श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पहुंचा चीन का 'जासूसी' जहाज, इन सुविधाओं से लैस होने के कारण भारत है चिंतित..

चीन का ये पोत अत्याधुनिक ट्रैकिंग तकनीकी से लैस है जो बैलिस्टिक मिसाइल और सैटेलाइट को भी ट्रैक कर सकता है.

श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पहुंचा चीन का 'जासूसी' जहाज, इन सुविधाओं से लैस होने के कारण भारत है चिंतित..

चीन का आधुनिक तकनीकी से लैस यह पोत बैलिस्टिक मिसाइल और सैटेलाइट को भी ट्रैक कर सकता है

नई दिल्‍ली :

चीन का पोत युआन वांग 5 (Yuan Wang 5) श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह (Hambantota port) पर पहुंच गया है. भारत की आपत्ति के बाद श्रीलंका ने इस पोत को आने देने की मंज़ूरी रोक दी थी लेकिन फिर मंज़ूरी दे दी. ये हंबनटोटो बंदरगाह पर 16 से 22 अगस्त तक रुकेगा. चीन ने अपनी तरफ़ से श्रीलंका को ये भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि इस पोत के ज़रिए वो जासूसी नहीं कर रहा. लेकिन श्रीलंका के पास ऐसा कोई ज़रिया या तकनीक मौजूद नहीं जिसके ज़रिए वो चीन के दावे की पड़ताल कर सके.

आख़िर चीन के इस पोत ( Chinese military survey ship) में ऐसा है क्या जिसे लेकर इसे जासूसी पोत कहा जाता है. 2007 में चीन के बेड़े में शामिल किया गया ये पोत उन सात पोतों में एक है जिसे चीन अनुसंधान पोत कहता है. चीन के पास ऐसे सात पोत हैं और ये पांचवें नंबर का पोत है इसलिए इसका नाम यूआंन वांग 5 है. ये पोत अत्याधुनिक ट्रैकिंग तकनीकी से लैस है जो बैलिस्टिक मिसाइल और सैटेलाइट को भी ट्रैक कर सकता है. ये जहां खड़ा होता है वहां से 750 KM के दायरे में डाटा इकट्ठा कर सकता है. हंबनटोटा दुनिया के अत्यधिक व्यस्त ईस्ट वेस्ट शिपिंग रूट के बहुत ही नज़दीक है जिससे इसकी रणनीतिक स्थिति और बढ़ जाती है.

हंबनटोटा पर खड़े होने से ये न सिर्फ़ भारतीय समुद्र तट के 160 किलोमीटर जितना क़रीब है बल्कि श्रीहरिकोटा के इसरो सैटेलाइट केन्द्र और कलपक्कम परमाणु संयत्र से जुड़े डाटा को भी जमा कर सकता है. ये कुडानकुलम परमाणु उर्जा संयत्र के डाटा को हासिल कर सकता है. इसके अलावा दक्षिण भारत के 6 नौसैनिक अड्डों की जासूसी भी कर सकता है.  हालांकि चीन इसे जासूसी जहाज़ मानने से इंकार करता रहा है लेकिन माना ये भी जाता है कि ये समुद्र के तल की ख़ास तौर पर मैंपिंग के ज़रिए नौसैनिक रक्षा कवच को भेदने संबंधी डाटा जमा कर सकता है. 

यह है श्रीलंका की मजबूरी 
भारत की आपत्ति के बाद भी श्रीलंका ने इस पोत को आने की इजाज़त दे दी तो इसके पीछे श्रीलंका की अपनी मजबूरी है. दरअसल, हंबनटोटा बंदरगाह को चीन ने ही विकसित किया है, यह 99 साल की लीज़ पर उसके पास है. अगर श्रीलंका मना करता तो चीन इसकी लागत वसूलने पर अभी अमादा हो सकता था जो आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के लिए दोहरी मार के बराबर होता. हालांकि ये भी एक तथ्य है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की भारत ने तेल से लेकर हर तरह की मदद दी है. भारत ने इस साल 3.8 बिलियन डॉलर का लाइन ऑफ़ क्रेडिट दिया है. सोमवार को ही भारत ने श्रीलंका को डोर्नियन हवाई जहाज़ भी दिया है जो इस देश को तस्करी आदि जैसी समुद्री चुनौतियों से निपटने में मददगार होगा. भारत से इतनी मदद के बाद भी श्रीलंका चीन के दबाव के आगे टिक नहीं सका.

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