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Exclusive: धराली में सैलाब की असली वजह आई सामने, NDTV की पूरी पड़ताल

खीर गंगा नदी का उद्गम स्थल 4000 फिट से ज्यादा की ऊंचाई पर है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस जगह पर उस दिन यहां पर या तो बादल फटा है या फिर भारी बारिश हुई.

Exclusive: धराली में सैलाब की असली वजह आई सामने, NDTV की पूरी पड़ताल
  • उत्तराखंड के धराली में बादल फटने से हुई तबाही के पीछे ग्लेशियर की कमी में कमजोर मिट्टी और भारी लैंडस्लाइड.
  • खीर गंगा नदी के उद्गम स्थल पर तीन जगहों पर लैंडस्लाइड हुई, जिससे भारी मलबा और पानी नीचे तेजी से आया.
  • ग्लेशियर न होने के कारण ऊंचाई पर बारिश हो रही है, जिससे सात ताल में से कई ताल सूखे पड़े हैं.
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नई दिल्‍ली:

जिस ग्‍लोबल वॉर्मिंग को लेकर आज से करीब डेढ़ दशक पहले तक वैज्ञानिक आगाह करते थे और शायद हम और आप उसे मजाक समझते थे, तो उत्तराखंड का धराली एक सबक है. 5 अगस्‍त को धराली में बादल फटा और चंद सेकेंड्स में सबकुछ तबाह हो गया. जो पहाड़ और उनसे निकल कर बहने वाली नदी कभी खूबसूरती की गवाही देते थे, अब वही यहां के लोगों को डराने लगे हैं. हर कोई बस यही जानना चाहता है कि आखिर धराली में चंद मिनटों में सबकुछ कैसे तबाह हो गया. खीर गंगा जैसी छोटी पहाड़ी नदी में पानी के साथ सैकड़ों टन मलबा कहां से आया, क्या कोई ग्लेशियर टूटा या फिर बर्फ की झीलें इसकी वजह बनीं ? ऐसे कई सवाल हैं जिनकी पड़ताल श्री कंठ पर्वत पर बने सात ताल तक जाकर NDTV ने की. यह वही जगह है जहां से खीर गंगा निकलती है. इस पड़ताल में यह पता लगा कि आखिर धराली में क्‍या हुआ होगा और कैसे रूह को कंपा देने वाली तबाही आ गई. 

ग्‍लेशियर न होने से मिट्टी कमजोर 

खीर गंगा नदी जहां से निकलती है वह जगह यानी उसका उद्गम स्थल 4000 फिट से ज्यादा की ऊंचाई पर है. यहां पर जाकर देखने पर साफ पता चला कि उद्गम स्थल पर ग्लेशियर सिर्फ नाममात्र का है. यहां पर एक, दो नहीं बल्कि पूरे तीन जगहों पर भारी लैंडस्‍लाइड हुई. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस जगह पर ग्लेशियर न होने के वजह से मिट्टी पहले से कमजोर थी. उस दिन यहां पर या तो बादल फटा है या फिर भारी बारिश हुई और जिसकी वजह से तीन जगहों पर लैंडस्लाइड हुई. इसके बाद पानी के साथ मलबा तीन चैनेल के जरिए धराली, हर्षिल और सुक्‍खी टॉप तक पहुंचा है और जिसने नीचे भयानक नुकसान पहुंचाया. 

श्रीकंठ के बेस कैंप पर ग्लेशियरों के पास

श्रीकंठ बेस कैंप के ग्लेशियरों में मौजूद निशान धराली में तबाही की गवाही दे रहे हैं. एसडीआरएफ और निम की टीम ने इस इलाके का सर्वे किया. टीम के वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि ग्लेशियर में तीन जगहों से पानी फूटा होगा. वीडियो में तीन जगह से मलबा और पानी की छोटी धारा अभी भी दिखाई दे रही है. इसी ग्लेशियर से खीर गंगा की धारा निकल रही है.  

