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देश में 5.30 करोड़ मुकदमों का अंबार... चीफ जस्टिस ने बताया-मुकदमेबाजी खत्म करने का फार्मूला

प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने ‘‘न्याय के रथ’’ को सुचारु रूप से चलाने के लिए न्यायाधीशों और वकीलों के बीच सामंजस्य पर जोर दिया. उन्होंने कहा न्यायाधीशों को निष्पक्षता, समानता और उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने का गंभीर कर्तव्य सौंपा गया है.

देश में 5.30 करोड़ मुकदमों का अंबार... चीफ जस्टिस ने बताया-मुकदमेबाजी खत्म करने का फार्मूला
कानूनी सहायता, मध्यस्थता के जरिये हर नागरिक के लिए न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है: प्रधान न्यायाधीश
  • प्रधान न्यायाधीश ने पारंपरिक मुकदमेबाजी के बोझ को कम करने के लिए कानूनी सहायता, मध्यस्थता की जरूर पर जोर दिया.
  • उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता, मध्यस्थता के जरिये हर नागरिक के लिए न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है
  • न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि मध्यस्थता से लंबित मामलों में तेजी से कमी और न्याय प्रणाली की मजबूती संभव है.
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नई दिल्ली:

प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि कानूनी सहायता तथा मध्यस्थता के माध्यम से प्रत्येक नागरिक के लिए न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है. प्रधान न्यायाधीश ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन' (एससीबीए) द्वारा आयोजित ‘‘सभी के लिए न्याय-कानूनी सहायता और मध्यस्थता : बार और पीठ की सहयोगात्मक भूमिका'' व्याख्यान के उद्घाटन सत्र में शामिल हुए. अपने संबोधित में उन्होंने कहा कि हाशिये पर पड़े समुदायों के लिए न्याय का मार्ग जटिल और बाधाओं से भरा हो सकता है.

उन्होंने कहा, ‘‘तेजी से बढ़ती आबादी और लगातार बढ़ते मुकदमों के बोझ वाले देश में, पारंपरिक मुकदमेबाजी अकेले बोझ नहीं उठा सकती. मध्यस्थता एक ऐसा रास्ता पेश करती है, जो विरोधात्मक नहीं है. यह पक्षों को सहयोगात्मक तरीके से समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करती है. मैं वरिष्ठ अधिवक्ताओं को प्रोत्साहित करूंगा कि वे पक्षों का मध्यस्थता के माध्यम से अपने विवादों को सुलझाने के लिए सक्रिय रूप से मार्गदर्शन करें.''

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालती मुकदमेबाजी और मध्यस्थता दोनों में अक्सर लंबी प्रक्रियाएं, जटिल औपचारिकताएं और महत्वपूर्ण वित्तीय व्यय शामिल होते हैं. न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘कानूनी सहायता और मध्यस्थता वे साधन हैं, जिनके माध्यम से हम संविधान के आदर्शों को लोगों के लिए वास्तविकता में बदल सकते हैं. आज जैसे व्याख्यान न्यायाधीशों को याद दिलाते हैं कि सहानुभूति, पहुंच और सुगम्यता वैकल्पिक गुण नहीं, बल्कि न्यायिक सेवा के आवश्यक घटक हैं.''

"रातोंरात खत्म किए जा सकते हैं केस"

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा, मध्यस्थता में कोई हारा नहीं है क्योंकि दोनों पक्षों को न्याय मिला है. अगर बार और बेंच, दोनों मध्यस्थता और कानूनी सहायता प्रक्रिया में भूमिका निभाएं, तो यह इस विषय में एक बड़ी शुरुआत होगी. आज देश में 5.36 करोड़ मामले लंबित हैं. अगर इस देश में मध्यस्थता सफल हो जाती है, तो इससे देश में लंबित मामलों की संख्या में रातोंरात भारी कमी आ जाएगी. इससे व्यवस्था में रुकावटें दूर होंगी और देश के लोगों को न्याय मिलेगा."

