विज्ञापन
This Article is From Jul 21, 2016

कैम्पा बिल : जंगलों को बचाने के लिये बन रहे बिल पर शंकाएं बरकार

कैम्पा बिल : जंगलों को बचाने के लिये बन रहे बिल पर शंकाएं बरकार
कैम्पा बिल के तहत जंगलों की भरपाई के लिए एक फंड बनाया जाना है
नई दिल्ली: जंगलों के कटाव के बदले खाली ज़मीन पर पेड़ लगाने और वन्य जीवन को बचाने के लिये लाये जा रहे कैम्पा कानून पर सरकार ने कांग्रेस के साथ काफी हद तक तालमेल कर लिया है। गुरुवार को संसद में गुजरात में दलितों पर हो रहे अत्याचारों पर बहस के चलते इस बिल पर चर्चा नहीं हो सकी और अब इसे सोमवार को पास कराया जायेगा। कैम्पा बिल लोकसभा से पास हो चुका है और सरकार इसे जल्द से जल्द राज्यसभा से पास कराना चाहती है। अब लगता है कि ये कानून जल्द ही पास हो जायेगा लेकिन इस कानून के कई पहलुओं को लेकर अभी सवाल हैं।

इस प्रस्तावित कानून का मकसद है उद्योग और कारखानों के लिये काटे गये जंगलों के बदले नये पेड़ लगाना और कमजोर जंगलों को घना और स्वस्थ बनाना। कंपनियां वन भूमि के इस्तेमाल के बदले मुआवजे के तौर पर कंपनेसेटरी अफॉरेस्टेशन फंड में पैसा जमा करती हैं। जिसके लिये Compensatory Afforestation Management and Planning Authority या कैम्पा बनाई जा रही है।

कानून के तहत सरकार कैम्पा को संवैधानिक दर्जा देगी जो फंड के इस्तेमाल का काम देखेगी। सीएएफ फंड का 90 प्रतिशत राज्यों को औऱ 10 प्रतिशत केंद्र के पास रहेगा। फंड का इस्तेमाल नये जंगल लगाने और वन्य जीवों को बसाने, फॉरेस्ट इकोसिस्टम को सुधारने के अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिये होगा। लेकिन जानकारों को इस बिल पर शंकाएं भी हैं।

कैम्पा फंड में अब तक 40 हज़ार करोड़ रुपया जमा हो चुका है। ज़ाहिर है इतनी बड़ी रकम से बड़े बदलाव किये जा सकते हैं लेकिन 2013 में आई सीएजी रिपोर्ट में जिस तरह कैम्पा फंड के दुरुपयोग की खबरें आईं उसे लेकर जानकार नये बिल में कई प्रावधानों की कमी का जिक्र कर रहे हैं। खास तौर से इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट शब्द के इस्तेमाल को लेकर।

पर्यावरण नियमों के जानकार और वकील ऋत्विक दत्ता कहते हैं, ‘सीएजी की उस रिपोर्ट में कैम्पा फंड का अधिकतर हिस्सा अधिकारियों के विदेशी दौरों पर खर्च हुआ, एसी लगाने में खर्च हुआ, टाइल्स लगाकर बाथरूम को चमकाने में खर्च हुआ लेकिन जंगल की वही हालत है जो पहले थी। इसलिये बिल में जब इन्फ्रास्ट्रचर डेवलपमेंट शब्द इस्तेमाल किया जा रहा है तो उसकी परिभाषा कहीं पर नहीं बताई गई है। कोई नहीं जानता कि इस इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर क्या होगा?’

फंड के इस्तेमाल में ग्रामसभाओं की भागीदारी को लेकर कोई प्रावधान नहीं है जबकि वन अधिकार कानून के मुताबिक ग्रामसभाओं की सहमति लेना ज़रूरी है। कांग्रेस का कहना है कि ये कानून वन अधिकार कानून का उल्लंघन करता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस प्रावधान को लेकर पहले पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को चिट्ठी लिखी थी जिसमें कानून में संशोधन करने की बात कही। रमेश का विरोध आदिवासियों के वन अधिकारों को लेकर था। बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी अपनी पार्टी की बैठक में कहा कि सरकार आदिवासियों के अधिकारों का हनन कर रही है। कांग्रेस ने बिल में एक संशोधन का प्रस्ताव रखा है लेकिन उसके पास अभी लेफ्ट औऱ जेडीयू जैसी पार्टियों का ही समर्थन है जो पर्याप्त नहीं होगा।

सीपीआई के नेता डी राजा ने गुरुवार को कहा कि सवाल सिर्फ जंगलों को लगाने और बचाने का नहीं है बल्कि ये भी है कि फंड के इस्तेमाल में ग्रामसभाओं की क्या भूमिका होगी। इसलिये संशोधन ज़रूरी है।

सूत्रों के मुताबिक पर्याप्त समर्थन न होने पर कांग्रेस अपने संशोधन पर वोटिंग नहीं करायेगी। उधर सरकार ने विपक्ष को भरोसा दिया है कि सीएएफ फंड को लेकर ग्रामसभा के रोल को वह प्रशासकीय नियमों (एक्ज़िक्यूटिव रूल्स) में शामिल करेगी।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com