देश भर में लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान की शुरुआत होने के साथ ही पर्यावरणविदों ने मांग की है कि राजनीतिक दल डिजिटल और चुनाव प्रचार के अन्य गैर-पारंपरिक तरीकों को अपनाएं ताकि प्रकृति पर ‘गैर-बायोडिग्रेडेबल' चुनाव सामग्री के प्रभाव को कम किया जा सके.
पर्यावरणविदों का कहना है कि राजनीतिक दलों को मतदाताओं तक पहुंच बनाने के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर रहना चाहिए और प्लास्टिक के झंडों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इनसे सड़कों पर गंदगी फैलती है और यह कई बार जलाशयों तक पहुंच कर इन्हें प्रदूषित करते हैं या नालों को अवरुद्ध कर देते हैं.
पर्यावरणविद् सोमेंद्र मोहन घोष ने कहा, ‘‘हम दूरदराज के ग्रामीण हिस्सों में भी पोस्टर फ्लेक्स, प्लास्टिक के झंडों के बिना प्रचार क्यों नहीं कर सकते क्योंकि ये गैर-बायोडिग्रेडेबल गंदगी फैलाते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं.''
उन्होंने कहा कि वर्तमान युग में चुनाव प्रचार के लिए डिजिटल तरीका अपनाना कोई सपना नहीं होना चाहिए क्योंकि देश के दूरदराज के इलाकों में भी इंटरनेट के साथ मोबाइल फोन उपलब्ध हैं.
घोष ने कहा, ‘‘एसएमएस, व्हाट्सएप और रील्स के जरिए मतदाताओं तक पहुंच बनाना अधिक प्रभावी हो सकता है. मोबाइल के जरिये नेताओं के संदेश प्रसारित किये जा सकेंगे. यदि बैनर एवं पोस्टर आवश्यक हो तो इन्हें सूती और कागज से बनाया जाना चाहिए. राजनीतिक दलों को पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों का इस्तेमाल करना चाहिए.''
पर्यावरण से जुड़ी संस्था ‘स्विच ऑन फाउंडेशन' के प्रबंध निदेशक विनय जाजू ने कहा, ‘‘हरित प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके पर्यावरण के अनुकूल चुनाव प्रचार अभियान चलाया जाना चाहिए. सोशल मीडिया का इस्तेमाल जन स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद हैं.''
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता जयप्रकाश मजूमदार ने कहा कि उनकी पार्टी पर्यावरण को बचाने और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए खड़ी है.
उन्होंने कहा, ‘‘हमें संतुलन बनाना होगा. हमें जनता के लिए अपने विकास कार्यों को आगे बढ़ाने और पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने के लिए काम करने के वास्ते चुनाव लड़ना है.''
निर्वाचन आयोग ने पिछले साल कहा था कि वह चुनावों के दौरान गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों के इस्तेमाल से होने वाले पर्यावरणीय खतरों को लेकर चिंतित है.
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