
- केंद्र ने 4 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए क्लोरफेनिरामाइन मेलिएट युक्त सिरप पर 2 साल पहले प्रतिबंध लगाया था.
- कोल्ड्रिफ सिरप से 16 से अधिक बच्चों की मौत हुई, जिसमें प्रतिबंधित फॉर्मूला और चेतावनी लेबल नहीं था.
- श्रीसन फार्मा जैसी कंपनियों ने बिना गुणवत्ता प्रमाण पत्र के जहरीला कफ सिरप बनाया.
कप सिरप से 16 से अधिक बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन? यह सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि देश के स्वास्थ्य तंत्र और दवा नियमन प्रणाली पर एक गहरा और दर्दनाक सवाल है, जिस फॉर्मूले को जीवन देना था, वह उस घर में 'मौत का ज़हर' कैसे बन रहा था? 16 से अधिक मासूमों की जान लेने वाली इस त्रासदी का असली जिम्मेदार कौन है. यदि गुणवत्ता नियंत्रण में इतनी भयानक खामियां हैं, तो यह महज एक दुर्घटना नहीं है बल्कि नियामक व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं.
बैन किया हुआ फॉर्मूला... और बेतल पर चेतावनी भी नहीं!
सवाल इसलिए है कि दो साल पहले केंद्र सरकार ने 18 दिसंबर 2023 को एक स्पष्ट आदेश जारी किया था कि 4 साल से छोटे बच्चों को क्लोरफेनिरामाइन मेलिएट (2 mg) और फिनाइलफ्राइन एचसीएल (5 mg) युक्त कफ सिरप नहीं दिए जाएंगे, क्योंकि इनका लाभ कम और नुकसान ज्यादा पाया गया. आदेश में यह भी अनिवार्य किया गया था कि ऐसी दवाओं के लेबल पर चेतावनी लिखी जाए. लेकिन इस आदेश का पालन नहीं हुआ. न तो दवा कंपनियों ने लेबल बदले, न ही राज्य सरकारों ने इसे लागू करने या जागरूकता फैलाने के लिए कोई ठोस कदम उठाया. इसका दुखद परिणाम मध्य प्रदेश में सामने आया, जहां 'कोल्ड्रिफ सिरप' से 16 से अधिक बच्चों की मौत हो गई. इस सिरप में वही बैन किया हुआ फॉर्मूला (पेरासिटामोल + क्लोरफेनिरामाइन + फिनाइलफ्राइन) था, और बोतल पर कोई चेतावनी नहीं थी.
न तो चेतावनी लेबल... और न ही गुणवत्ता प्रमाण पत्र
केंद्र सरकार ने फाइल नंबर 04-01/2022-डीसी के तहत इस फॉर्मूले पर प्रतिबंध लगाया था. लेकिन जांच में पाया गया कि श्रीसन फार्मा जैसी कंपनियां, जो इस सिरप को बेच रही थीं, ने न तो चेतावनी लेबल लगाया और न ही WHO-GMP (गुणवत्ता प्रमाण पत्र) हासिल किया. देश में 5,308 एमएसएमई दवा कंपनियों में से 3,838 ने यह प्रमाण पत्र लिया, लेकिन 1,470 कंपनियों ने इसके लिए आवेदन तक नहीं किया. श्रीसन फार्मा भी इन्हीं में शामिल थी, जो बिना प्रमाण पत्र के जेनेरिक दवाएं बनाकर बेच रही थी.
जहरीला केमिकल... धड़ल्ले से उपयोग
CDSCO की जांच में श्रीसन फार्मा की फैक्ट्री में डीईजी (डाइएथिलीन ग्लाइकॉल) से भरे बिना बिल वाले कंटेनर मिले. यह अत्यंत जहरीला केमिकल है, जिसे सिरप में केवल 0.1% तक मिलाने की अनुमति है, लेकिन कंपनी 46-48% तक डीईजी का उपयोग कर रही थी. जांच से पता चला कि फिनाइलफ्राइन एचसीएल, जो एक महंगा केमिकल है, की लागत बचाने के लिए कंपनी सस्ते और खतरनाक डीईजी का इस्तेमाल कर रही थी. यह लापरवाही गांबिया कफ सिरप कांड के बाद आई सख्त चेतावनियों के बावजूद हुई, जिसमें केंद्र ने सभी दवा कंपनियों के लिए WHO-GMP प्रमाण पत्र अनिवार्य किया था.
केंद्र सरकार ने दवाओं के लाइसेंसिंग के लिए ऑनलाइन नेशनल ड्रग लाइसेंसिंग सिस्टम (ONDLS) और CAPA पोर्टल बनाया, जो सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (CDAC) और CDSCO की साझेदारी में विकसित किए गए. ये सिंगल-विंडो प्लेटफॉर्म दवाओं, कॉस्मेटिक्स और चिकित्सा उत्पादों के लाइसेंस प्रक्रिया को सुगम बनाने और उद्योगों में सुधारात्मक कार्रवाई के लिए हैं. लेकिन केवल 18 राज्य ही इनसे जुड़े, बाकी निष्क्रिय रहे. दिलचस्प बात यह है कि ब्लड बैंक लाइसेंसिंग के लिए सभी राज्य ऑनलाइन हो चुके हैं, लेकिन दवाओं के लाइसेंसिंग में यह प्रगति नहीं दिखी.
कुल मिलाकर, केंद्र सरकार ने दो साल पहले ही चेतावनी और प्रतिबंध जारी कर दिए थे. लेकिन राज्य सरकारों की लापरवाही और दवा कंपनियों की गैर-जिम्मेदारी ने मध्य प्रदेश में बच्चों की जान ले ली. देश में 1,400 से अधिक दवा फैक्ट्रियां बिना गुणवत्ता प्रमाण पत्र के चल रही हैं, जो एक गंभीर चिंता का विषय है. यह घटना न केवल नियामक प्रणाली की खामियों को उजागर करती है, बल्कि बच्चों की सुरक्षा के लिए तत्काल और कठोर कदम उठाने की जरूरत को भी रेखांकित करती है.
पहले दवाओं के नाम पर मौतें होती हैं... और फिर, उस गंभीर अपराध की लीपापोती करने के लिए राहत राशि दी जाती है और फ़ाइल को हमेशा के लिए बंद कर दिया जाता है. यह रवैया उन माता-पिता के लिए अपमान बन गया है, जो अपने बच्चों की लाशें लेकर न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं.
फार्मा इंडस्ट्री की साख पर सवाल
यह मामला केवल कुछ शहरों तक सीमित नहीं, यह पूरी फार्मा इंडस्ट्री की साख पर सवाल है. जब जहरीली दवाएं बच्चों की जान ले रही हों और सिस्टम सुस्त पड़ा हो, तो यह देश के हर नागरिक के लिए खतरे की घंटी है.
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