‘मन की बात’ में शिक्षा और ग्रासरूट इनोवेशन रहे सबसे प्रेरणादायक विषय : आईआईएमसी सर्वेक्षण

अध्ययन के मुताबिक, 12 प्रतिशत प्रतिभागी रेडियो के जरिये ‘मन की बात’ सुनते हैं, 15 प्रतिशत टेलीविजन पर, जबकि 37 प्रतिशत इंटरनेट माध्यम से यह कार्यक्रम सुनते हैं.

‘मन की बात’ में शिक्षा और ग्रासरूट इनोवेशन रहे सबसे प्रेरणादायक विषय : आईआईएमसी सर्वेक्षण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में शिक्षा और देश के ग्रासरूट इनोवेशन के संबंध में दी गई सूचना सबसे प्रेरणादायक विषयों में से एक हैं.

नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात' में शिक्षा और देश के जमीनी नवोन्मेष (ग्रासरूट इनोवेशन) के संबंध में दी गई सूचना सबसे प्रेरणादायक विषयों में से एक हैं. यह खुलासा भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के सर्वेक्षण में हुआ है. सर्वेक्षण में यह तथ्य भी सामने आया है कि मूल रूप से रेडियो कार्यक्रम के तौर पर परिकल्पित ‘मन की बात' को सबसे अधिक इंटरनेट मंच पर सुना गया.

आईआईएमसी के महानिदेशक संजय द्विवेदी ने बताया कि अध्ययन में देश के 116 समाचार संगठनों, शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों के 890 लोगों ने हिस्सा लिया. सर्वेक्षण के मुताबिक, ‘मन की बात' में शिक्षा और ग्रासरूट इनोवेशन की चर्चा सबसे प्रेरणादायक विषय रहे. अध्ययन में शामिल 40 प्रतिशत ने कहा कि ‘शिक्षा' और 26 प्रतिशत ने कहा कि ‘‘ ग्रासरूट इनोवेशन की सूचना' कार्यक्रम के सबसे प्रेरणादायक विषय थे. ‘मन की बात' कार्यक्रम का पहला प्रसारण तीन अक्टूबर 2014 को किया गया था और अबतक 99 कड़ियां प्रसारित हो चुकी हैं.

आईआईएमसी के अध्ययन के मुताबिक, सर्वेक्षण में शामिल मीडिया के 76 प्रतिशत लोग मानते हैं कि रेडियो कार्यक्रम ने देशवासियों के समक्ष ‘वास्तविक भारत' का परिचय कराने में अहम भूमिका निभाई. सर्वेक्षण में शामिल लोगों के मुताबिक ‘‘देश के बारे में जानकारी'' और ‘‘देश को लेकर प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण'', ऐसे दो कारण रहे जो लोगों को कार्यक्रम सुनने के लिए प्रेरित करते हैं. अध्ययन के मुताबिक 32 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि वे कार्यक्रम में उठाए गए मुद्दों को लेकर परिवार के सदस्यों के साथ चर्चा करते हैं, जबकि 29 प्रतिशत दोस्तों से कार्यक्रम पर चर्चा करते हैं. अध्ययन के मुताबिक, 12 प्रतिशत प्रतिभागी रेडियो के जरिये ‘मन की बात' सुनते हैं, 15 प्रतिशत टेलीविजन पर, जबकि 37 प्रतिशत इंटरनेट माध्यम से यह कार्यक्रम सुनते हैं.

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