केंद्र सरकार ने लिव-इन में रह रहे कपल के साथ-साथ समलैंगिक कपल को भी सरोगेसी एक्ट के दायरे में लाने का विरोध किया है. सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि ऐसे कपल को सरोगेसी एक्ट के दायरे में लाना इस एक्ट के दुरुपयोग को बढ़ावा देगा. साथ ही ऐसे मामलों में किराए की कोख से जन्मे बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को लेकर भी आशंका बनी रहेगी.
इसके अलावा सरकार ने अविवाहित, सिंगल महिला को सरोगेसी एक्ट के फायदे से बाहर रखने के अपने फैसले को सही ठहराया है. अभी सिर्फ दो ही स्थितियों में सिंगल महिला को किराए की कोख की इजाज़त है. या तो महिला विधवा हो और समाज के डर से ख़ुद बच्चा न पैदा करना चाहती हो या फिर महिला तलाकशुदा हो और वो दोबारा शादी को इच्छुक न हो.
इन दोनों ही स्थितियों में महिला की उम्र 35 साल से ज़्यादा होने की शर्त रखी गई है. सरकार और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने ये हलफनामा सरोगेसी एक्ट के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दाखिल किया है. अपने जवाब के समर्थन में संसदीय कमेटी रिपोर्ट का हवाला देते हुए सरकार ने कहा है कि सरोगेसी एक्ट सिर्फ क़ानूनी मान्यता प्राप्त शादीशुदा पुरुष-स्त्री को ही अभिभावक के रूप में मान्यता देता है. चूंकि लिव-इन कपल या समलैंगिक कपल किसी क़ानून से बंधे नहीं है, लिहाजा इन मामलों में सरोगेसी से जन्मे बच्चे का भविष्य हमेशा सवालों के घेरे में रहेगा.
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