
- दिल्ली में सड़क किनारे लगा विशाल पेड़ गिरने से एक शख्स की मौत हो गई, बेटी घायल हो गई.
- राजधानी में ही ऐसे बहुत से पेड़ मिल जाएंगे, जिनकी जड़ें कंक्रीट में दबकर दम तोड़ रही हैं.
- पेड़ के एक मीटर दायरे में कोई निर्माण न करने का नियम है, अक्सर इसकी अनदेखी की जाती है.
दुनिया को जीवनदायिनी ऑक्सीजन देने वाले पेड़ अब खुद के लिए सांसें मांग रहे हैं. अपनी खोखली होती जड़ों को सहारा देने की मूक गुहार लगा रहे हैं. लेकिन शायद उनकी ये पुकार जिम्मेदार लोगों के कानों तक सही तरीके से नहीं पहुंच पा रही है. शायद इसी का नतीजा था कि गुरुवार को कालकाजी इलाके में सड़क किनारे लगा एक विशालकाय नीम का पेड़ कटी पतंग की तरह गिर गया. उसके नीचे दबकर बाइक सवार 50 वर्षीय शख्स की मौत हो गई जबकि उनकी 22 वर्षीय बेटी जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है. गुरुवार को दिल्ली में हुई भारी बारिश और जलभराव से एक ही दिन में 25 से अधिक पेड़ उखड़ गए.
दिल्ली में मूसलाधार बारिश बनी जानलेवा, कालकाजी इलाके में एक बड़ा पेड़ कार और बाइक पर गिरा, 2 घायल#Delhi | #Kalkaji pic.twitter.com/frN2xT53Dy
— NDTV India (@ndtvindia) August 14, 2025
कंक्रीट में घिरकर कमजोर हो रहे वृक्ष
इस दर्दनाक घटना ने जिस बड़े मुद्दे की तरह लोगों का ध्यान खींचा, वो है कंक्रीट की कैद में हांफते पेड़ों का मुद्दा. अक्सर देखा होगा कि फुटपाथ पर और सड़क किनारे बने पेड़ों को क्रंक्रीट से इस कदर घेर दिया जाता है कि उनकी जड़ों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता और वे कमजोर हो जाती हैं. समय बीतने के साथ ये जड़ें इतनी कमजोर हो जाती हैं कि वो विशाल पेड़ों का बोझ नहीं झेल पातीं और फिर वही होता है, जो गुरुवार को कालकाजी में हुआ. कमजोर जड़ों पर खड़े ये पेड़ बारिश हो या आंधी, खुद को संभाल नहीं पाते और जान-माल के लिए खतरा बन जाते हैं. इससे पहले मई के महीने में तेज आंधी में भी दिल्ली में सैकड़ों पेड़ उखड़ गए थे या क्षतिग्रस्त हो गए थे. एक अनुमान के मुताबिक, अकेले मई के महीने में ही दिल्ली में 10 हजार से ज्यादा पेड़ टूटे या क्षतिग्रस्त हो गए थे.

