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क्या सरकार निजी संपत्ति का सार्वजनिक हित में इस्तेमाल कर सकती है? मामले में SC का फैसला सुरक्षित

निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत "समुदाय का भौतिक संसाधन" मान लिए जाने के मुद्दे पर बहस, सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की पीठ ने इस 31 साल पुराने मामले पर सुनवाई पूरी की

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क्या सरकार निजी संपत्ति का सार्वजनिक हित में इस्तेमाल कर सकती है? मामले में SC का फैसला सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली:

क्या किसी की निजी संपत्ति को संविधान के आर्टिकल 39 बी के तहत 'सामुदायिक संसाधन' मानकर इसका इस्तेमाल सरकार सार्वजनिक हित के लिए कर सकती है? कांग्रेस और बीजेपी के बीच चल रही राजनीतिक बहस के बीच 31 साल पुराने मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अंतिम दिन की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने एक उदाहरण देते हुए पूछा कि क्या भारत के बाहर सेमीकंडक्टर चिप्स निर्माता को देश में एक इकाई स्थापित करने के लिए कहा जाए लेकिन बाद में बताया जाए कि यह समुदाय का एक भौतिक संसाधन है, और इसे छीन लिया जाएगा तो फिर देश में निवेश कौन करेगा?

शीर्ष अदालत ने कहा, "तो सवाल यह है कि क्या कोई व्यक्ति निवेश करता है, एक कारखाना बनाता है और उत्पादन शुरू करता है. कल यह नहीं कहा जा सकता कि इसे श्रमिकों को वितरित करने के उद्देश्य से छीन लिया जाएगा.

इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई पूरी की. सुनवाई पांच दिनों तक चली. कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है. 

कांग्रेस और बीजेपी के बीच चल रही राजनीतिक बहस के बीच निजी संपत्तियों की मांग और पुनर्वितरण के सरकार के अधिकार क्षेत्र पर बहस में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस जटिल कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत "समुदाय का भौतिक संसाधन" माना जा सकता है और इसके परिणामस्वरूप सामान्य भलाई को राज्य द्वारा लिया जा सकता है. 

मंगलवार को भी अदालत ने कहा था कि, आज के समय में संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) और (सी) को एक परिभाषा के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है जो साम्यवाद या समाजवाद का बेलगाम एजेंडा देता है क्योंकि ये आज हमारा संविधान नहीं है. 

वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश एसजी तुषार मेहता ने कहा था कि जिस सवाल पर वह अदालत की सहायता कर रहे हैं वह यह है कि क्या कोई निजी संपत्ति अनुच्छेद 39 के तहत आएगी? उन्होंने अनुच्छेद 39 के बारे में अपनी धारणा के बारे में विस्तार से बताया.  

सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन, महाराष्ट्र की अपीलों पर सुनवाई कर रही है, जिसमें 1986 में महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट एक्ट (म्हाडा) में अध्याय 8-ए की शुरुआत पर सवाल उठाया गया था, जिसके द्वारा राज्य 1 सितंबर 1940 से पहले निर्मित संपत्तियों का अधिग्रहण कर सकता था और ग्रुप हाउसिंग सोसाइटियों द्वारा कब्जा कर लिया गया था. कानून बनाते समय राज्य ने जीर्ण-शीर्ण इमारतों को संरक्षित करने या इमारतों के पुनर्निर्माण के लिए संरचनात्मक सुधार करने के हित में अनुच्छेद 39 (बी) का हवाला दिया था.  

शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान की व्याख्या इस बात पर ध्यान देने के लिए की जानी चाहिए कि भारत आज क्या है और भारत कल किस ओर बढ़ रहा है. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 39 (बी) कहता है कि "राज्य, विशेष रूप से अपनी नीति को यह सुनिश्चित करने की दिशा में निर्देशित करेगा कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए कि आम भलाई की पूर्ति हो सके. अनुच्छेद 39(सी) में कहा गया है कि "आर्थिक प्रणाली के संचालन के परिणामस्वरूप सामान्य हानि के लिए धन और उत्पादन के साधनों का संकेंद्रण नहीं होता है. 

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अनुच्छेद 39 के विस्तार का उल्लेख किया.  

उन्होंने कहा कि, समुदाय की सामग्री का स्वामित्व और नियंत्रण आम भलाई के लिए सर्वोत्तम रूप से वितरित किया जाता है. मेरे प्रस्तुतिकरण में प्रत्येक शब्द एक कल्याणकारी राज्य के निर्माण से जुड़ा है. स्वामित्व और नियंत्रण का अनिवार्य रूप से मतलब है कि कुछ ऐसा जो सरकार का नहीं है लेकिन आम हित के व्यापक हित में एक कानून पारित किया जा सकता है. मेहता ने कहा कि उन्होंने अनुच्छेद 39 (बी) में शब्दों का विश्लेषण करने का प्रस्ताव रखा है.

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सवाल यह है कि क्या समुदाय का स्वामित्व भी एक व्यक्ति के स्वामित्व के बराबर है, या समुदाय के स्वामित्व में संपत्ति का व्यक्तिगत स्वामित्व भी शामिल है? क्या समुदाय का मतलब एक व्यक्ति है? 

इस मामले की सुनवाई सबसे पहले तीन जजों की बेंच ने की थी. सन 1996 में इसे पांच-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा गया, जिसे 2001 में सात-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा गया. आखिरकार 2002 में मामला नौ-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष रखा गया.

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