- नीली या काली हल्दी का वैज्ञानिक नाम Curcuma caesia Roxb है और इसकी जड़ गहरी रंगत वाली होती है.
- दक्षिण भारत में सदियों से आयुर्वेदिक उपचारों में नीली/काली हल्दी का उपयोग होता आया है.
- नीली/काली हल्दी की खेती तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्यों में सीमित मात्रा में होती है.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की बुलाई गई चाय और अनौपचारिक बातचीत के दौरान कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने केरल में इस्तेमाल होनेवाली नीली/काली हल्दी (ब्लू टर्मरिक) का जिक्र किया. सूत्रों के मुताबिक प्रियंका गांधी ने बताया कि इसके प्रयोग से एलर्जी और गले की खराश में राहत मिलती है. इसके बाद संसद से बाहर भी इस दुर्लभ आयुर्वेदिक औषधि को लेकर उत्सुकता बढ़ती दिखी.

नीली/काली हल्दी क्या है?
नीली या काली हल्दी, आम पीली हल्दी से अलग मानी जाती है. इसका वैज्ञानिक नाम Curcuma caesia Roxb है. इसकी जड़ गहरी रंगत वाली, सुगंध तेज और औषधीय गुणों में विशेष मानी जाती है. पानी में उबालने पर इसका रंग नीला या गहरा काला हो जाता है, यही इसकी प्रमुख पहचान भी है.
आयुर्वेदिक उपयोग और सिद्ध चिकित्सा
डॉ. आर. पी. पाराशर, एमसीडी डायबिटिक सेंटर, रोहिणी के CMO और आयुर्वेद विशेषज्ञ, बताते हैं कि दक्षिण भारत में प्रचलित सिद्ध चिकित्सा पद्धति में नीली/काली हल्दी का उपयोग सदियों से होता आया है. इसे कई औषधियों के वाहन (carrier) के रूप में भी प्रयोग किया जाता रहा है. उत्तर भारत में इसका इस्तेमाल अपेक्षाकृत नया है, इसलिए न तो व्यापक प्रयोग हुआ है और न ही पर्याप्त वैज्ञानिक अध्ययन मौजूद हैं.
खेती और उपलब्धता
नीली/काली हल्दी को रेयर स्पीशीज (दुर्लभ प्रजाति) माना जाता है. इसकी खेती मुख्य रूप से तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्य (नॉर्थ ईस्ट) में होती है. सीमित उत्पादन और अधिक मांग के कारण यह पीली हल्दी की तुलना में महंगी और कम उपलब्ध होती है.
आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार एक समय में इसका 1–2 ग्राम, अधिकतम 3 ग्राम से ज़्यादा सेवन नहीं करना चाहिए. अधिक मात्रा सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है.
स्वास्थ्य पर संभावित प्रभाव
1. रेस्पिरेटरी और प्रदूषण से जुड़ी समस्याएं
दिल्ली-एनसीआर जैसे प्रदूषित इलाकों में रहने वालों के लिए नीली/काली हल्दी उपयोगी मानी जाती है. इसके सेवन से गले की खराश, कफ, चेस्ट कंजेशन और सांस से जुड़ी दिक्कतें से राहत मिल सकती है
2. सूजन और दर्द में राहत
नीली/काली हल्दी में मौजूद Anti-inflammatory गुण शरीर और जोड़ों की सूजन और स्वेलिंग में राहत देने में सहायक माने जाते हैं. इसके लिए इसका लेप किया जाता है.
3. डाइजेस्टिव सिस्टम
इस खाने से भूख न लगना, कमजोर पाचन की समस्या सही हो जाती है. आयुर्वेद के अनुसार यह पाचन क्रिया को संतुलित करने में मदद कर सकती है.
4. इम्युनिटी और स्किन एलर्जी
इसमें मौजूद Anti-oxidant गुण इम्युनिटी बढ़ाने, स्किन एलर्जी और इंफ्लेमेशन में राहत देने में सहायक हो सकते हैं.
5. आर्टरीज और सूजन
आयुर्वेदिक मान्यताओं के अनुसार यह आर्टरीज में सूजन और ब्लॉकेज में भी सहायक हो सकती है. हालांकि इसके लिए और वैज्ञानिक शोध की ज़रूरत बताई जाती है.
इसके अतिरिक्त शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाली सूजन (आंतो, फेफड़ों, लीवर या किसी भी अन्य अंग की सूजन) और ऑटोइम्यून जैसे अन्य रोगों जिनमें शरीर के किसी भी भाग में सूजन हो सकती है, में भी यह काफी लाभदायक है.
इस्तेमाल का तरीका
• पानी में उबालकर सीमित मात्रा में सेवन
• लेप के रूप में सूजन या दर्द वाली जगह पर
खारी बावली में उपलब्धता
दिल्ली के थोक बाज़ार खारी बावली में जड़ी-बूटियों की दुकानों पर नीली/काली हल्दी की जड़ें उपलब्ध बताई जाती हैं। हालांकि कुछ व्यापारी इसे नरकचूर बताकर बेचते हैं, इसलिए पहचान और प्रमाणिकता बेहद जरूरी है।
आयुर्वेद की ओर बढ़ती दिलचस्पी
सोशल मीडिया और बढ़ती जागरूकता के चलते युवा पीढ़ी के ज़रिये आयुर्वेदिक औषधियों पर चर्चा फिर बढ़ी है. नीली/काली हल्दी इसी रुझान की एक मिसाल है.
डिस्क्लेमर
विशेषज्ञ स्पष्ट करते हैं कि नीली/काली हल्दी (Curcuma caesia Roxb.) किसी बीमारी का पूरा इलाज नहीं है. लेकिन सही मात्रा और सही तरीके से इस्तेमाल करने पर यह मुख्य उपचार के साथ सहायक (supportive/adjunct) भूमिका निभा सकती है और कुछ लक्षणों में राहत देने में मददगार हो सकती है. बिना डॉक्टर या आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह के इसका सेवन नहीं करना चाहिए.
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