कोरोना वायरस (Coronavirus) के दिल्ली में दस्तक देने और इसे लेकर देशभर में बढ़ती दहशत के बीच दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि कोरोना से घबराने या दहशत में आने की कोई जरूरत नहीं है. उनका कहना है कि सावधानी बरतने से ही इसकी चपेट में आने से बचा जा सकता है. यह पूछे जाने पर कि क्या कोरोना वायरस के खतरे के मुकाबले इससे लोगों में दहशत ज्यादा है? डा . गुलेरिया ने कहा, 'कोरोना से भयभीत होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है क्योंकि इसमें मौत का खतरा महज दो से तीन प्रतिशत ही है. हां, यह सही है कि इसके मामले अचानक अधिक संख्या में सामने आने के कारण दहशत फैल गई. इस दहशत से बचने के लिए यह समझना जरूरी है कि अब तक कोरोना के जितने भी मामले सामने आये हैं उनमें लगभग 80 प्रतिशत मरीज हल्की बीमारी का शिकार हुए और सामान्य दवाओं से ही ठीक हो गए, क्योंकि मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही वायरस को खत्म कर देती है.' उनका कहना है कि चिंता सिर्फ उन मरीजों के लिये होती है जो बुजुर्ग हैं और जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है. ऐसे मरीजों को आईसीयू में रखना पड़ता है क्योंकि इनमें ही मौत का खतरा रहता है. इसलिये जनसामान्य को भयभीत होने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है.
कोरोना वायरस (Coronavirus) और आम जुकाम-बुखार में कैसे फर्क पहचानें
उन्होंने कहा कि समझने वाली दूसरी बात यह है कि इस वायरस के संक्रमण का खतरा संक्रमित व्यक्ति के बहुत नज़दीक, यानी दो से तीन मीटर करीब आने के दौरान ही होता है. अगर आप संक्रमित व्यक्ति से दूर हैं तो यह जरूरी नहीं है कि इसका संक्रमण आप तक पहुंच ही जाए. इसलिये यह मानना कतई उचित नहीं है कि दिल्ली में कुछ लोगों को संक्रमण हो गया है तो पूरी दिल्ली में संक्रमण फैल जाएगा. ऐसी ही कुछ और सवालों के जवाब दिए हैं डॉ. गुलेरिया ने.
कोरोना के खतरे के कारण स्कूलों के बंद की पृष्ठभूमि में बच्चों पर इस वायरस का खतरा किस हद तक है?
डा . गुलेरिया ने कहा- अगर हम आंकड़ें देखें तो चीन सहित अन्य देशों में कोरोना वायरस का संक्रमण बच्चों में कम और वयस्कों में ज्यादा हुआ है. लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिहाज से देखें तो बच्चों और बुजुर्गों में संक्रमण की आशंका ज्यादा होती है. इसलिये बच्चों और बुजुर्गों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. अब तक के अध्ययन से यह एक अहम बात सामने आई है कि संक्रमित बच्चे से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि बच्चे वयस्क की भांति एहतियात नहीं बरत पाते हैं. अगर बच्चों में खांसी, जुकाम और बुखार के लक्षण हैं तो अभिभावक उन्हें घर पर ही रख कर पूरी सतर्कता से देखभाल करें. ऐसे बच्चे को स्कूल भेजने पर उसके खांसने या छींकने से पूरी क्लास में संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा होता है.
मौसम में अचानक आए बदलाव के कारण कोरोना वायरस के अधिक समय तक टिके रहने की आशंका होती है?
डॉक्टर गुलेरिया : सामान्य तापमान में उमस होने से वायरस के पनपने का खतरा अधिक है. लेकिन उमस कम होने और तापमान बढ़ने पर गर्मी में इजाफा, इस वायरस के खात्मे की वजह बन सकता है. लेकिन इस तथ्य की पुष्टि अभी नहीं हुई है क्योंकि सिंगापुर उष्ण जलवायु वाला क्षेत्र है वहां की गर्म जलवायु में भी कोरोना का संकट गहरा चुका है. इसलिए यह कहना पूरी तरह से सही नहीं है कि गर्मी होने पर यह वायरस खत्म हो जाएगा. हां, यह सही है कि इसका वजूद बने रहने की संभावना जरूर कम हो जाएगी.
होली के त्यौहार में क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
डॉक्टर गुलेरिया : होली की भीड़ में अगर एक संक्रमित व्यक्ति भी मौजूद हुआ तो इसका संक्रमण वहां मौजूद सभी लोगों में हो सकता है. इसलिये समूह या भीड़ के बजाय अपने परिवार में ही त्यौहार मनायें जिससे इस वायरस को नियंत्रित करने में मदद मिल सके.
क्या तैयारी है?
डॉक्टर गुलेरिया : एम्स देश का सबसे अग्रणी संस्थान है. इसमें हमने सरकार के निर्देशों के मुताबिक सभी जरूरी इंतजाम पहले ही कर लिए हैं. मरीजों को अलग रखने के लिए आइसोलेशन केन्द्र बनाए गए हैं. सेंपल परीक्षण के लिए हमारी प्रयोगशालायें सक्रिय हैं. सरकार की तरफ से भी जरूरत पड़ने पर अस्पतालों में अतिरिक्त इंतजाम किए गए हैं. केन्द्र और राज्यों के साथ सामंजस्य कायम कर नियमित बैठकों का सिलसिला जारी है. स्थिति पर निरंतर निगरानी रखते हुए लगातार समीक्षा की जा रही है. स्थिति की गंभीरता को देखते हुये सभी प्रकार के हालात से निपटने के लिए पुख्ता कार्ययोजना तैयार है, लेकिन हमें पूरी उम्मीद है कि इस कार्ययोजना को जमीन पर उतारने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.
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