पेड़ों के इर्दगिर्द एक मीटर जगह छोड़नी जरूरी
यूं तो पेड़ों की रक्षा के लिए नियम-कानून बरसों पहले से मौजूद हैं. राजधानी दिल्ली में पेड़ों की सुरक्षा के लिए करीब 31 साल पहले एक कानून बनाया गया था. इसका नाम है- दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994. इसका मकसद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पेड़ों को गैरकानूनी तरीके से काटने-हटाने से रोकना और नुकसान से बचाना है. नियम है कि पेड़ों के इर्दगिर्द एक मीटर तक का क्षेत्र खुला रखा जाना चाहिए ताकि उन्हें पर्याप्त पानी और पोषण मिल सके. बिना इजाजत पेड़ काटने या हटाने पर जेल और जुर्माने का भी नियम है. लेकिन इन नियमों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है.
DPTA कानून में जेल-जुर्माने का नियम
- 1994 में बने DPTA कानून में दिल्ली में पेड़ों की गैरकानूनी कटाई, छंटाई या कंक्रीट से चोक करने जैसे मामलों में सख्त सजा का प्रावधान है.
- इस कानून की धारा 8 में कहा गया है कि बिना इजाजत पेड़ हटाने पर एक साल की कैद या 1000 रुपये जुर्माना या दोनों हो सकेंगे.
- इसमें नियम है कि हर काटे जाने वाले पेड़ के बदले 10 पौधे लगाने होंगे. इस कानून से पहले वृक्ष संबंधी अपराधों पर शायद ही कोई कार्रवाई होती थी.
- दिल्ली में हरियाली बढ़ने का श्रेय इसी कानून को जाता है. 1994 में दिल्ली में 22 वर्ग किमी का हरित क्षेत्र था, जो 2021 में बढ़कर 342 वर्ग किमी हो गया था.
एनजीटी ने भी दिए थे सख्त निर्देश
एनजीटी के 2013 के आदेश में अधिकारियों को पेड़ों के चारों ओर एक मीटर के दायरे से कंक्रीट हटाने का निर्देश दिया गया था, लेकिन एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इसका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पाया है. इसके बाद जून 2019 में भी एनजीटी ने सख्त निर्देश जारी किए थे.
- एनजीटी ने आदेश में कहा था कि पेड़ों पर किसी तरह के साइन बोर्ड, नेम प्लेट, विज्ञापन, बिजली के तार आदि नहीं लगाए जा सकते.
- पेड़ों के इर्दगिर्द एक मीटर तक जगह छोड़नी होगी. इस जगह को क्रंक्रीट वगैरा से सील नहीं किया जा सकेगा.
- अगर कहीं पेड़ों के आसपास कंक्रीट भर दी गई है, तो उसे हटाना होगा. सुनिश्चित करना होगा कि पेड़ों के आसपास पर्याप्त मिट्टी रहे.
- पेड़ों के एक मीटर के दायरे में कंक्रीट से या किसी अन्य चीज से कोई कंस्ट्रक्शन, रिपेयरिंग आदि का काम नहीं किया जाएगा.
- अगर कहीं पर फुटपाथ या सड़क बनाने की जरूरत होगी तो सुनिश्चित करना होगा कि पेड़ों की जड़ों तक पर्याप्त पानी पहुंचे.
- पेड़ों को कंक्रीट से घेर देने से न सिर्फ उनकी जड़ें कमजोर हो जाती है बल्कि ये उन्हें धीरे-धीरे मौत की तरफ ले जाता है.
क्या कहते हैं पर्यावरणविद
पर्यावरणविदों का कहना है कि पेड़ों के कमजोर होकर गिने के पीछे बड़ा कारण उनके इर्द-गिर्द कंक्रीट का इस्तेमाल किया जाना है. राजधानी में अक्सर फुटपाथ और सड़क के बीच लगे पेड़ों को नीचे से कंक्रीट से सील कर दिया जाता है. ऐसा साफ-सफाई और टिकाऊपन बढ़ाने के लिए किया जाता है, लेकिन इससे पेड़ों को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिल पाते और वे समय के साथ कमजोर हो जाते हैं.
सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट के कार्यकारी निदेशक सुनील कुमार अलेडिया ने कहा कि पेड़ों के बार-बार उखड़ने के पीछे मुख्य कारण इनके इर्द-गिर्द कंक्रीट का इस्तेमाल है. काफी प्रयासों के बावजूद इस समस्या के समाधान के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया गया है. अगर गौर से देखें तो पाएंगे कि कई पेड़ों की छालें काली पड़ गई हैं. यह इस बात का संकेत है कि पेड़ों को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिल रहे हैं.

ग्रीनपीस इंडिया के जलवायु एवं ऊर्जा अभियानकर्ता आकिज फारूक ने कहा कि पेड़ों को काटे बिना, उनके इर्द-गिर्द कंक्रीट भरकर उन्हें धीरे-धीरे नष्ट किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि आप देखेंगे कि पार्कों या जंगलों में लगे पेड़ शायद ही कभी गिरते हैं, लेकिन सड़क किनारे लगे पेड़ जिनकी जड़ें फुटपाथों के नीचे दबी होती हैं, गिर जाते हैं. कंक्रीट का ऐसा इस्तेमाल उनकी जड़ों को कमजोर कर देता है, उनकी ग्रोथ को रोकता है और पानी-ऑक्सीजन तक उनकी पहुंच अवरुद्ध कर देता है.
सुप्रीम कोर्ट में बताया, हर घंटे कट रहे 5 पेड़
दिल्ली के रिज एरिया में साल 2024 में एक हजार से अधिक पेड़ गैरकानूनी तरीके से काट दिए गए थे. ये मामला पहले हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. इसके बाद राजधानी में बिना इजाजत पेड़ काटने पर पूरी तरह रोक की मांग करते हुए कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. तब सुप्रीम कोर्ट में एमसीडी ने बताया था कि 2019, 2020 और 2021 में सभी श्रेणियों के 1,33,117 पेड़ काटे या हटाए गए थे. मतलब हर साल औसतन 44 हजार से ज्यादा पेड़ और हर घंटे पांच पेड़ शहर में काटे गए. इन आंकड़ों को देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जिम्मेदार अफसरों को कड़ी फटकार लगाई थी. कोर्ट ने कहा था कि उसके द्वारा गठित पैनल की बिना इजाजत कोई भी पेड़ नहीं काटा जाएगा. अगर पेड़ों की संख्या ज्यादा होगी तो खुद सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी लेनी होगी.

