नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश चुनाव में अपनी स्थिति सुधारने के लिए कांग्रेस हर दांव आजमाने की तैयारी में है। इसी सिलसिले में वो अगड़ी जाति के ग़रीबों के लिए आरक्षण का वादा कर सकती है। सूत्रों की मानें तो उत्तर प्रदेश के लिए कांग्रेस ने जो नई टीम बनाई है उसकी तरफ से ये प्रस्ताव दिया गया है कि अगड़ी जाति को आर्थिक आधार पर आरक्षण का वादा किया जाए। सूत्र ये भी बता रहे हैं कि पार्टी हाईकमान ने इस पर विचार की बात भी कही है। लेकिन असल समस्या इसे किस तरह लागू किया जाएगा इसे तय करने की है। इसलिए पार्टी ऐसे किसी वादे से पहले इसका मैकेनिज़्म तय कर लेना चाहती है।
मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था के तहत आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं दिया जा सकता। इसमें 27 फीसदी ओबीसी, 15 फीसदी एससी और साढ़े सात फीसदी एसटी के लिए आरक्षण तय है। ऐसे में अगर कांग्रेस इसी 50 फीसदी में से अगर अगड़ी जाति के ग़रीबों का कोटा निकालती है कि पिछड़े वर्ग में नाराज़गी पैदा होगी। इससे दांव उल्टा पड़ सकता है और पिछड़ी जातियां कांग्रेस से पूरी तरह छिटक सकती हैं। उसी तरह जैसे मोहन भागवत ने बिहार चुनाव से पहले आरक्षण की समीक्षा संबंधी बयान देकर बीजेपी के लिए गड्ढा खोद दिया था। कांग्रेस को इस खतरे की भी आशंका है। इसलिए उत्तर प्रदेश चुनाव में कोऑर्डिनेशन कमेटी के मुखिया बनाए गए प्रमोद तिवारी संभल कर कहते हैं कि पार्टी ने अभी ऐसा कोई फैसला नहीं लिया है। अगर इस तरह की कोई मांग आती है तो पार्टी उस पर विचार करेगी। कांग्रेस पिछड़ी जातियों के आरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध है।
उत्तर प्रदेश की चुनावी रणनीति तैयार करते समय कांग्रेस ने इस बार अगड़ी जातियों के समीकरण को ख़ास ध्यान में रखा है। शीला दीक्षित के तौर पर ब्राह्मण को सीएम पद का चेहरा बनाया है। संजय सिंह के रूप में ठाकुर चेहरे को प्रचार समिति की कमान सौंपी है। प्रमोद तिवारी को कोआर्डिनेशन कमेटी का मुखिया बनाया। दूसरी तरफ राज बब्बर को प्रदेश अध्यक्ष बना कर पिछड़ों में भी साथ जोड़ने की कोशिश की है। इसके अलावा ग़ुलाम नबी आज़ाद तो प्रदेश प्रभारी हैं ही, इमरान मसूद को उपाध्यक्ष बना कर मुस्लिमों को भी अपनी तरफ खींचने की कोशिश की है।
कांग्रेस में आर्थिक आधार पर आरक्षण को लेकर पहले भी विचार चलता रहा है। पार्टी लोकसभा चुनावों से पहले भी इस तरह का वादा कर चुकी है। यूपी में दलित चेहरे के तौर पर अपनी पहचान बना चुकी मायावती उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले कांग्रेस के ऐसे किसी दांव को चुनावी ड्रामा बता रही हैं। वे कहती हैं कि उन्होंने कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार को भी कई बार ये कहा और लिखा कि अगड़ी जाति के ग़रीबों को आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की जाए लेकिन कांग्रेस ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया। अब अगड़ी जाति के लोगों को बहकाने की कोशिश कर रही है जो होने वाला नहीं।
मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था के तहत आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं दिया जा सकता। इसमें 27 फीसदी ओबीसी, 15 फीसदी एससी और साढ़े सात फीसदी एसटी के लिए आरक्षण तय है। ऐसे में अगर कांग्रेस इसी 50 फीसदी में से अगर अगड़ी जाति के ग़रीबों का कोटा निकालती है कि पिछड़े वर्ग में नाराज़गी पैदा होगी। इससे दांव उल्टा पड़ सकता है और पिछड़ी जातियां कांग्रेस से पूरी तरह छिटक सकती हैं। उसी तरह जैसे मोहन भागवत ने बिहार चुनाव से पहले आरक्षण की समीक्षा संबंधी बयान देकर बीजेपी के लिए गड्ढा खोद दिया था। कांग्रेस को इस खतरे की भी आशंका है। इसलिए उत्तर प्रदेश चुनाव में कोऑर्डिनेशन कमेटी के मुखिया बनाए गए प्रमोद तिवारी संभल कर कहते हैं कि पार्टी ने अभी ऐसा कोई फैसला नहीं लिया है। अगर इस तरह की कोई मांग आती है तो पार्टी उस पर विचार करेगी। कांग्रेस पिछड़ी जातियों के आरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध है।
उत्तर प्रदेश की चुनावी रणनीति तैयार करते समय कांग्रेस ने इस बार अगड़ी जातियों के समीकरण को ख़ास ध्यान में रखा है। शीला दीक्षित के तौर पर ब्राह्मण को सीएम पद का चेहरा बनाया है। संजय सिंह के रूप में ठाकुर चेहरे को प्रचार समिति की कमान सौंपी है। प्रमोद तिवारी को कोआर्डिनेशन कमेटी का मुखिया बनाया। दूसरी तरफ राज बब्बर को प्रदेश अध्यक्ष बना कर पिछड़ों में भी साथ जोड़ने की कोशिश की है। इसके अलावा ग़ुलाम नबी आज़ाद तो प्रदेश प्रभारी हैं ही, इमरान मसूद को उपाध्यक्ष बना कर मुस्लिमों को भी अपनी तरफ खींचने की कोशिश की है।
कांग्रेस में आर्थिक आधार पर आरक्षण को लेकर पहले भी विचार चलता रहा है। पार्टी लोकसभा चुनावों से पहले भी इस तरह का वादा कर चुकी है। यूपी में दलित चेहरे के तौर पर अपनी पहचान बना चुकी मायावती उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले कांग्रेस के ऐसे किसी दांव को चुनावी ड्रामा बता रही हैं। वे कहती हैं कि उन्होंने कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार को भी कई बार ये कहा और लिखा कि अगड़ी जाति के ग़रीबों को आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की जाए लेकिन कांग्रेस ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया। अब अगड़ी जाति के लोगों को बहकाने की कोशिश कर रही है जो होने वाला नहीं।
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