केंद्र सरकार को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कड़े सवालों का सामना करना पड़ा. कोर्ट ने सरकार की वैक्सीनेशन पॉलिसी को लेकर कई सवाल पूछे. अपनी वैक्सीनेशन पॉलिसी और वैक्सीन की अलग-अलग कीमतों को लेकर लगातार आलोचनाओं का सामना कर रही केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि साल 2021 के अंत तक देश की पूरी जनसंख्या को कोविड-19 के खिलाफ वैक्सीन लग जाने की उम्मीद है. इसपर कोर्ट ने अलग-अलग कीमतों, वैक्सीन कमी और गांवों में वैक्सीनेशन की समस्याओं पर सवाल उठाया. सरकार को इन मुद्दों पर दो हफ्तों में जवाब देना है.
सरकार की वैक्सीनेशन पॉलिसी में अलग-अलग कीमतों, वैक्सीन शॉर्टज और धीरे-धीरे रोलआउट को लेकर आलोचना हो रही है. इन बिंदुओं पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आखिर केंद्र, राज्यों को 45 से ऊपर वाले आयुवर्ग के लिए तो 100 फीसदी वैक्सीन दे रहा है, लेकिन 18-44 आयुवर्ग के लिए क्यों बस 50 फीसदी सप्लाई कर रहा है?
वैक्सीन की खरीद पर
कोर्ट ने पूछा कि '45 से ऊपर की जनसंख्या के लिए केंद्र पूरी वैक्सीन खरीद रहा है लेकिन 18-44 आयुवर्ग के लिए खरीद में बंटवारा कर दिया गया है. वैक्सीन निर्माताओं की ओर से राज्यों को 50 फीसदी वैक्सीन उपलब्ध है, कीमतें केंद्र तय कर रहा है और बाकी निजी अस्पतालों को दिया जा रहा है, इसका (असली) आधार क्या है?'
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों- जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एलएन राव और एस रविंद्र भट- की बेंच ने सरकार से पूछा कि 'आपकी दलील थी कि 45 से ऊपर के लोगों में मृत्यु दर ज्यादा है लेकिन दूसरी लहर में इस वर्ग के लोगों में ज्यादा खतरा नहीं है, 18-44 के लोग ज्यादा संकट में हैं. अब अगर वैक्सीन खरीदने का लक्ष्य है तो सरकार बस 45 से ऊपर वालों के लिए क्यों वैक्सीन खरीद रही है?'
अलग-अलग कीमतों पर
कोर्ट ने कहा कि सरकार ने राज्यों के लिए कीमत तय करने की जिम्मेदारी वैक्सीन निर्माता कंपनियों पर क्यों छोड़ दिया है? कोर्ट कहा, 'केंद्र को पूरे देश के लिए एक कीमत तय करने की जिम्मेदारी लेनी होगी.' बता दें कि 1 मई से लागू सरकार ने अपनी नई 'लचीली' नीति में राज्यों को यह अनुमति दी थी कि वो अपनी जरूरत का वैक्सीन सीधे कंपनियों से खरीद सकते हैं. हालांकि, राज्यों के लिए वैक्सीन की कीमत ज्यादा रहेगी. निजी अस्पतालों को और भी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी.
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डिजिटल अनिवार्यता पर
कोर्ट ने सरकार के डिजिटल वैक्सीनेशन को लेकर भी आलोचना की और कहा कि वैक्सीनेशन के लिए कोविन प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता का यह 'डिजिटल बंटवारा' गांवों में वैक्सीनेशनने की कोशिशों पर असर डालेगा क्योंकि वहां इंटरनेट उतना सुगम नहीं है. कोर्ट ने पूछा कि 'सबको कोविन ऐप पर रजिस्टर करना है, लेकिन इस डिजिटल बंटवारे के चलते क्या वास्तव में यह अपेक्षा की जा सकती है कि गांवों में सभी लोग खुद को कोविन पर रजिस्टर कर पाएंगे?'
केंद्र ने इसपर कहा कि 'गांवों में लोग कंप्यूटर सेंटरों पर जाकर रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं और उन्हें वैक्सीन लग जाएगी.' कोर्ट ने कहा कि 'क्या यह बहुत व्यावहारिक हल है?' कोर्ट ने यह भी कहा कि काम के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य में सफर कर रहे प्रवासी मजदूरों के लिए पता नहीं यह तरीका भी कितना मददगार होगा.
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