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दिवाली पर मिट्टी के बने दीयों की बढ़ी डिमांड, सप्लाई न के बराबर, मानसून की बारिश ने बिगाड़ा समीकरण

Diwali 2025: कुम्हारों को दीये और अन्य बर्तन बनाने के लिए मिट्टी नहीं मिल पा रही है, जिसकी मुख्य वजह मानसून सीजन में ज्यादा बारिश होना है.

दिवाली पर मिट्टी के बने दीयों की बढ़ी डिमांड, सप्लाई न के बराबर, मानसून की बारिश ने बिगाड़ा समीकरण

देशभर में दीपावली का त्यौहार मानने को लेकर सभी तरह की तैयारी चल रही है. लोग नए-नए कपड़े खरीद रहे हैं. घर को सजाने के लिए मिट्टी के दीये, तोरंग, फूलों की लड़ी, घर में रोशनी करने के लिए बिजली की लड़ी और अन्य तरह का सामान खरीद रहे हैं. दीपावली के पर्व को हर्षोल्लास से मनाने के लिए जहां एक ओर बाजार की रौनक बढ़ी हुई है. तो वहीं दूसरी तरफ घर को रोशन करने वाले दीयों की डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ी हुई है. इसलिए  देहरादून की कुम्हार मंडी में इन दिनों मिट्टी दीये बनाने के साथ ही लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति बनाने का काम लगता जारी है. दीपावली की पूजा के लिए दीये और लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति के लिए ग्राहकों की लंबी कतारे बाजारों में साफ देखी जा सकती हैं. इसके लिए हेडलाइन बनाएं

मिट्टी की उपलब्धता कम

लेकिन, जहां एक और सब रोशनी का त्योहार दीपावली मनाने की तैयारी कर रहे हैं, तो वहीं मिट्टी के दीये और लक्ष्मी गणेश के अलावा अन्य देवी देवताओं की मूर्ति बनाने वाले कुम्हार को इस बार नुकसान उठाना पड़ रहा है. इसकी वजह मिट्टी के दीये और अन्य देवी देवताओं की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी का उपलब्धता नहीं होना है.

मिट्टी की क्वालिटी हुई खराब

कुम्हारों को दीये और अन्य बर्तन बनाने के लिए मिट्टी नहीं मिल पा रही है, जिसकी मुख्य वजह मानसून सीजन में ज्यादा बारिश होना है, क्योंकि ज्यादा बारिश होने की वजह से मिट्टी में कई तरह की अन्य प्रकार की गंदगी और ज्यादा रेट होने की वजह से मिट्टी की क्वालिटी बेहद खराब है. दूसरा कारण मिट्टी की कीमतें ज्यादा बढ़ गई हैं, क्योंकि उपलब्धता कम है.

2 महीने कारीगर बैठे घर

वैसे, एक कारीगर एक दिन में मिट्टी की उपलब्धता पर्याप्त होने के बाद 1200 से 1500 तक दीये बना देता है. इसलिए हाथ से एक महीने में 36 हजार से 40 हजार दीये बना दिए जाते हैं. लेकिन कुम्हार को मिट्टी नहीं मिल पाई, यही वजह है कि न सिर्फ कुम्हार बल्कि उनके यहां काम करने वाले कारीगरों को 2 महीने घर में खाली बैठना पड़ा था.

मिट्टी हुई महंगी

कार्तिक, अपने परिवार के साथ अपना पुश्तैनी काम कई सालों से कर रहे हैं. उनका कहना है, "इस बार 2 महीने तक मिट्टी नहीं मिलने की वजह से हमारा काम नहीं बन रहा, जिसकी वजह से हमें काफी नुकसान हो गया. पहले एक ट्राली मिट्टी हमें 7 से 8 हजार रुपए में मिल जाती थी, लेकिन इस बार एक मिट्टी की ट्रॉली 15 हजार से काम नहीं मिल पा रही है. क्योंकि पहले देहरादून के मेहु वाला क्षेत्र से चिकनी मिट्टी मिल जाती थी, लेकिन ज्यादा मानसून में बारिश होने की वजह से अब वह मिट्टी की उपलब्धता नहीं हो पा रही है." कार्तिक का कहना है कि अब सहारनपुर से मिट्टी मंगवानी पड़ रही है, लेकिन ज्यादा महंगी होने के कारण ज्यादा नहीं मंगवा पाए हैं.

बाहर से खरीद कर बेच रहे दीये

अनमोल कुमार प्रजापति भी मिट्टी से बने बर्तन और दीए बनाने का काम करते हैं. अनमोल कुमार का कहना है कि अब सारा माल गुजरात या फिर दूसरे अन्य राज्यों से मांगना पड़ रहा है. यहां पर कुम्हार बेहद कम सामान बन पा रही है क्योंकि मिट्टी नहीं उपलब्ध हो पा रही है. अनमोल कुमार कहते हैं कि कुमार मंडी में 25 लाख तक दिए और अन्य सामान का बिजनेस हो पता था, लेकिन अब आधे से भी काम काम रह गया है. अनमोल कहते हैं कि मिट्टी से बने बर्तन मूर्ति और दिये हम बाहर से खरीद कर यहां पर बेच रहे हैं.

डिमांड के हिसाब से नहीं पा रहे दीये

बंसीलाल भी कुम्हार मंडी से दिए और अन्य मिट्टी के बर्तन और मूर्तियां लेकर दूसरी जगह पर बेच रहे हैं, लेकिन बंसीलाल का कहना है कि डिमांड ज्यादा है, लेकिन माल काम बन पा रहा है और ना ही डिमांड पूरी कर पा रहे हैं. जो भी अब मिट्टी से बने बर्तन दिए और मूर्तियां मिल रही है, वह सब पहले से बंद कर दूसरे राज्यों से आ रही है, जिससे दीये और मूर्तियां महंगी हो गई हैं. जो दीये पहले ₹2 या ₹3 के हिसाब से मिल जाते थे अब वह 7 से ₹10 पर मिल रहे हैं, जिससे खरीदार भी ज्यादा सामान नहीं ले जा रहा है.

कुम्हार समुदाय ने सरकार से लगाई गुहार

कुम्हार समुदाय सरकार से इस मामले में मदद की गुहार लगा रहा है ताकि उनका पारंपरिक काम विलुप्त न हो जाए. जिला प्रशासन को भी मिट्टी उपलब्ध करवाने के लिए लंबे समय से पत्र लिखा है, लेकिन कोई हल नहीं हो पाया है. इसके अलावा कुम्हार समुदाय ने कहा है कि जनप्रतिनिधियों से भी बात की, लेकिन मिट्टी उनको महंगे दामों पर मिल रही है या फिर उपलब्ध नहीं हो पा रही है.

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