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This Article is From Jan 11, 2018

ममता बनर्जी की डी- लिट डिग्री पर पेंच, डिग्री मिले या नहीं HC आज करेगा तय

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर यानी डी लिट की मानद डिग्री देने पर पेंच फंसा हुआ है. आज हाइकोर्ट के फैसले के बाद ही ये तय हो पाएगा कि ममता को डी लिट की मानद डिग्री दी जाएगी या नहीं? ममता बनजी को डिग्री देने के फैसले का एक पूर्व वाइस चांसलर ने विरोध किया है.

ममता बनर्जी की डी- लिट डिग्री पर पेंच, डिग्री मिले या नहीं HC आज करेगा तय
ममता बनर्जी की डी- लिट डिग्री पर पेंच, डिग्री मिले या नहीं हाईकोर्ट आज करेगा तय (फाइल फोटो)
कोलकता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर यानी डी लिट की मानद डिग्री देने पर पेंच फंसा हुआ है. आज हाइकोर्ट के फैसले के बाद ही ये तय हो पाएगा कि ममता को डी लिट की मानद डिग्री दी जाएगी या नहीं? ममता बनजी को डिग्री देने के फैसले का एक पूर्व वाइस चांसलर ने विरोध किया है. उनकी दलील है कि डी-लिट की डिग्री देने की वजह साफ़ नहीं है. वहीं राज्य सरकार इसे राजनीति से प्रेरित बता रही है.

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पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी को कोलकता विश्‍वविद्यालय से मिलने वाली डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (डिलीट) की मानद उपाधि के मामले में आज हाईकोर्ट सुनवाई करेगा. आपको बता दें कि गुरुवार को ममता बनर्जी को मानद उपाधि दी जानी है. पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर रंजू गोपाल मुखोपाध्याय ने हाईकोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में कहा है कि बनर्जी इस डिग्री के लिए 'अयोग्‍य' है और विश्वविद्यालय ने उन्‍हें यह उपाधि देने का निर्णय मनमाने और उचित तर्क से रहित है.

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वहीं पश्चिम बंगाल सरकार ने कोलकता हाईकोर्ट में कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को डी लिट की मानद उपाधि देने के कलकत्ता विश्वविद्यालय के फैसले को चुनौती देने वाली जनहित याचिका राजनीति से प्रेरित है. कोलकता विश्वविद्यालय कल अपने दीक्षांत समारोह में संस्थान की छात्रा रहीं ममता बनर्जी को डी लिट की उपाधि प्रदान करेगा.

महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने हाईकोर्ट की एक पीठ के समक्ष कहा कि मानद उपाधि देने का फैसला कोलकता विश्वविद्यालय के सीनेट और सिंडिकेट ने किया. पीठ में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी शामिल थे.

उन्होंने कहा कि इस याचिका को जनहित याचिका नहीं मानना चाहिए और इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता और विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक रंजूगोपाल मुखर्जी ने दावा किया कि उपाधि देने का फैसला मनमाना और अपारदर्शी है.

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उनके वकील विकास भट्टाचार्य ने दलील दी कि विश्वविद्यालय के मुद्दे और शिक्षा खुद ही जनहित के विषय हैं.
 

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