
- बिहार में दलित मतदाताओं की आबादी 19.65 फीसदी है. वे 2025 के विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
- दुसाध (पासवान) और मुसहर NDA के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं. उनके नेता चिराग पासवान और जीतन राम मांझी हैं.
- रविदास, पासी, धोबी और डोम जैसी जातियों का झुकाव महागठबंधन की ओर है, इसमें कांग्रेस, राजद और वामदल शामिल हैं.
बिहार में दलित वोट का सवाल कभी भी केवल जातियों की गणना का आसान सवाल नहीं रहा है. बिहार में दलित मतदाताओं की आबादी 19.65 फीसदी है. एक बार फिर जब बिहार 2025 के विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है, तब ये मतदाता एक बार फिर चुनावी राजनीति के केंद्र में हैं. नेता उन्हें सशक्तिकरण के नाम पर लुभाते हैं, लेकिन उनके दिमाग में वोटों के समूह और हार-जीत के अंतर का हिसाब रहता है.
एनडीए की ओर झुके दुसाध और मुसहर
उत्तर बिहार के कछार (मिथिलांचल, तिरहुत और सीमांचल) से लेकर मगध की लाल मिट्टी तक, बातचीत अलग-अलग तरीके से चल रही है. हाजीपुर पासवान (दुसाध) समुदाय का गढ़ है. वहां शाम ढलते ही राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान के पोस्टर लालटेन की तरह चमकने लगते हैं. चिराग की आवाज अभी भी आधुनिकता के सपनों हाईवे, स्मार्ट सिटी और उनके पिता की अधूरी गरिमा की धुन से जुड़ी हुई है, जो दुसाध (पासवान) समुदाय के लिए है. एनडीए में अधिक सीटों की उनकी मांग को अलग रखें, तो चिराग खुद एनडीए के साथ मजबूती से जुड़ गए हैं. वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाषा को दोहराते हैं और इसी के साथ अनुशासित और एकजुट दुसाध वोट उनके साथ चलने को तैयार लग रहा है. चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेएसपी) के प्रमुख हैं. वो मोदी सरकार में खाद्य प्रसंस्करण मंत्री रहे. वो अप्रैल 2025 में एनडीए छोड़ महागठबंधन में शामिल हो गए थे. लेकिन राम विलास पासवान की विरासत पर अधिक नियंत्रण चिराग पासवान का है. वे पासवान समुदाय में लोकप्रिय बने हुए हैं.

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और जीतन राम मांझी एनडीए के दो बड़े दलित चेहरा हैं.
हाजीपुर से दूर गयाजी के गांवों में जीतन राम मांझी मुसहर समुदाय के नेता हैं. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री मांझी ने भी अपनी किस्मत एनडीए से जोड़ी हुई है. उनके लोग, जो कभी बचे-खुचे अनाज के दानों के लिए भटकते थे, उन्हें अब मांझी की आवाज में एक भरोसा नजर आता है. इस वजह से धीमी ही सही मुसहरों की समस्याएं सत्ता के गलियारों तक पहुंच रही हैं. चिराग और मांझी या यह कहें कि दलित समाज की दो प्रमुख जातियां दुसाध और मुसहर कमल (एनडीए) के साथ मजबूती से जुड़ती नजर आ रही हैं.
जाती | आबादी (फीसद में) | नेता |
दुसाध (पासवान) | 4-5 | चिराग पासवान |
मुसहर | 3-4 | जीतन राम मांझी |
रविदास (चमार) | 4-5 | राजेश राम |
पासी | करीब 2 | स्थानीय नेता, कोई बड़ा नेता नहीं |
धोबी, डोम और अन्य | करीब 2 | स्थानीय नेता |
महागठबंधन के साथी रविदास
बिहार कभी भी एक रंग में नहीं रंगा. राजेश कुमार औरंगाबाद के कुटुंबा से विधायक हैं. कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष हैं. वो रविदास (चमार) समुदाय से आते हैं. उनका अध्यक्ष बनना न केवल एक पीढ़ीगत बदलाव का संकेत है, बल्कि एक पुनर्जनन भी है. रविदास जाति के मतदाताओं का झुकाव लंबे समय से आरजेडी की ओर रहा है, जहां लालू प्रसाद का दलित बस्तियों में गरिमा लौटाने का नारा अभी भी गूंजता है. राजेश कुमार के नेतृत्व में, कांग्रेस खुद को एक ऐसा घर बनाना चाहती है, जहां रविदास की आवाज मेहमान की नहीं, बल्कि मेजबान की हो. आरजेडी और वामपंथियों के साथ, महागठबंधन को अनुसूचित जाति की रविदास, पासी, धोबी और जातियों को अपने पाले में शामिल होने की उम्मीद है.

दुसाध और मुसहर को छोड़कर चमार, पासी, धोबी और डोम जैसी जातियों का झुकाव राजद, कांग्रेस और वामदलों के महागठबंधन की तरफ है.
2015 में महागठबंधन की ओर झुके दलित मतदाता
बिहार में दलित वोट हमेशा से बंटा रहा है. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में यह महागठबंधन की ओर झुका हुआ था. वह नीतीश कुमार और लालू के गठबंधन और सामाजिक न्याय के साथ सुशासन के नारे की ओर आकर्षित था. लेकिन 2020 के चुनाव में यह बंटवारा और तेज हुआ. चिराग पासवान ने एनडीए से अलग राह पकड़ी, इसका नुकसान नीतीश कुमार की उठाना पड़ा. लेकिन इससे एनडीए को सत्ता बने रहने में मदद मिली. अब 2025 के चुनाव से पहले यही सवाल पूछा जा रहा है कि क्या दलित वोट फिर बिखर जाएंगे या उनकी जमीन बदल चुकी है.
बिहार में दलितों की दो धाराएं
गाँवों में अगर लोगों की बातों को ध्यान से सुनें तो वहां दो धाराएं नजर आती हैं. एक है पासवान और मुसहर समुदाय जो दिल्ली की सत्ता के करीब होने को सड़कों, नौकरियों और पहचान की राजनीति का टिकट मानते हैं. दूसरी है रविदास और दूसरी जातियां, जो हिंदुत्व की ताकतवर राजनीति के खिलाफ अपनी गरिमा को बनाए रखने के लिए महागठबंधन की ओर झुक हुई हैं. इसलिए कह सकते हैं कि 2025 का दलित वोट 2015 या 2020 की नकल नहीं होगा, बल्कि बंटा हुआ होगा. पासवान और मुसहर एनडीए की ओर, जबकि रविदास और अन्य महागठबंधन की ओर.
ये भी पढ़ें: मिथिलांचल से सीमांचल: बिहार में BJP कहां मजबूत और कहां फंसा है गेम, सत्ता के 7 द्वार का समीकरण समझिए
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं