
- ED द्वारा जब्त की गई मनी लॉन्ड्रिंग की रकम पीड़ितों में बांटकर उन्हें आर्थिक राहत प्रदान की जाती है.
- ED की जब्त राशि सीधे राज्य के खजाने में नहीं जाती बल्कि वित्तीय अपराध के शिकार व्यक्तियों को दी जाती है.
- सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि ED ने अब तक 23 हजार करोड़ रुपये की धनराशि पीड़ितों को बांटी है.
ED Seized Money: साइबर ठगी, धोखाधड़ी या फिर वित्तीय गड़बड़ी करने वाले गिरोह और सरगनों को पकड़ने के बाद ED उनसे करोड़ों रुपए भी जब्त करती है. ED द्वारा जब्त की गई यह राशि कहां जाती है? किसे मिलता है? इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को पता है. गुरुवार को इस मामले की जानकारी पहली बार तब सामने आई, जब सुप्रीम कोर्ट में ED की शक्तियों से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में बताया.
सॉलिसटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में दी जानकारी
सॉलिसटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि ED आरोपियों से बरामद कर ₹23,000 करोड़ की मनी लॉन्ड्रिंग की रकम पीड़ितों में बांटी जा चुकी है. सुनवाई के दौरान SG ने यह भी कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जब भी ED कोई धनराशि बरामद करती है तो वह राज्य के खजाने में नहीं जाती, बल्कि उन लोगों को दी जाती है जो वित्तीय अपराधों के शिकार हुए हैं.

सीजेआई बीआर गवई की पीठ के सामने दी जानकारी
सॉलिसटर जनरल ने यह बयान सीजेआई बीआर गवई और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की विशेष पीठ के समक्ष दिया, जो शीर्ष अदालत के दो मई के विवादास्पद फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई कर रही थी.
भूषण स्टील एंड पावर लिमिटेड के केस से जुड़ा मामला
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने दो मई को भूषण स्टील एंड पावर लिमिटेड (BSPL) के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील की समाधान योजना को खारिज करते हुए इसे दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) का उल्लंघन बताया था. उसने आईबीसी के तहत बीएसपीएल के परिसमापन का आदेश दिया.
इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान एक वकील ने बीपीएसएल मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच का भी हवाला दिया. प्रधान न्यायाधीश ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘ईडी यहां भी मौजूद है.''
SG बोले- यह फैक्ट आज तक किसी अदालत में नहीं कहा गया
इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘‘मैं एक तथ्य बताना चाहता हूं जो किसी भी अदालत में कभी नहीं कहा गया और वह यह है कि... ईडी ने 23,000 करोड़ रुपये (काला धन) बरामद कर पीड़ितों को दिए हैं.'' विधि अधिकारी ने कहा कि बरामद धन सरकारी खजाने में नहीं रहता और वित्तीय अपराधों के पीड़ितों को दिया जाता है.

इस दौरान प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘सजा की दर क्या है?''
इस पर तुषार मेहता ने कहा कि दंडात्मक अपराधों में सजा की दर भी बहुत कम है और उन्होंने देश की आपराधिक न्याय प्रणाली की खामियों को इसका मुख्य कारण बताया. इस पर, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘भले ही उन्हें दोषी न ठहराया गया हो, लेकिन आप लगभग बिना किसी सुनवाई के उन्हें (आरोपियों को) सजा देने में वर्षों से सफल रहे हैं.''
विधि अधिकारी ने कहा, ‘‘कुछ मामले ऐसे हैं जिनमें नेताओं के यहां छापे पड़े, वहां भारी मात्रा में नकदी मिलने के कारण हमारी (नकदी गिनने वाली) मशीनों ने काम करना बंद कर दिया... हमें नयी मशीन लानी पड़ीं.'' उन्होंने कहा कि जब कुछ बड़े नेता पकड़े जाते हैं तो यूट्यूब कार्यक्रमों पर कुछ विमर्श गढ़े जाते हैं.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम विमर्शों के आधार पर मामलों का फैसला नहीं करते... मैं समाचार चैनल नहीं देखता। मैं सुबह केवल 10-15 मिनट अखबारों की सुर्खियां देखता हूं.'' विधि अधिकारी ने कहा कि उन्हें पता है कि न्यायाधीश सोशल मीडिया और अदालतों के बाहर गढ़े जा रहे विमर्शों के आधार पर मामलों के फैसले नहीं करते.
शीर्ष अदालत की कई पीठ खासकर विपक्षी नेताओं से जुड़े धनशोधन के मामलों में प्रवर्तन निदेशालय की कथित मनमानी की आलोचना करती रही हैं. प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने 21 जुलाई को एक एक अन्य मामले में कहा था कि प्रवर्तन निदेशालय ‘‘सारी हदें पार कर रहा है.''
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