कोरोना वायरस (Coronavirus) के बाद लगे लॉकडाउन (Lockdown) में प्रवासी मजदूरों (Migrant Workers) की हालत तो आपको याद होगी. लॉकडाउन खुलने और महामारी कम होने के बाद वो फिर से गांव से शहरों में बेशक लौट चुके हैं. लेकिन, उनके हाल अब पहले जैसे नहीं रहे. आर्थिक राजधानी मुंबई के कई प्रवासी मजदूर बताते हैं कि पहले की तरह काम और पैसा नहीं है. कई छोटे उद्योग और कारखाने लॉकडाउन में जो बंद हुए, वो अब तक खुले ही नहीं. ऐसे में काम नहीं मिल पा रहा है. लिहाजा गुजारा करने के लिए ये मजदूर अब दूसरा काम सीख रहे हैं, ताकि परिवार का पेट पाल सके. ऐसे में सवाल ये है कि क्या सरकार 1 फरवरी को पेश किए जाने वाले बजट 2023 (Union Budget 2023) में प्रवासी मजदूरों के लिए कोई खास ऐलान करेगी?
मोहम्मद ज़ुबैर (60) बीते 38 सालों से मायानगरी में दिहाड़ी मज़दूरी कर पेट पाल रहे हैं. कोरोनाकाल में यूपी में अपने गांव लौट गए थे. जब दोबारा मुंबई लौटे, तो जिस कारखाने में काम करते थे, वो बंद हो चुकी थी. अब महीनों से काम तलाश रहे हैं. NDTV से बातचीत में मुहम्मद ज़ुबैर ने बताया, ' 9 सदस्यों का परिवार है. कमाई आधी हो चुकी है. सिलाई सीख रहा हूं, ताकि कोई दूसरा काम कर सकूं.'
वहीं, यूपी के रफ़त बीते 16 साल से मुंबई में हैं. लेदर फैक्ट्री में काम करते थे. कोरोनाकाल ने नौकरी चली गई. अब वो भी सिलाई सीख रहे हैं. ऐसे कई और मज़दूरों की यही कहानी है. पुराना काम नहीं मिल रहा. ऐसे में परिवार का पेट पालने के लिए नई स्किल सीख रहे हैं. ताकि दो वक्त की रोटी कमा सके.
एशिया की सबसे बड़ी बस्ती धारावी में 12-13 हज़ार स्मॉल स्केल बिज़नेस यूनिट्स थीं, कोविड के बाद दो से ढाई हज़ार यूनिट्स बंद हुईं हैं. ऐसे मजदूरों की मदद कर रहे भामला फाउंडेशन का कहना है कि अगर सरकार हाथ बढ़ाए, तो ऐसे मजदूरों की ज़िंदगी आसान हो सकती है.
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