ब्रह्मपुत्र नदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
भारत में आने से पहले ब्रह्मपुत्र करीब तेरह सौ किलोमीटर का सफर चीन के तिब्बत में तय कर चुकी होती है और उसी तिब्बत के शिगात्से इलाके में इससे मिलने वाली ज़ियाबुकू नदी का बहाव रोका जाना भारत के लिए चिंता की बात है.
ज़ियाबुकू ब्रह्मपुत्र की एक अहम सहायक नदी है जिस पर चीन ने करीब 74 करोड़ डॉलर की लागत से विशाल लाल हो हाइड्रो प्रोजेक्ट शुरू किया है. नदी का रुका बहाव मुख्य नदी ब्रह्मपुत्र पर भी असर डालेगा. इस मामले में सबसे बड़ी मुश्किल चीन के साथ पानी बंटवारे को लेकर भारत का किसी प्रकार के समझौते का नहीं होना है.
पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर ने एनडीटीवी से कहा, "दोनों देशों के बीच पानी का बराबरी और उचित बंटवारा करना बेहद जरूरी है. हमने नेपाल और बांग्लादेश से वाटर ट्रीट्री की है...भारत को अपने हक की सुरक्षा करनी होगी."
दरअसल चीन एक अरसे से किसी समझौते की गैरमौजूदगी और अपनी भौगोलिक स्थिति का लगातार बेजा फायदा उठाता रहा है. उसने भारत आने वाली नदियों पर कई बांध बनाए हैं. जानकारों के मुताबिक ऐसे में भारत को भी बड़े बांधों की जरूरत पड़ सकती है. राष्ट्रीय जल आयोग के पूर्व चेयरमैन एके बजाज ने एनडीटीवी से कहा, "सरकार ने अरुणाचल में ऐसे बांधों की साइटों की पहचान की है. लेकिन कई जगह पर स्थानीय विरोध की वजह से बांध नहीं बन पा रहे हैं. ब्रम्हपुत्र नदी में चीन की तरफ से आने वाले पानी के स्तर को नियंत्रित करने के लिए एक बड़े बांध की जरूरत होगी."
हालांकि साद्या से लेकर धुबरी तक करीब आठ सौ किमी लंबी ब्रह्मपुत्र घाटी में बांध बनाना भी आसान नहीं होगा क्योंकि नदी यहां शाखाओं में बंटकर बहती है और औसत चौड़ाई दस किमी तक होती है.
कई बार समस्याएं अनदेखी की वजह से ज्यादा बड़ी हो जाती हैं. भारत-चीन रिश्तों में ब्रह्मपुत्र के पानी का बंटवारा एक ऐसी ही मिसाल है. जाहिर है ऐसे में अब होने वाली मुश्किलों से रास्ता मौजूदा हालात और जरूरत को देखकर नए सिरे से तलाशना होगा ताकि समस्या का स्थायी हल ढूंढा जा सके.
ज़ियाबुकू ब्रह्मपुत्र की एक अहम सहायक नदी है जिस पर चीन ने करीब 74 करोड़ डॉलर की लागत से विशाल लाल हो हाइड्रो प्रोजेक्ट शुरू किया है. नदी का रुका बहाव मुख्य नदी ब्रह्मपुत्र पर भी असर डालेगा. इस मामले में सबसे बड़ी मुश्किल चीन के साथ पानी बंटवारे को लेकर भारत का किसी प्रकार के समझौते का नहीं होना है.
पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर ने एनडीटीवी से कहा, "दोनों देशों के बीच पानी का बराबरी और उचित बंटवारा करना बेहद जरूरी है. हमने नेपाल और बांग्लादेश से वाटर ट्रीट्री की है...भारत को अपने हक की सुरक्षा करनी होगी."
दरअसल चीन एक अरसे से किसी समझौते की गैरमौजूदगी और अपनी भौगोलिक स्थिति का लगातार बेजा फायदा उठाता रहा है. उसने भारत आने वाली नदियों पर कई बांध बनाए हैं. जानकारों के मुताबिक ऐसे में भारत को भी बड़े बांधों की जरूरत पड़ सकती है. राष्ट्रीय जल आयोग के पूर्व चेयरमैन एके बजाज ने एनडीटीवी से कहा, "सरकार ने अरुणाचल में ऐसे बांधों की साइटों की पहचान की है. लेकिन कई जगह पर स्थानीय विरोध की वजह से बांध नहीं बन पा रहे हैं. ब्रम्हपुत्र नदी में चीन की तरफ से आने वाले पानी के स्तर को नियंत्रित करने के लिए एक बड़े बांध की जरूरत होगी."
हालांकि साद्या से लेकर धुबरी तक करीब आठ सौ किमी लंबी ब्रह्मपुत्र घाटी में बांध बनाना भी आसान नहीं होगा क्योंकि नदी यहां शाखाओं में बंटकर बहती है और औसत चौड़ाई दस किमी तक होती है.
कई बार समस्याएं अनदेखी की वजह से ज्यादा बड़ी हो जाती हैं. भारत-चीन रिश्तों में ब्रह्मपुत्र के पानी का बंटवारा एक ऐसी ही मिसाल है. जाहिर है ऐसे में अब होने वाली मुश्किलों से रास्ता मौजूदा हालात और जरूरत को देखकर नए सिरे से तलाशना होगा ताकि समस्या का स्थायी हल ढूंढा जा सके.
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