पेरिस आतंकी हमलों के पीड़ितों श्रद्धांजलि देती तस्वीर (रॉयटर्ल फोटो)
नई दिल्ली:
पेरिस में आतंकवादी हमले, रशिया के हवाई जहाज को बम से उड़ाना, सीरिया में लगातार कत्लेआम और इंटरनेट पर बंधकों को क्रूरतम तरीकों से मारने की तस्वीरें...इस सबके बावजूद अगर मारे गए लोगों की संख्या के हिसाब से देखें तो दुनिया में सबसे ज्यादा खतरनाक आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट नहीं बल्कि बोको हराम है।
2013 के मुकाबले 2014 में मौतों की संख्या 80 फीसदी बढ़ी
ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 के मुकाबले 2014 में आतंकी हमलों में मारे गए लोगों की संख्या 80 फीसदी तक बढ़ी है। 2014 में 32,658 लोग मारे गए जबकि 2013 में आतंकवादी हमलों में 18,111 लोग मारे गए थे। इनमें बोको हराम 6,644 लोगों की हत्या का जिम्मेदार है, जिनमें 77 फीसदी आम नागरिक हैं। इस्लामिक स्टेट 6,073 हत्याओं के लिए जिम्मेदार है जिनमें 44 फीसदी आम नागरिक हैं। हालांकि बोको हराम जहां 453 वारदातों के लिए जिम्मेदार है वहीं इस्लामिक स्टेट 1,071 वारदातों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। दोनों आतंकवादी संगठन दुनिया भर में 2014 में हुए आतंकी हमलों में हुई 51 फीसदी मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। इनमें 78 फीसदी मौतें और 57 प्रतिशत हमले सिर्फ पांच देशों अफगानिस्तान, इराक, नाइजीरिया, पाकिस्तान और सीरिया में हुए हैं।
इराक आतंक से सबसे अधिक आहत
ग्लोबल टेररिज़्म इंडेक्स 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक आतंक का सबसे ज्यादा असर इराक पर हुआ है। इराक के 9,929 नागरिक 2014 में आतंकी हमलों में मारे गए।
नाइजीरिया में आतंकी गतिविधियां 300 प्रतिशत बढ़ीं
दुनिया को शायद अब अफ्रीका में बढ़ते आतंकवाद पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए क्योंकि नाइजीरिया में आतंकी गतिविधियों में, 2013 के मुकाबले 2014 में 300 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहां 7512 लोग मारे गए हैं। इन आतंकवादी हमलों के कारण जबर्दस्त आर्थिक नुकसान भी हुआ है। करीब 3,489 अरब रुपये या 52.9 बिलियन यूएस डालर की हानि इन हमलों से हुई। अब तक के इतिहास में यह सबसे बड़ा नुकसान है।
इराक और सीरिया में सौ देशों के 25 से 30 हजार लड़ाके
इस इंडेक्स के मुताबिक इस्लामिक स्टेट में शामिल होने वाले विदेशी लड़ाकों की संख्या में भी कमी आती नहीं दिख रही। इराक और सीरिया में तकरीबन सौ देशों के 25 से 30 हजार विदेशी लड़ाके मौजूद हैं जिनमें से आधे मिडिल ईस्ट एवं नार्थ अफ्रीकन देशों (MENA) के और एक चौथाई तुर्की और यूरोप के हैं। जारी वर्ष के पहले छह महीनों में सात हजार विदेशी लड़ाके इस्लामिक स्टेट से जुड़ने पहुंचे हैं। आतंक के पनपने और बढ़ने के दो सबसे बड़े कारण हैं राजनीतिक हिंसा और युद्ध। लेकिन विकसित देशों में इसके सामाजिक आर्थिक कारण हैं। जैसे आर्थिक मौके न मिलना, समाज में घुल मिल नहीं पाना। शरणार्थी समस्या का भी बड़ा कारण आतंकवाद है।
सन 2000 से 2014 तक 61 हजार से ज्यादा आतंकवादी हमले हुए हैं जिनमें एक लाख चालीस हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं, लेकिन आश्चर्य की बात है कि विश्व में आतंकवादी हमलों से 13 प्रतिशत ज्यादा लोग अन्य कारणों से हत्या के शिकार होते हैं।
ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 162 देशों (दुनिया की 99 फीसदी आबादी) पर आतंकवाद के असर की रिपोर्ट है। इसे इंस्टीट्यूट फॉर इकानामिक्स एंड पीस और यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के START प्रोग्राम के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है। आतंकवादी वारदात, मौतें, चोटें और संपत्ति का नुकसान इसके आधार बनाए गए हैं।
