रूस-यूक्रेन युद्ध का असर: मंडियों में बढ़े गेहूं के भाव, प्राइवेट ट्रेडर्स किसानों को दे रहे हैं मोटा पैसा

गेहूं किसानों का कहना है कि इस बार तेज़ गर्मी की वजह से गेहूं की पैदावार घटी है. साथ ही, पेट्रोल-डीजल महंगा होने की वजह से गेहूं को अनाज मंडियों तक लाने का खर्च भी बढ़ गया है. 

रूस-यूक्रेन युद्ध का असर: मंडियों में बढ़े गेहूं के भाव, प्राइवेट ट्रेडर्स किसानों को दे रहे हैं मोटा पैसा

गेहूं का एक्सपोर्ट बढ़ने से किसानों को प्राइवेट ट्रेडर्स से ज्यादा रेट मिल रहे हैं.

लखनऊ:

इस बार उत्तर प्रदेश की अनाज मंडियों में किसानों को प्राइवेट ट्रेडर्स से ज्यादा रेट मिल रहे हैं, जिससे की सरकारी काउंटर खाली पड़े हुए हैं. प्राइवेट ट्रेडर्स से गेहूं के लिए किसानों को 2150 से 2200 रुपए प्रति क्विंटल तक का रेट मिल रहा है. जो सरकारी रेट 2015 रुपये प्रति क्विंटल से 7% से 10% तक ज्यादा है. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से भारत से गेहूं का एक्सपोर्ट बढ़ने की वजह से गेहूं अर्थव्यवस्था में ये अहम बदलाव हुआ है. हालांकि गेहूं किसानों का कहना है कि इस बार तेज़ गर्मी की वजह से गेहूं की पैदावार घटी है. साथ ही, पेट्रोल-डीजल महंगा होने की वजह से गेहूं को अनाज मंडियों तक लाने का खर्च भी बढ़ गया है. 

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गाज़ियाबाद की नवीन अनाज मंडी में गेहूं की खरीद चल रही है. किसान हाजी फ़रियाद और अनीष नामक किसानों ने एक कारोबारी से 2210 रुपये क्विंटल के हिसाब से सौदा किया. जो सरकारी दर 2015 रुपये क्विंटल से करीब 200 रूपये ज्यादा है. हाजी फ़रियाद ने NDTV से बात करते हुए कहा कि, "इस बार प्राइवेट ट्रेडर्स से हमें 2200 रुपये प्रति क्विंटल तक का रेट मिल रहा है. जो सरकारी रेट 2015 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा है. इसलिए हम प्राइवेट ट्रेडर्स को गेहूं बेच रहे हैं. सरकार कम रेट दे रही है.

सुधीर गोयल, महामंत्री, नविन अनाज मंडी फूडग्रेन्स एसोसिएशन ने NDTV से कहा कि " शुरू में जब गेहूं का नया स्टॉक मंडियों में पहुंचा तो रेट कम था और किसान ज्यादातर सरकारी काउंटर पर जा रहे थे. लेकिन जैसे ही गेहूं का एक्सपोर्ट बढ़ा किसानों को प्राइवेट ट्रेडर्स से ज्यादा रेट मिलने लगा और उन्होंने प्राइवेट ट्रेडर्स को गेहूं ज्यादा बेचना शुरू कर दिया".

गेहूं किसानों को इस सीजन में सरकारी रेट से जयादा मिल रहा है. लेकिन मार्च-अप्रैल में तेज़ गर्मी की वजह से गेहूं की पैदावार काफी घट गई है. पहले 1 एकड़ में 25 क्विंटल तक पैदावार होती थी, अब वो घटकर 15-16 क्विंटल के आसपास रह गई है. किसान महेंद्र के अनुसार "इस बार गेहूं की पैदावार कम हुई है. पहले 1 बीघा में 4 क्विंटल गेहूं की पैदावार होती थी. अब घटकर 2:50 क्विंटल तक रह गई है".

पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों ने खर्च और बढ़ा दिया है. पहले गांव से नवीन अनाज मंडी तक ट्रक से गेहूं लाने का खर्च ढाई सौ से 300 रुपये होता था. अब ये 400 हो गया है. गेहूं के किसान अनिष कहते हैं कि पेट्रोल-डीज़ल महंगा होने से गांव से गेहूं मंडियों तक लाने का खर्च काफी बढ़ गया है.  

अनाज मंडी में एक तरफ जहां निजी व्यापारी सीधे किसानों से गेहूं खरीद कर रहे हैं. वहीं अनाज मंडी में सरकारी खरीद काउंटरों पर सन्नाटा पसरा है. इस बार सरकारी खरीद काउंटर पर कितना गेहूं की खरीद हो पाई है? इस सवाल के जवाब में अंजुल यादव, सेंटर इंचार्ज, यूपी खाद्य विभाग ने कहा कि इस साल अब तक पिछले साल के मुकाबले 25% के आसपास ही गेहूं की खरीद हो पायी है, सरकारी काउंटर पर. क्योंकि सरकारी रेट सिर्फ 2015 प्रति क्विंटल है जबकि प्राइवेट ट्रेडर्स ऊंचे रेट पर किसानों से गेहूं खरीद रहे हैं.

गेहूं के उत्पादन में कमी और गेहूं की सरकारी खरीद में बड़ी गिरावट की वजह से अनाज मंडियों में गेहूं अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव दिख रहा है. गेहूं एक्सपोर्ट में बढ़ोतरी किसानों, व्यापारियों और एक्सपोर्टरों के लिए अच्छी खबर जरूर है. लेकिन इसे प्रोत्साहित करने के दौरान सरकार को ये सुनिश्चित करना होगा की देश में खाद्य सुरक्ष के लिए गेहूं का पर्याप्त स्टॉक बना रहे. 

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