जम्मू-कश्मीर के डोडा में 25 साल के कैप्टन दीपक सिंह (Martyr Deepak Singh) आतंकियों से लोहा लेते शहीद हो गए. 14 अगस्त को शहादत से पहले दीपक ने आखिरी बार अपनी मां से वीडियो कॉल पर बात की थी. वह खुद भी कहां जानते थे कि ये उनकी जिंदगी का आखिरी वीडियो कॉल है. मां से बात कर रहे कैप्टन दीपक ने कहा कि ,"सब ठीक है, मैं आराम कर रहा हूं, चिंता की कोई बात ही नहीं है." जब कि सच्चाई कुछ और ही थी. कैप्टन दीपक उस समय आतंकियों के खिलाफ एक घातक मिशन पर जाने की तैयारी कर रहे थे. मां को चिंता न हो इसलिए वह अक्सर ही झूठ बोल देते थे.
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मां से वीडियो कॉल पर झूठ बोला
शहीद कैप्टन दीपक के पिता महेश सिंह खुद भी उत्तराखंड पुलिस के एक रिटायर्ड इंस्पेक्टर हैं. उन्होंने गुरुवार को TOI को बताया, " दीपक जम्मू-कश्मीर से वीडियो कॉल पर हमसे बात करते थे. वह हमेशा अपनी मां से झूठ बोल देते थे." पिता ने बताया कि दीपक हमेशा कहते थे कि मां, सब ठीक है, शांति है. मैं आराम कर रहा हूं. उन्होंने बताया कि उनका बेटा दीपक हमेशा ही अपनी वर्दी उतारकर सिर्फ बनियान पहनकर परिवार से वीडियो कॉल पर बात करता था, ताकि मां को यही लगे कि वह आराम कर रहा है. हालांकि, एक पूर्व पुलिसकर्मी होने के नाते, वह बेटे के जूते और पैंट देखकर अंदाजा लगा लेता था कि वह ड्यूटी होते थे.
परिवार से किया था जल्द शादी का वादा
NDA से ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद साल 2020 में सिग्नल रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त दीपक सिंह फिलहाल जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स के साथ दो साल की प्रतिनियुक्ति पर थे. उन्होंने अपने माता-पिता से वादा किया था कि राष्ट्रीय राइफल्स में उनका कार्यकाल पूरा होते ही वह शादी कर लेंगे. वह खुद भी कहां जानते होंगे कि भारत माता की सेवा करते हुए वह सर्वोच्च बलिदान दे देंगे.
घर में जश्न का माहौल था, आ गई बेटे के शहीदी की खबर
दीपक के पिता ने बताया कि वह दो बहनों के इकलौते भाई थे. उनके शहीद होने की खबर आने से ठीक पहले घर पर जश्न का माहौल था. उनकी बड़ी बेटी ने बच्चे को जन्म दिया था, जो सभी लोग बहुत खुश थे. परिवार दीपक की शादी की प्लानिंग कर रहा था. बेटे ने अपना आरआर कार्यकाल पूरा करने के लिए एक साल और इंतजार करने के लिए कहा था. इससे पहले कि वह ऐसा कर पाता, उसने सर्वोच्च बलिदान दे दिया.'' बेटे की शहादत पर गर्विंत पिता महेश सिंह ने खुद को समझाते हुए कहा, हम आंसू की एक बूंद भी नहीं बहाएंगे. हमारा बेटा हमेशा सेना में सेवा करना चाहता था. हमें उस पर गर्व है.
दीपक को कैसै मिली सेना में जाने की प्रेरणा?
पिता पुलिस में थे. ऐसे में दीपक का परिवार देहरादून पुलिस क्वार्टर में रहता था. वहीं पर पुलिस लाइन मैदान में उन्होंने स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर पुलिस कर्मियों की कई परेडें देखीं, बस वहीं से दीपक को सेना में शामिल होने की प्रेरणा मिली. उसके बाद उन्होंने सेना में शामिल होने की ठान ली और एनडीए का एग्जाम पास कर वह सेना में शामिल हो गए.
राजकीय सम्मान के साथ दीपक को दी अंतिम विदाई
कैप्टन दीपक का पार्थिव शरीर गुरुवार दोपहर करीब एक बजे जम्मू से देहरादून एयरपोर्ट लाया गया. पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनको अंतिम विदाई दी गई.इस दौरान सीएम पुष्कर सिंह धामी भी वहां अन्य लोगों के साथ मौजूद रहे. सीएम धामी ने शोक जताते हुए परिवार के प्रति संवेदना जाहिर की. उन्होंने कहा कि पूरा उत्तराखंड इस दुख की घड़ी में पीड़ित परिवार के साथ खड़ा है. सरकार उनको हरसंभव मदद देगी.
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