चुनावी बॉन्ड को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देश में राजनीतिक फंडिंग की मौजूदा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं. पिछले 6 साल में किस भारतीय नागरिक या संस्था ने किस राजनीतिक दल को चुनावी बॉन्ड के जरिए कितना चंदा दिया ये जानकारी चुनाव आयोग को 13 मार्च तक सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया है.
2 जनवरी 2018 को राजनीतिक फंडिंग के लिए लॉच की गई इलेक्टोरल बांड स्कीम असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों वाली संविधान पीठ ने गुरुवार को इसे रद्द करने का फैसला सुना दिया. अब तक कोई भी भारतीय नागरिक या परिवार और भारत में रजिस्टर्ड कंपनी या संस्था SBI से 1000 रुपये से लेकर एक करोड़ तक के इलेक्टोरल बांड्स खरीद कर किसी भी राजनीतिक दल को चंदा दे सकती थी.
इलेक्टोरल बांड स्कीम देश में पिछले 6 साल से लागू थी. इसमें इलेक्टोरल बांड खरीदने वाले की पहचान गोपनीय रखने का प्रावधान था, SBI किसी भी संस्था के साथ ये जानकारी साझा नहीं कर सकती थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उठाते हुए अपने फैसले में कहा कि स्वैच्छिक राजनीतिक योगदान का खुलासा न करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) यानी बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है. लोकतंत्र में मतदाता को सूचना के अधिकार में राजनीतिक फंडिंग के स्रोत को जानने का अधिकार भी शामिल है.
"बीजेपी को अकेले 5000 करोड़ से ज़्यादा पैसा आया"
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा कि जो पैसा बीजेपी को मिला, हम भी ये जानना चाहते हैं कि आपने इन पैसों से क्या किया? बीजेपी को अकेले 5000 करोड़ से ज़्यादा पैसा आया. एसबीआई इन तमाम बातों का खुलासा करे कि किस पार्टी ने कितना पैसा किसको दिया". इसके जवाब में मुख्तार अब्बास नकवी ने NDTV से कहा कि हम अभी भी ये मानते हैं की ये सबसे ज्यादा पारदर्शी व्यवस्था थी. अगर कोई कहता है कि बीजेपी को ज्यादा पैसा मिला तो यह कुतर्क है, आज से 30-40 साल पहले हम अगर कहते कि कांग्रेस को ज्यादा पैसा मिला तो उसका क्या मतलब था. आज बीजेपी सबसे ज्यादा बड़ी पार्टी है.
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड्स को असंवैधानिक करार देते हुए फैसला दिया कि देश के नागरिकों को ये जानने का अधिकार है किस व्यक्ति या संस्था ने किस राजनीतिक दल को कितना चंदा दिया. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने SBI को निर्देश दिया है कि वो 6 मार्च तक इलेक्टोरल बांड से जुडी सारी जानकारी इलेक्शन कमीशन को मुहैया कराए. इसके बाद चुनाव आयोग 13 मार्च तक इलेक्टोरल बांड से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करेगा. जाहिर है, ये जानकारी सार्वजनिक होने के बाद देश में राजनीतिक फंडिंग के सवाल पर एक बड़ी बहस छिड़ सकती है.
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