"कानूनी शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन आया"

एक अन्य कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई ने कहा कि पेशेवर जीवन में सफलता का स्तर परीक्षा परिणामों से नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत, समर्पण और काम के प्रति प्रतिबद्धता से निर्धारित होता है. वी एम सलगांवकर कॉलेज ऑफ लॉ के स्वर्ण जयंती समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा,  उन्होंने याद किया कि वह एक प्रतिभाशाली छात्र थे, लेकिन कक्षाएं छोड़ देते थे. कानूनी शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन आया है.

उन्होंने कहा कानूनी शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन आया है. उन्होंने छात्रों से कहा परीक्षा में अपने रैंक पर मत जाइए, क्योंकि ये परिणाम यह निर्धारित नहीं करते कि आप किस स्तर की सफलता प्राप्त करेंगे. आपका दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत, समर्पण और पेशे के प्रति प्रतिबद्धता ही मायने रखती है.''

प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा कि वह एक असाधारण छात्र थे, लेकिन अक्सर कक्षाएं छोड़ देते थे. उन्होंने कहा, "लेकिन हमारी नकल करने की कोशिश नहीं करें.'' उन्होंने याद किया कि जब वह मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज में पढ़ते थे, तो वे कक्षाएं छोड़कर कॉलेज की चारदीवारी पर बैठते थे और कक्षा में उनकी हाजिरी उनके मित्र लगाते थे. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘(कानून की डिग्री के) आखिरी साल में मुझे अमरावती जाना पड़ा, क्योंकि मेरे पिता (महाराष्ट्र) विधान परिषद के सभापति थे. मुंबई में हमारा घर नहीं था. जब मैं अमरावती में था, तो मैं लगभग आधा दर्जन बार ही कॉलेज गया था. मेरे एक मित्र, जो बाद में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने, मेरी हाजिरी लगा देते थे.''

सीजेआई गवई के पिता दिवंगत आर एस गवई रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के संस्थापक थे. वह 1978 से 1982 तक महाराष्ट्र विधान परिषद के सभापति रहे. बाद में वे बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल बने. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि परिणामों में शीर्ष स्थान प्राप्त करने वाला छात्र आगे चलकर आपराधिक मामलों के वकील बने, जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाले छात्र उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने. उन्होंने कहा, ‘‘और तीसरा मैं था, जो अब भारत का प्रधान न्यायाधीश हूं.''

उन्होंने कहा कि वह कॉलेज गए बिना ही मेरिट सूची में तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन किताबें पढ़ते रहे और पांच साल के परीक्षा के प्रश्नपत्र हल करते रहे. प्रधान न्यायाधीश ने छात्रों से कहा, "अब आप भाग्यशाली हैं कि पांच वर्षीय पाठ्यक्रम के आगमन के साथ, कानूनी शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन आया है." जब मैं बम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में ‘मूट कोर्ट' की अध्यक्षता करता था और छात्रों की दलीलें सुनता था, तो मुझे कभी-कभी लगता था कि उच्च न्यायालय के वकीलों को ‘मूट कोर्ट' में उपस्थित होना चाहिए और युवा वकीलों से अदालत में बहस करना सीखना चाहिए.''

प्रधान न्यायाधीश के अनुसार, आज प्रदान किया जाने वाला व्यावहारिक प्रशिक्षण छात्रों को वकील के रूप में अपना करियर बनाने में मदद करता है. उन्होंने कहा, "हमारे पास बहुत सारे इंटर्न हैं और उनके पास जो गहन ज्ञान है, उसका अनुकरण करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए." कनिष्ठ वकीलों के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में उन्होंने कहा कि कुछ कनिष्ठ वकीलों को वरिष्ठ वकीलों द्वारा दिया जाने वाला मानदेय बहुत कम है, जिससे उनके लिए जीवनयापन करना मुश्किल हो जाता है.

प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा कि कानूनी सहायता का लाभ देश के सुदूरतम भागों तक पहुंचना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘हमने इसे व्यापक बनाने का प्रयास किया, क्योंकि जब तक नागरिकों को यह पता नहीं होगा कि उनके पास कानूनी विकल्प का अधिकार है, तब तक विकल्प या अधिकार उनके किसी काम के नहीं होंगे.'

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