देखिए वह वीडियो

इंसानों को कैसे निगल गई खीर गंगा?   

धराली से बहने वाली खीर गंगा के बारे में अभी तक यह कहावत थी कि इस नदी में आजतक एक चूहा भी नहीं मरा होगा. लेकिन अब यही नदी बड़ी तबाही की वजह कैसे बन गई. अगर खीर गंगा के बहाव को देखा जाए तो पता चलता है कि धराली से ये गहरी घाटी और 4000 मीटर से भी ज्‍यादा ऊंचाई पर थी. इसकी वजह से मलबा के साथ पानी दोगुनी रफ्तार से नीचे आया होगा और इस वजह से त्रासदी का दायरा भी बहुत बड़ा हो गया. विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लेशियर न होने की वजह से अब ऊंचाई पर भी बारिश हो रही है. बारिश के बाद खीर गंगा के उद्गम स्थल का हजारों टन मलबा लैंड स्लाइड की शक्ल में जब ऊंचाई से आया तो नदी का सदियों पुराना गाद (सिल्‍ट) भी इसमें मिला जिसने पूरे धराली को जमींदोज कर दिया. 

अब 4000 मीटर पर हो रही बारिश 

धराली से करीब 4000 मीटर से ज्‍यादा की ऊंचाई पर स्थित श्रीकंठ पर्वत के ग्लेशियर से निकलने वाली खीर गंगा नदी से करीब एक किमी पहले यानी 3000 मीटर पर मौजूद सात ताल या जिसे 7 लेक्‍स के तौर पर भी लोग जानते हैं, वहां पर जो कुछ पता चला, वह डराने के साथ परेशान करने वाला भी है. श्रीकंठ पहाड़ के ग्लेशियर और बारिश की वजह से सातों ताल में हमेशा पानी रहता था. लेकिन इस बार इनमें से पांच ताल बारिश के मौसम में भी सूखे पड़े हुए थे. साफ है कि बारिश जो पहले 3000 मीटर पर होती थी, अब  4000 मीटर से ऊपर हो रही है. 

 श्री कंठ की पहाड़ियों के दो किमी के दायरे में फैले 7 Lake यानि सात ताल शुरु होते हैं..लेकिन यहां हाल के कुछ सालों में सेब के बागान भी लगाए गए हैं…यहां बसे इक्का दुक्का स्थानीय लोगों ने बताया कि कुछ सालों में झील के पानी में कमी आई है.

श्रीकंठ की पहाड़ियों के दो किमी के दायरे में 7 झीलें यानी सात ताल हैं. यहां हाल के कुछ सालों में सेब के बागान भी लगाए गए हैं. NDTV की पड़ताल में यहां बसे इक्का दुक्का स्थानीय लोगों ने बताया कि कुछ सालों में झील के पानी में कमी आई है.

पेड़ों की कटाई से मिट्टी ढीली 

श्रीकंठ पहाड़ के नीचे आबादी भले न हो लेकिन पुराने चीड़ के पेड़ की कटाई के निशान और हाई एल्टीट्यूड सेब के बाग नजर आते हैं. इसकी वजह से भी श्रीकंठ पर्वत के पर्यायवरण के पारिस्थिति तंत्र को बड़ा नुकसान पहुंचा है. श्रीकंठ पर्वत पर ग्लेशियर का लगातार कम हो रहे हैं और पहाड़ों की मिट्टी को रोकने वाले बड़े-बड़े चीड़ के पेड़ों की कटाई जारी है. इसकी वजह से ऊंचाई पर भारी बारिश हुई जोतीन जगह पर लैंड स्लाइड की वजह बनी. ऊंचाई और संकरी गहरी खाई में खीर गंगा के बहने की वजह से पानी के साथ हजारों टन मलबा तेजी से आया और यह पूरे धराली को निगल गया. 

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