
- दिल्ली HC ने पतंजलि आयुर्वेद और पतंजलि फूड्स को डाबर के च्यवनप्राश विज्ञापनों से जुड़े विवाद में चेतावनी दी है
- कोर्ट ने पतंजलि को पूर्व आदेश के उलट विज्ञापन वापसी की बजाय केवल आपत्तिजनक पंक्तियां हटाने का निर्देश दिया था
- डाबर ने पतंजलि के विज्ञापनों को भ्रामक और मानहानिकारक बताया है.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और पतंजलि फूड्स लिमिटेड को चेतावनी दी है. कोर्ट की ये चेतावनी डाबर इंडिया के साथ च्यवनप्राश के विज्ञापनों को लेकर चल रहे विवाद को लेकर दी गई है. रामदेव की कंपनी इस विवाद के बीच कोर्ट में अपनी अपली पर अड़ी हुई है. ऐसे में न्यायालय ने चेतावनी दी है कि अगर कंपनी अपनी अपील वापस नहीं लेती है तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने इस सप्ताह अपील पर सुनवाई करते हुए पतंजलि द्वारा अपने प्रचार अभियान से अपमानजनक संदर्भों को हटाने के लिए दिए गए एक पूर्व आदेश को चुनौती देने के फैसले पर आपत्ति जताई है. पीठ ने कहा कि जुलाई में पारित मूल आदेश में विज्ञापन को पूरी तरह से वापस लेने का आदेश नहीं दिया गया था, बल्कि पतंजलि को केवल कुछ आपत्तिजनक पंक्तियों को हटाने का निर्देश दिया गया था.
आपको बता दें कि ये विवाद कोई नया नहीं है. इसकी शुरुआत दिसंबर 2024 में हुई थी, जब भारत की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी उपभोक्ता वस्तु कंपनियों में से एक, डाबर ने पतंजलि के च्यवनप्राश विज्ञापन अभियान के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया. डाबर ने आरोप लगाया कि पतंजलि के दावे भ्रामक, मानहानिकारक और उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाले हैं.
डाबर, जो दशकों से च्यवनप्राश का विपणन कर रही है, ने कोर्ट को तर्क दिया कि पतंजलि के विज्ञापनों से पता चलता है कि उसके अपने उत्पादों सहित प्रतिद्वंद्वी उत्पादों में पारा होता है और इसलिए वे बच्चों के लिए असुरक्षित हैं. कंपनी ने पतंजलि के इस दावे को भी चुनौती दी कि उसका च्यवनप्राश 51 जड़ी-बूटियों से तैयार किया गया था, जबकि डाबर के संस्करण में केवल 40 जड़ी-बूटियां थीं.
डाबर का कहना था कि विज्ञापनों ने पीढ़ियों से बने उपभोक्ता विश्वास को ठेस पहुंचाई है. योग गुरु रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा सह-स्थापित पतंजलि ने अपने अभियान का बचाव करते हुए इसे वैध आत्म-प्रचार बताया. कंपनी ने कहा कि उसके विज्ञापनों में डाबर का नाम नहीं था और न ही उसकी सीधी तुलना की गई थी.
कंपनी ने तर्क दिया कि विवादित बयान उत्पाद लेबल सहित सार्वजनिक जानकारी पर आधारित थे, और इसलिए उन्हें भ्रामक नहीं माना जा सकता.3 जुलाई, 2025 को, दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने डाबर की याचिका पर एक अंतरिम आदेश पारित किया. उन्होंने पतंजलि को निर्देश दिया कि वह अपने प्रिंट विज्ञापनों से 40 जड़ी-बूटियों से बने साधारण च्यवनप्राश से ही क्यों संतुष्ट हों?" वाक्यांश हटा दे.
इसके अलावा, पतंजलि को अपने टेलीविज़न विज्ञापन में बदलाव करने का आदेश दिया गया. जिसमें स्टोरीबोर्ड के उन हिस्सों को हटा दिया गया, जिनसे यह संकेत मिलता था कि केवल आयुर्वेदिक ज्ञान रखने वाले ही "असली च्यवनप्राश" बना सकते हैं. न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि पतंजलि अपना अभियान जारी रखने के लिए स्वतंत्र है, बशर्ते ये बदलाव लागू हों.
पतंजलि ने बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय के वाणिज्यिक अपीलीय खंड में इस आदेश को चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि यह निर्णय वाणिज्यिक भाषण और दिखावे के स्थापित सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है. कंपनी ने तर्क दिया कि अपने उत्पाद की विशिष्टता को उजागर करने के उसके अधिकार में कटौती नहीं की जानी चाहिए. जब मामला न्यायमूर्ति हरि शंकर और न्यायमूर्ति शुक्ला के समक्ष आया, तो पीठ ने अपील पर अपनी असहमति व्यक्त की. यह देखते हुए कि एकल न्यायाधीश ने केवल विशिष्ट अपमानजनक सामग्री को हटाने के लिए सीमित निर्देश जारी किए थे, पीठ ने सुझाव दिया कि पतंजलि की चुनौती अनावश्यक थी.
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