पेड़ों की जनगणना में क्या निकला?
सुप्रीम कोर्ट के कहने पर दिसंबर 2023 में एमसीडी ने राजधानी में पहली बार पेड़ों की जनगणना का काम शुरू किया था. अप्रैल 2024 तक 12 जोन में करीब दो लाख पेड़ों की गिनती कर ली गई थी. प्रारंभिक आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में सबसे ज्यादा पेड़ केशवपुरम (64,383) और साउथ जोन (43,810) में पाए गए. वहीं करोल बाग के 762 पार्कों में 25,122 गिने गए. इनमें से अधिकतर ऐसे पेड़ हैं, जो सड़कों के किनारे या फुटपाथ पर लगे हैं. इसमें दिल्ली के वन विभाग के अंडर आने वाले वनों में लगे पेड़ों की गिनती नहीं की गई थी. जनगणना में पेड़ों की जियो टैगिंग भी की गई थी. पेड़ों पर पेंट से नंबर भी लिखे गए थे.
लुटियंस जोन की देखरेख करने वाली एनडीएमसी (न्यू दिल्ली म्यूनिसिपल काउंसिल) ने भी 2020 में अपने इलाके में ऐसी ही जनगणना की थी. इस दौरान 52.5 लाख पेड़ों की गिनती की गई थी. इस जनगणना में तो हर पेड़ की परिधि, ऊंचाई, फैलाव, विकृति, फल-फूल खिलने के समय, कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करने और ऑक्सीजन छोड़ने की क्षमता जैसे जटिल विवरणों को भी दर्ज किया गया था.

4 साल में हो सकता है 33% ग्रीन कवर
दिल्ली में हरियाली बढ़ाने और पूरे शहर में पेड़ों की जनगणना करने के लिए देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (FRI) ने मार्च 2025 में सुप्रीम कोर्ट में एक ड्राफ्ट एक्शन प्लान दाखिल किया था. इसमें कहा गया था कि दिल्ली में ग्रीन कवर को 33 फीसदी तक बढ़ाने में कम से कम चार साल का वक्त लग सकता है. हरियाली बढ़ाने पर 3.69 करोड़ रुपये और पेड़ों की जनगणना पर 4.43 करोड़ रुपये का अनुमानित खर्च बताया था. एफएसआई की 2023 की रिपोर्ट में बताया गया था कि दिल्ली में कुल वन और वृक्षावरण क्षेत्र 371.31 वर्ग किमी है, जो इसके 1,483 वर्ग किमी के कुल क्षेत्र का लगभग 25% है. इसमें से 195.28 वर्ग किमी एरिया वन विभाग के अधीन है.
खतरनाक पेड़ों की पहचान और हटाने के निर्देश
गुरुवार की घटना के बाद मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सड़कों पर लगे खतरनाक पेड़ों की पहचान करने और जरूरी होने पर उन्हें हटाने के निर्देश दिए हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि मॉनसून के मौसम में भारी बारिश व तेज हवाओं के चलते सड़क किनारे या सार्वजनिक स्थलों पर लगे अत्यधिक बड़े, असुरक्षित या जर्जर पेड़ लोगों की सुरक्षा व संपत्ति आदि के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं. ऐसे पेड़ों की समय रहते छंटाई, देखरेख या स्थानांतरण जरूरी है. उन्होंने प्रत्येक विभाग और एजेंसियों में जिम्मेदार अधिकारियों को इस कार्य की निगरानी के लिए नामित करने का भी निर्देश दिया है.

पेड़ों में भी जान होती है...
पेड़ों में भी जान होती है, वह भी मनुष्यों और जानवरों की तरह दर्द, खुशी, थकान आदि का अनुभव करते हैं, ये बात भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने 1901 में ही वैज्ञानिक रूप से साबित कर दी थी. उन्होंने अपने बनाए गए एक खास उपकरण क्रेस्कोग्राफ (Crescograph) के जरिए प्रयोगों में दिखाया कि पौधों में बाहरी उत्तेजनाओं जैसे कि चोट लगने, ज़हर देने या बिजली का झटका लगने पर प्रतिक्रिया देने की क्षमता होती है. उन्होंने यह भी साबित किया कि जब पेड़-पौधों को चोट लगती है तो वे भी एक तरह की पीड़ा का अनुभव करते हैं और धीरे-धीरे ठीक होते हैं. उन्होंने प्रयोगों से निष्कर्ष निकाला कि पेड़-पौधे संवेदनशील जीव होते हैं जिनमें जीवन के सभी लक्षण मौजूद होते हैं.
हमारे लिए जीवनदायिनी हैं पेड़
पेड़ हमारे लिए जरूरी ऑक्सीजन पैदा करते हैं और जानलेवा कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखते हैं. कुछ अध्ययनों के मुताबिक, एक बड़ा बरगद का पेड़ एक दिन में 1,000 लीटर से ज़्यादा ऑक्सीजन पैदा कर सकता है. एक परिपक्व पेड़ एक साल में लगभग 10 से 20 किलो कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है. कुछ और अनुमानों के अनुसार, एक पेड़ अपने पूरे जीवनकाल में लगभग एक टन कार्बन डाइऑक्साइड सोख सकता है. यही वजह है कि पेड़ हमारे लिए, हमारे पर्यावरण के लिए इतने महत्वपूर्ण हैं. लेकिन इतनी अहम चीज भी विकास और आधुनिकता की भेंट चढ़ती जा रही है.
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