नई दिल्ली:
एक अहम फैसले में काबिनेट ने मौजूदा पिछड़ा वर्ग आयोग को खत्म कर उसकी जगह एक नया आयोग गठित करने का फैसला किया है. ये भी तय किया गया है कि केंद्र की ओबीसी सूची में नई जातियों को शामिल करने के लिए संसद की मंज़ूरी लेना अनिवार्य होगा. अब पिछड़े वर्ग से जुड़े मामलों से निपटने के लिए कैबिनेट ने एक नया नेशनल कमीशन फॉर सोशली एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लासेस सेट अप करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. ये तय किया गया है कि मौजूदा पिछड़ा वर्ग आयोग की जगह गठित होने वाले नए आयोग को संवैधानिक संस्था का दर्जा हासिल होगा. साथ ही, केन्द्र की ओबीसी लिस्ट में नई जातियों को शामिल करने या लिस्ट से जातियों को हटाने के लिए संसद की मंजूरी ज़रूरी होगी.
केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बीरेन्द्र सिंह ने एनडीटीवी से कहा, "मौजूदा पिछड़ा वर्ग आयोग के पास 189 जातियों की तरफ से ओबीसी लिस्ट में शामिल होने की मांग थी. आयोग काम नहीं कर पा रहा था. अब संवैधानिक सस्था का दर्ज़ा मिलने से वो बेहतर तरीके से काम कर सकेंगे." ये फैसला ऐसे वक्त पर लिया गया है जब जाट आरक्षण की मांग जोर पकड़ चुकी है. बीरेन्द्र सिंह कहते हैं, "अगर जाटों का सामाजिक-आर्थिक सर्वे होता है तो इससे जाटों को इंसाफ मिलेगा."
मौजूदा पिछड़ा वर्ग आयोग के पास ओबीसी समुदाय की तरफ से आ रही शिकायतों की सुनवाई करने का अधिकार नहीं था. फिलहाल ये अधिकार राष्ट्रीय अनूसूचित जाति आयोग के पास था. लेकिन अब संवैधानिक संस्था का दर्ज़ा मिलने के बाद नया पिछड़ा वर्ग आयोग सीधे तौर पर सुनाई कर सकेगा.
राष्ट्रीय अनूसूचित जाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष, पी एल पुनिया कहते हैं, "ये बदलाव पिछड़ा वर्ग की मांग पर किया गया है. पिछड़ा वर्ग लंबे समय से आयोग को संवैधानिक संस्था का दर्ज़ा देने की मांग करता रहा है." हालांकि समाजवादी पार्टी सरकार के इस पहल के खिलाफ है. समाजवादी पार्टी के महासचिव राम गोपाल यादव ने कहा, "ये पहल पिछड़ा वर्ग के हितों के खिलाफ है. ये पिछड़ा वर्ग के अधिकारों का कत्ल करने जैसा है." अब देखना होगा कि सरकार कितनी जल्दी इस पहल पर राजनीतिक सहमति बनाकर आगे बढ़ पाती है.
केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बीरेन्द्र सिंह ने एनडीटीवी से कहा, "मौजूदा पिछड़ा वर्ग आयोग के पास 189 जातियों की तरफ से ओबीसी लिस्ट में शामिल होने की मांग थी. आयोग काम नहीं कर पा रहा था. अब संवैधानिक सस्था का दर्ज़ा मिलने से वो बेहतर तरीके से काम कर सकेंगे." ये फैसला ऐसे वक्त पर लिया गया है जब जाट आरक्षण की मांग जोर पकड़ चुकी है. बीरेन्द्र सिंह कहते हैं, "अगर जाटों का सामाजिक-आर्थिक सर्वे होता है तो इससे जाटों को इंसाफ मिलेगा."
मौजूदा पिछड़ा वर्ग आयोग के पास ओबीसी समुदाय की तरफ से आ रही शिकायतों की सुनवाई करने का अधिकार नहीं था. फिलहाल ये अधिकार राष्ट्रीय अनूसूचित जाति आयोग के पास था. लेकिन अब संवैधानिक संस्था का दर्ज़ा मिलने के बाद नया पिछड़ा वर्ग आयोग सीधे तौर पर सुनाई कर सकेगा.
राष्ट्रीय अनूसूचित जाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष, पी एल पुनिया कहते हैं, "ये बदलाव पिछड़ा वर्ग की मांग पर किया गया है. पिछड़ा वर्ग लंबे समय से आयोग को संवैधानिक संस्था का दर्ज़ा देने की मांग करता रहा है." हालांकि समाजवादी पार्टी सरकार के इस पहल के खिलाफ है. समाजवादी पार्टी के महासचिव राम गोपाल यादव ने कहा, "ये पहल पिछड़ा वर्ग के हितों के खिलाफ है. ये पिछड़ा वर्ग के अधिकारों का कत्ल करने जैसा है." अब देखना होगा कि सरकार कितनी जल्दी इस पहल पर राजनीतिक सहमति बनाकर आगे बढ़ पाती है.
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