भारतीय जनता पार्टी (BJP) कर्नाटक में टिकाऊ सरकार चाहती है और इसके लिए राज्य में विधानसभा चुनाव ही एक मात्र विकल्प है. दूसरी तरफ बीजेपी के वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा की नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी हुई है. बीजेपी ने कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस सरकार के पतन के दो दिन बाद भी सरकार के गठन के लिए दावा पेश नहीं किया है. जबकि राज्य को 31 जुलाई के पहले वित्त विधेयक पारित करना होगा और तब तक नई सरकार के अस्तित्व में न आने के हालात में राष्ट्रपति शासन लगाना बाध्यता होगी.
सूत्रों के अनुसार गुरुवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मिले कर्नाटक के नेताओं से कहा गया कि वे विधानसभा अध्यक्ष के फैसले तक इंतजार करें. पार्टी के केंद्रीय नेताओं ने राज्य के नेताओं से कहा कि स्पीकर के फैसले के बाद ही बीजेपी अगला कदम उठाएगी. विधानसभा अध्यक्ष के सामने बागी विधायकों के इस्तीफे और विधानसभा से निष्कासन का मामला लंबित है.
पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में राज्य बीजेपी इकाई अगली सरकार बनाने के लिए दावा करना चाहती है, लेकिन वह इसके लिए केंद्रीय नेतृत्व की इजाजत का इंतजार कर रही है. गुरुवार को जगदीश शेट्टार, अरविंद लिंबावली, मधुस्वामी, बसावराज बोम्मई और येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र समेत कर्नाटक बीजेपी के कई नेता अमित शाह से मिले और राज्य के ताजा घटनाक्रम तथा पार्टी के सामने मौजूद विकल्पों के बारे में चर्चा की.
क्या कर्नाटक में लग सकता है राष्ट्रपति शासन? BJP बागी विधायकों पर स्पीकर के फैसले का कर रही इंतजार
कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस सरकार को गिरा चुकी बीजेपी अब कुछ असमंजस की स्थिति में है. बीजेपी नेतृत्व में इस सरकार को गिराने के लिए अधिक उतावला नहीं था बल्कि उसे गठबंधन में दरार के कारण गिरते हुए देखना चाहता था. लेकिन राज्य के बीजेपी नेता, जिनका नेतृत्व बीएस येदियुरप्पा कर रहे हैं, को राज्य में सत्ता पर काबिज होने की जल्दी थी जिसके कारण कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने के लिए उठापटक काफी लंबी चली. कर्नाटक की सरकार तो गिर गई, लेकिन बीजेपी के स्थानीय नेता अब नेतृत्व की हरी झंडी का इंतजार कर रहे हैं. केंद्रीय नेतृत्व फिलहाल किसी फैसले तक नहीं पहुंचा है.
कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष रमेश कुमार ने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के 15 बागी विधायकों के इस्तीफे और उन्हें निष्कासित करने के लिए उनकी पार्टी की याचिकाओं पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है. ऐसे में बीजेपी के लिए सावधानी से कदम बढ़ाना लाजिमी है, क्योंकि स्पीकर के फैसले का असर अगली सरकार के भविष्य पर हो सकता है. कर्नाटक में 31 जुलाई के पहले वित्त विधेयक भी पारित करना होगा. बताया जाता है कि इस माह के अंत तक अगर सरकार वित्त विधेयक नहीं रख पाई तो विधेयक का मार्ग प्रशस्त करने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाना संवैधानिक बाध्यता होगी.
कर्नाटक : येदियुरप्पा के लिए मुख्यमंत्री बनने का अंतिम मौका, जिसे वे खोना नहीं चाहते
बीजेपी राज्य में अल्पमत के साथ सरकार बनाना नहीं चाहती और चुनाव के जरिए पूर्ण बहुमत के साथ आकर स्थिर सरकार चाहती है. उसे पता है कि कांग्रेस-जेडीएस सरकार की तरह ही उसकी अल्पमत सरकार को पतन से दो-चार होना पड़ सकता है. कर्नाटक के कार्यवाहक मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी का गुरुवार को दिया गया बयान बीजेपी की आशंका की पुष्टि करने वाला है. कुमारस्वामी ने कहा है कि मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में कोई भी स्थिर सरकार नहीं दे सकता. उन्होंने कहा है कि कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के बागी विधायकों के इस्तीफों ने राज्य को उपचुनावों की ओर धकेल दिया है. उन्होंने कहा कि बीजेपी ने ऐसा माहौल बना दिया है. हम यह नहीं मान सकते कि चुनावों के बाद भी सरकार स्थिर रहेगी.
गत 23 जुलाई को विधानसभा में हुए शक्ति-परीक्षण में कुमारस्वामी की कांग्रेस-जेडीएस सरकार अल्पमत में आ गई थी. कुमारस्वामी द्वारा पेश विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 99 और विरोध में 105 मत पड़े थे.
उधर कर्नाटक के बीजेपी के वरिष्ठ नेता येदियुरप्पा के सामने संकट यह है कि यदि वे इस बार मुख्यमंत्री नहीं बने तो फिर भविष्य में उनके लिए रास्ते बंद हैं. इसके पीछे उनकी उम्र रोड़ा बन रही है. येदियुरप्पा 76 साल के हो चुके हैं और बीजेपी के नियम के मुताबिक वह 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं को चुनाव मैदान में नहीं उतरने दे रही. बीजेपी यदि स्थिर सरकार के लिए सब्र करने की नीति ही अपनाती है तो कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगेगा और संभवत: साल के अंत में विधानसभा चुनाव होगा. यदि तब बीजेपी बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब भी हुई तो येदियुरप्पा के लिए तो मुख्यमंत्री की कुर्सी सपना ही बनी रहेगी.
VIDEO : बीजेपी कर्नाटक में सत्ता पाने की जल्दबाजी में नहीं