चंद्रयान-3 की सफलता ने भारत को अंतरिक्ष में जाने वाले देशों की अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया है. इस सफलता ने बहुपक्षीय संयुक्त अंतरिक्ष अभियानों के दरवाजे खोल दिए हैं. इसका अर्थ है कि देश को बाहरी अंतरिक्ष की खोज और भविष्य में अंतरिक्ष संसाधन के उपयोग में भी भूमिका निभानी होगी. इसरो के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन ने NDTV को बताया कि इसरो के "उच्च विज्ञान, कम लागत" दृष्टिकोण ने देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को किफायती, लेकिन नए तरीकों से डिजाइन करने में मदद की है, और सोचने के लिए मजबूर किया है कि विकासशील देशों को भी अपने हितों के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिए.
कस्तूरीरंगन, जिनके कार्यकाल के दौरान इसरो के अध्यक्ष के रूप में चंद्रमा मिशन की प्लानिंग की गई थी, उन्होंने कहा कि चंद्रयान की सफलता ने भारत को एक नया मुकाम दिया है. भारत अब अंतरिक्ष के मामलों और 21वीं सदी में अंतरिक्ष अनुसंधानों के निर्णय लेने में उच्च स्थान की एक सीट पर है. उन्होंने बताया, "अतीत में अंतरराष्ट्रीय हुकूमतों ने दूसरों को अंतरिक्ष गतिविधियों से रोका, विशेष रूप से उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाने के संबंध में और ऐसे में भारत को अंतरिक्ष अनुसंधानों में निवेश करना होगा."
इसरो के पूर्व अध्यक्ष ने कहा, "यदि कोई राष्ट्र नई सीमाएं खोलने वाली प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर विचार कर रहा है, तो समस्या यह है कि कुछ राष्ट्र पहले ही इसमें महारत हासिल कर चुके हैं. वे नहीं चाहते कि अन्य राष्ट्र उस क्लब में शामिल हों. यह परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में हुआ और हथियारों के क्लब में भी यही देखने को मिलता है. यदि आप इस तरह के कार्यक्रमों को यह सोचकर बहुत लंबे समय तक स्थगित करते हैं कि आप इसे बाद में करेंगे, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रणाली में इतना हेरफेर कर दिया जाएगा कि आपके लिए इसमें प्रवेश करना बेहद मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि इसे उनके डोमेन के रूप में देखा जाता है. भारत यह सुनिश्चित कर रहा है कि इन बाधाओं का सामना नहीं करना पड़े. यदि कोई नई तकनीक है, और अनुसंधान व जांच का नया क्षेत्र है, चाहे वह पृथ्वी हो, या महासागर या अंतरिक्ष, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करें और अग्रणी रैंकिंग वाले देशों में गिने जाएं."
उन्होंने कहा कि सही प्रकार की प्रौद्योगिकी, आवश्यक विज्ञान पृष्ठभूमि और वित्तीय संसाधनों वाले देश इस तरह के मानव प्रयास की 21वीं सदी की महान यात्रा का हिस्सा बनेंगे, और अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता है जो भविष्य के लिए महत्वपूर्ण बनता जा रहा है.
कस्तूरीरंगन ने कहा कि चंद्रयान की सफलता विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पहली बार है, जब देश ने दिखाया कि हम सौर मंडल के किसी अन्य ग्रह में सफलतापूर्वक उतर सकते हैं, और भौतिक व रासायनिक पर्यावरण और अन्य मापदंडों के संदर्भ में उसके कुछ हिस्सों का भी पता लगा सकते हैं. उन्होंने कहा, "यह एक बेहद महत्वपूर्ण क्षमता है. इसका एक पक्ष विज्ञान है, और इसका अन्य हिस्सा प्रौद्योगिकी है. और दूसरा कुल मिशन का संचालन है, चाहे वह ऑरबिट हो, रॉकेट हो, लैंडर की क्षमता हो. यह सौर मंडल में किसी ग्रह वस्तु या चंद्रमा का पता लगाने की क्षमता रखता है. भारत यह दिखाने के लिए अपनी क्षमता में सब कुछ कर रहा है कि उसके पास अमेरिका, चीन, रूस सहित कुछ अन्य देशों के समान आवश्यक साख है.
उन्होंने कहा, "चंद्रमा के जिस हिस्से पर हम उतरे हैं, वो भी बेहद खास है, क्योंकि यह पानी की संभावना वाला स्थान है और पानी एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व है. 2021 की पीडब्ल्यूसी रिपोर्ट में परिवहन, लूनर डेटा और संसाधनों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए तेजी से वृद्धि की संभावना के साथ लूनर इकोनॉमी का अनुमान $170 बिलियन का लगाया गया है.
कस्तूरीरंगन ने कहा, "हमने आर्टेमिस समझौते (नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम में भाग लेने वाले देशों सहित राष्ट्रों के बीच अंतरिक्ष अन्वेषण सहयोग को निर्देशित करने के लिए सिद्धांतों का एक व्यावहारिक समूह) पर हस्ताक्षर किए हैं, जो भारत को अन्य अनुसंधानों के लिए लूनर प्लेटफार्मों का इस्तेमाल करने वाले देशों की एक समिति के बीच स्थान देता है. चंद्रयान-3 के साथ हमने इस समिति में उच्च स्थान हासिल कर लिया है, और उन मुट्ठी भर देशों में से हैं जिन्होंने सफलतापूर्वक उस क्षमता का प्रदर्शन किया है."
कस्तूरीरंगन ने कहा कि अब बहस शुरू हो गई है कि विकासशील देशों को भी अंतरिक्ष और विज्ञान कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिए. हालांकि, कुछ आलोचकों की राय है कि भारत को अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर खर्च किए गए धन का उपयोग अपने कल्याण कार्यक्रमों पर करना चाहिए, क्योंकि यह अभी तक एक विकासशील देश है.
इसरो के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन ने NDTV से कहा, "कोई इसे ऐसे देख सकता है- आप गरीबी हटाओ में निवेश कर सकते हैं और 75 साल तक भी इसका समाधान ढूंढ सकते हैं. बता दें कि हम वर्तमान में अंतरिक्ष अभियान पर जो पैसा खर्च कर रहे हैं, वो कई अन्य देशों द्वारा खर्च किए जा रहे पैसे के आसपास भी नहीं है. हम अमेरिका के 17-18 अरब डॉलर के बारे में बात कर रहे हैं. हम जो अंतरिक्ष कार्यक्रम करते हैं, असल में उनकी लागत बेहद कम है. हमारे पास नए तरीकों से डिजाइन करके इंजीनियरिंग की लागत में कटौती करने के तरीके हैं. चंद्रयान का निर्माण अन्य देशों द्वारा इसी तरह के मिशनों पर किए गए खर्च की तुलना में कुछ भी नहीं है. इस प्रकार के अंतरिक्ष कार्यक्रम किफायती हैं, और किसी भी तरह से वे हमारे विकास कार्यक्रमों के आड़े नहीं आ रहे हैं. निश्चित रूप से ऐसे शुरुआती निवेश की आने वाले संसाधनों से वापसी होगी.
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