मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Elections 2023) को लेकर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से तैयारी तेज कर दी गई है. सोमवार को प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट जारी की गई. जिसमें शिवराज सिंह चौहान के नाम की घोषणा नहीं की गई. इस बीच मीडिया खबरों में यह बात सामने आई कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की टिकट की घोषणा नहीं कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) शायद उन पर शिकंजा कसना चाह रही है. अब भारतीय जनता पार्टी के सूत्रों ने इस खबर का खंडन किया है और कहा है कि यह खबर सरासर ग़लत है कि उनका टिकट काटा जाएगा.
बीजेपी सूत्रों की तरफ से कहा गया है कि अभी तक जो सीटें घोषित की गईं उनमें अधिकांश पिछले चुनाव में हारी हुईं हैं. केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को कुछ कमजोर सीटों पर उतारने के पीछे मंशा यही कि इन्हें हर हाल में जीता जाए. इससे सामूहिक नेतृत्व का संदेश भी जाता है. यह भी कि चुनाव में बीजेपी के जीतने पर इनमें से कोई भी सीएम बन सकता है. इससे वे इन सीटों को जीतने पर पूरा ज़ोर लगाएंगे और आसपास की सीटों पर भी सकारात्मक असर होगा. परिवारवाद पर भी लगाम कसी गई है. केंद्र की राजनीति करने वाले नेताओं को यह संदेश दिया गया है कि उन्हें राज्य में अपनी क्षमता दिखानी होगी.
किन नेताओं को मिली है टिकट?
BJP ने घोषणा की कि वह लोकसभा के सात सदस्यों को, जिनमें तीन केंद्रीय मंत्री हैं, चुनाव मैदान में उतार रही है. इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भोपाल यात्रा के कुछ ही घंटे बाद घोषित सूची में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का नाम भी शामिल हैं. इन लोगों में से चार लोग पूर्व में विधायक रह चुके हैं.
कैलाश विजयवर्गीय एक दशक बाद लड़ रहे हैं चुनाव
एक दशक बाद विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे कैलाश विजयवर्गीय पिछली बार 2013 में अपने पैतृक इंदौर जिले की महू सीट से दूसरी बार जीते थे. अब वह वह इंदौर-1 सीट से चुनाव लड़ेंगे. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर दो दशक के बाद विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं, क्योंकि वह आखिरी बार 2003 में ग्वालियर से लगाीतार दूसरा बार चुनाव जीते थे.
कई केंद्रीय मंत्री भी चुनावी मैदान में
नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते भी इस बार चुनाव मैदान में उतार दिए गए हैं. प्रत्याशी सूची से ऐसा महसूस होता है कि सत्तासीन पार्टी चुनाव मैदान में अपने ही वरिष्ठ क्षेत्रीय नेताओं के बीच संतुलन कायम करने की कोशिश कर रही है, ताकि चुनिंदा इलाकों और जातियों के बीच उनके तजुर्बों और असर से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाया जा सके.
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