- दिल्ली-आगरा एक्सप्रेसवे पर तेज रफ्तार और कोहरे की वजह से हुए हादसे के कारण चार लोगों की मौत हो गई
- आंध्र प्रदेश के कुरनूल में वोल्वो बस बाइक से टकराकर आग लगने से दस से अधिक यात्रियों की जान चली गई
- दोनों हादसों में तेज रफ्तार और सुरक्षा मानकों की अनदेखी मुख्य कारण रही, जिससे आग तेजी से फैली
देश में लगातार हो रहे बस हादसे सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर रहे हैं. सोमवार को दिल्ली-आगरा एक्सप्रेसवे पर एक बस में आग लगने से चार लोगों की मौत हो गई. इससे पहले 24 अक्टूबर को आंध्र प्रदेश के कुरनूल में एक वोल्वो बस बाइक से टकराने के बाद आग का गोला बन गई थी, जिसमें 10 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी. दोनों हादसों में एक बात कॉमन रही. तेज रफ्तार और सुरक्षा मानकों की अनदेखी. सवाल यह है कि इतने हादसों के बावजूद एजेंसियां क्यों नहीं जाग रहीं? क्यों बसों में फायर सेफ्टी और इमरजेंसी एग्जिट जैसे बुनियादी इंतजाम नहीं होते? जब तक सख्त नियम लागू नहीं होंगे, तब तक सड़क पर दौड़ती बसें यात्रियों के लिए खतरा बनी रहेंगी.
दिल्ली-आगरा एक्सप्रेसवे पर दर्दनाक हादसा
दिल्ली-आगरा एक्सप्रेसवे पर सोमवार को एक बस में अचानक आग लग गई. हादसे में चार लोगों की मौत हो गई. बस में सवार यात्रियों ने किसी तरह अपनी जान बचाई. आग इतनी तेजी से फैली कि बस देखते ही देखते आग का गोला बन गई. शुरुआती जांच में सामने आया है कि बस तेज रफ्तार में थी और तकनीकी खराबी के चलते आग लगी.

आंध्र प्रदेश में वोल्वो बस हादसा
24 अक्टूबर को आंध्र प्रदेश के कुरनूल में एक वोल्वो बस बाइक से टकरा गई. टक्कर के बाद बस में आग लग गई और पूरी बस धू-धू कर जल गई. इस हादसे में 10 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. बस में कुल 40 यात्री सवार थे. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हादसे के वक्त बस तेज रफ्तार में थी और टक्कर इतनी जोरदार थी कि आग फैलने में कुछ ही सेकंड लगे.
क्यों हो रहे ऐसे हादसे?
इन घटनाओं ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि आखिर क्यों सुरक्षा एजेंसियां और परिवहन विभाग जाग नहीं रहे हैं. बसों में फायर सेफ्टी के पर्याप्त इंतजाम नहीं होते. कई बसों में इमरजेंसी एग्जिट तक सही तरीके से काम नहीं करते. तेज रफ्तार, खराब मौसम और ड्राइवरों की लापरवाही इन हादसों को और भयावह बना देती है. विशेषज्ञों का कहना है कि लंबी दूरी की बसों में फायर अलार्म और ऑटोमैटिक फायर सप्रेशन सिस्टम होना चाहिए. लेकिन ज्यादातर बस ऑपरेटर लागत बचाने के लिए इन मानकों को नजरअंदाज कर देते हैं. नतीजा यह होता है कि हादसे के वक्त यात्रियों के पास बचने का कोई मौका नहीं रहता.

सरकार और एजेंसियों पर उठ रहे हैं सवाल
इतने बड़े हादसों के बावजूद न तो सख्त नियम लागू किए जा रहे हैं और न ही नियमित जांच. हर बार हादसे के बाद जांच की बात होती है, लेकिन कुछ दिनों बाद सब भूल जाते हैं. जब तक सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक सड़क पर दौड़ती बसें मौत का सफर ही साबित होंगी.
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