2013 के मुकाबले 2014 में मौतों की संख्या 80 फीसदी बढ़ी
ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 के मुकाबले 2014 में आतंकी हमलों में मारे गए लोगों की संख्या 80 फीसदी तक बढ़ी है। 2014 में 32,658 लोग मारे गए जबकि 2013 में आतंकवादी हमलों में 18,111 लोग मारे गए थे। इनमें बोको हराम 6,644 लोगों की हत्या का जिम्मेदार है, जिनमें 77 फीसदी आम नागरिक हैं। इस्लामिक स्टेट 6,073 हत्याओं के लिए जिम्मेदार है जिनमें 44 फीसदी आम नागरिक हैं। हालांकि बोको हराम जहां 453 वारदातों के लिए जिम्मेदार है वहीं इस्लामिक स्टेट 1,071 वारदातों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। दोनों आतंकवादी संगठन दुनिया भर में 2014 में हुए आतंकी हमलों में हुई 51 फीसदी मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। इनमें 78 फीसदी मौतें और 57 प्रतिशत हमले सिर्फ पांच देशों अफगानिस्तान, इराक, नाइजीरिया, पाकिस्तान और सीरिया में हुए हैं।
इराक आतंक से सबसे अधिक आहत
ग्लोबल टेररिज़्म इंडेक्स 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक आतंक का सबसे ज्यादा असर इराक पर हुआ है। इराक के 9,929 नागरिक 2014 में आतंकी हमलों में मारे गए।
नाइजीरिया में आतंकी गतिविधियां 300 प्रतिशत बढ़ीं
दुनिया को शायद अब अफ्रीका में बढ़ते आतंकवाद पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए क्योंकि नाइजीरिया में आतंकी गतिविधियों में, 2013 के मुकाबले 2014 में 300 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहां 7512 लोग मारे गए हैं। इन आतंकवादी हमलों के कारण जबर्दस्त आर्थिक नुकसान भी हुआ है। करीब 3,489 अरब रुपये या 52.9 बिलियन यूएस डालर की हानि इन हमलों से हुई। अब तक के इतिहास में यह सबसे बड़ा नुकसान है।
इराक और सीरिया में सौ देशों के 25 से 30 हजार लड़ाके
इस इंडेक्स के मुताबिक इस्लामिक स्टेट में शामिल होने वाले विदेशी लड़ाकों की संख्या में भी कमी आती नहीं दिख रही। इराक और सीरिया में तकरीबन सौ देशों के 25 से 30 हजार विदेशी लड़ाके मौजूद हैं जिनमें से आधे मिडिल ईस्ट एवं नार्थ अफ्रीकन देशों (MENA) के और एक चौथाई तुर्की और यूरोप के हैं। जारी वर्ष के पहले छह महीनों में सात हजार विदेशी लड़ाके इस्लामिक स्टेट से जुड़ने पहुंचे हैं। आतंक के पनपने और बढ़ने के दो सबसे बड़े कारण हैं राजनीतिक हिंसा और युद्ध। लेकिन विकसित देशों में इसके सामाजिक आर्थिक कारण हैं। जैसे आर्थिक मौके न मिलना, समाज में घुल मिल नहीं पाना। शरणार्थी समस्या का भी बड़ा कारण आतंकवाद है।
सन 2000 से 2014 तक 61 हजार से ज्यादा आतंकवादी हमले हुए हैं जिनमें एक लाख चालीस हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं, लेकिन आश्चर्य की बात है कि विश्व में आतंकवादी हमलों से 13 प्रतिशत ज्यादा लोग अन्य कारणों से हत्या के शिकार होते हैं।
ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 162 देशों (दुनिया की 99 फीसदी आबादी) पर आतंकवाद के असर की रिपोर्ट है। इसे इंस्टीट्यूट फॉर इकानामिक्स एंड पीस और यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के START प्रोग्राम के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है। आतंकवादी वारदात, मौतें, चोटें और संपत्ति का नुकसान इसके आधार बनाए गए हैं।
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