लोकसभा चुनावों (Lok Sabha elections) में धन-बल का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले खर्च पर चुनाव आयोग की निगरानी भी सख्त हो रही है..इस बार के लोकसभा चुनाव में हर संसदीय क्षेत्र में उम्मीदवार अपने चुनावी अभियान पर कितना पैसा खर्च करेंगे इस पर चुनाव आयोग के एक्सपेंडिचर ऑब्जर्व्स की पैनी नजर रहेगी. इस बार के लोकसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने बड़े राज्यों में चुनावी खर्च की सीमा 95 लाख और छोटे राज्यों में चुनावी खर्च की सीमा 75 लाख तय की है.
उम्मीदवारों पर इस चुनाव में होगी पैनी नजर
इस बार के लोकसभा चुनावों में चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त एक्सपेंडिचर ऑब्जर्व्स की बड़े और छोटे से छोटे खर्चे पर भी पैनी नजर होगी... वो हर दिन चुनावी रैलियों, सभाओं, इलेक्शन पोस्टर्स और कैंपेन मटेरियल, गाड़ियों, हेलीकॉप्टरों, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में विज्ञापनों आदि के इस्तेमाल पर होने वाले बड़े खर्च के साथ-साथ चुनाव कैंपेन के द्वारा चाय, बिस्कुट, समोसा जलेबी, ब्रेड पकोड़ा जैसे चीजों पर खर्च का भी खाताबही हर रोज़ तैयार करेंगे.
53 सांसदों ने बताया कि उन्होंने 50 प्रतिशत राशि ही खर्च की
ADR/Election Watch को 2019 के लोकसभा चुनाव में जीतने वाले 514 उम्मीदवारों द्वारा चुनाव आयोग को दिए इलेक्शन एक्सपेंडिचर स्टेटमेंट की समीक्षा में कई अहम तथ्य मिले थे. लोकसभा चुनाव जीतने वाले 53 सांसदों ने डिक्लेयर किया था कि उन्होंने खर्च की सीमा का 50% से भी कम खर्च किया, जबकि सिर्फ दो सांसदों ने डिक्लेअर किया था कि उन्होंने 70 लाख के चुनावी खर्च की सीमा से ज्यादा पैसे अपने चुनावी अभियान पर खर्च किए.
चुनावों पर खर्च का सवाल
- 514 चुनाव जीतने वाले सांसदों ने चुनाव आयोग को जो इलेक्शन एक्सपेंडिचर स्टेटमेंट दिया उसके मुताबिक उन्होंने 70 लाख के चुनावी खर्च की सीमा का औसतन 73% खर्च किया था.
- चुनाव जीतने वाले भाजपा के 291 सांसदों ने चुनाव अभियान पर औसतन 51.31 लाख रुपए खर्च किए
- कांग्रेस के चुनाव जीतने वाले 51 सांसदों ने 2019 के चुनाव में औसतन 51.72 लाख रुपए खर्च किए.
- तृणमूल कांग्रेस के 22 सांसदों ने औसतन 54 लख रुपए खर्च किए
- डीएमके के 21 सांसदों ने चुनाव आयोग को जानकारी दी उसके मुताबिक चुनाव अभियान पर उन्होंने औसतन 45.78 लख रुपए खर्च किया था.
खर्च की मॉनिटरिंग करना एक चुनौती
इलेक्शन वॉच के संस्थापक जगदीप छोकर ने कहा कि चुनावों में खर्च पर सीलिंग लगाना और उसकी सख्ती से मॉनिटरिंग करना बेहद चुनौतीपूर्ण काम है. इसकी पूरी जानकारी सही तरीके से सामने नहीं आ पाती है.जैसे अगर कोई कैश में खर्च करता है तो उसकी मॉनिटरिंग कैसे की जाये? ज़ाहिर है, लोक सभा चुनाव लड़ने का खर्च बढ़ता जा रहा है, और इसके साथ ही इस खर्च की मॉनिटरिंग करने की चुनौती भी.
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