ने पिता की नहीं सुनी और साल 1942 में गुजराती पारसी फिरोज गांधी से शादी कर ली.
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हालांकि शादी के कुछ दिनों बाद ही इंदिरा और फिरोज के रिश्तों में पहले जैसी गर्माहट नहीं रही. खासकर राजीव और संजय की पैदाइश के बाद दोनों के बीच दूरी बढ़ने लगी. फिरोज गांधी की बहुचर्चित जीवनी, 'फिरोज : द फॉरगेटेन गांधी' में बार्टिल फाल्क लिखते हैं कि, 'इंदिरा और फिरोज के बीच तनातनी तब शुरू हुई जब इंदिरा अपने दोनों बच्चों को लेकर लखनऊ स्थित अपना घर छोड़ कर पिता के घर इलाहाबाद आ गईं'. यह साल था 1955. और इसी साल इंदिरा गांधी पहली बार कांग्रेस की वर्किंग कमेटी और केंद्रीय चुनाव समिति सदस्य भी बनी थीं, लेकिन जब फिरोज ने पार्टी के भीतर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया तो दोनों के रिश्ते और तल्ख़ हो गए.
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इस बीच धीरे-धीरे फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) की छवि एक 'व्हिसल ब्लोअर' की बन गई और वे विपक्ष के खासे करीब हो गए, लेकिन वे नेहरू परिवार से जुड़े रहे और दिल्ली-इलाहाबाद आना-जाना लगा रहा. बार्टिल फाल्क अपनी किताब में लिखते हैं कि, फिरोज़ ने पत्नी इंदिरा के 'तानाशाही प्रवृत्ति' को पहले ही पहचान लिया था और वह इसे कहने से भी नहीं चूके. वाकया वर्ष 1959 का है. इंदिरा गांधी चाहती थीं कि केरल में चुनी हुई सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया जाए. उस दौरान वह कांग्रेस की अध्यक्ष तो थी हीं, सरकार में भी उनकी चलती थी. ऐसे में एक सुबह नाश्ते की टेबल पर फिरोज ने इंदिरा को 'फासीवादी' तक कह डाला. उस वक्त इंदिरा के पिता जवाहरलाल नेहरू भी वहां मौजूद थे.
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बार्टिल फाल्क लिखते हैं कि फिरोज गांधी की इंदिरा को दी हुई 'संज्ञा' सच साबित हुई. साल 1960 में पति फिरोज की मौत के 15 साल बाद इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल यानी इमरजेंसी लगा दी. सरकार की मुखालफ़त करने वाले नेताओं को चुन-चुनकर जेल भेजा गया. नागरिकों के अधिकार छीन लिये गए और फिरोज गांधी जिस अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थक थे, उसे कैद करने का भरसक प्रयास किया गया.
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हालांकि शादी के कुछ दिनों बाद ही इंदिरा और फिरोज के रिश्तों में पहले जैसी गर्माहट नहीं रही. खासकर राजीव और संजय की पैदाइश के बाद दोनों के बीच दूरी बढ़ने लगी. फिरोज गांधी की बहुचर्चित जीवनी, 'फिरोज : द फॉरगेटेन गांधी' में बार्टिल फाल्क लिखते हैं कि, 'इंदिरा और फिरोज के बीच तनातनी तब शुरू हुई जब इंदिरा अपने दोनों बच्चों को लेकर लखनऊ स्थित अपना घर छोड़ कर पिता के घर इलाहाबाद आ गईं'. यह साल था 1955. और इसी साल इंदिरा गांधी पहली बार कांग्रेस की वर्किंग कमेटी और केंद्रीय चुनाव समिति सदस्य भी बनी थीं, लेकिन जब फिरोज ने पार्टी के भीतर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया तो दोनों के रिश्ते और तल्ख़ हो गए.
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