
- बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान जल्द हो सकता है, लेकिन NDA में सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बनी है
- LJP (रामविलास) के नेता चिराग पासवान और अरुण भारती अधिक सीटों की मांग कर रहे हैं
- BJP-JDU के प्रवक्ता ने कहा सीट बंटवारा मिल-बैठकर होगा और सभी दलों का लक्ष्य नीतीश कुमार को CM बनाना है
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कभी भी हो सकता है, लेकिन एनडीए के भीतर सीटों का बंटवारा अब तक तय नहीं हो पाया है. सहयोगी दलों की दावेदारी ने इस मसले को और पेचीदा बना दिया है. खासकर चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) ने जेडीयू और बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
लोजपा (आर) के नेता लगातार अधिक सीटों की मांग कर रहे हैं. चिराग पासवान के करीबी नेता अरुण भारती ने जदयू पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि मीडिया में यह धारणा गलत है कि विधानसभा में कोई विधायक न होने के कारण उनकी पार्टी को सम्मानजनक सीटें नहीं मिलेंगी. उन्होंने याद दिलाया कि 2019 में सिर्फ़ 2 सांसद वाली पार्टी को 17 सीटें मिली थीं और 2024 में 1 सांसद वाली पार्टी को 5 सीटें मिलीं, और दोनों बार पार्टी ने सभी सीटें जीतीं.
हाल ही में खुद चिराग पासवान ने भी कहा था कि सीटों की संख्या मायने नहीं रखती। उनकी पार्टी वहीं चुनाव लड़ेगी जहाँ वह मजबूत है, ताकि लोकसभा चुनाव जैसी जीत दोहराई जा सके.
बीजेपी और जेडीयू की प्रतिक्रिया
बीजेपी प्रवक्ता प्रभाकर मिश्रा ने कहा कि चिराग पासवान एनडीए का अहम हिस्सा हैं और सीट बंटवारे का फैसला मिल-बैठकर होगा. वहीं जेडीयू प्रवक्ता मनीष यादव ने स्पष्ट किया कि सभी दलों का लक्ष्य नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाना है और सीट बंटवारा लोकसभा चुनाव की तरह समय पर निपटा लिया जाएगा.
महागठबंधन का तंज
कांग्रेस प्रवक्ता स्नेहाशीष वर्धन ने कहा कि चिराग पासवान की बयानबाजी यह दिखाती है कि उन्हें पद मिलते ही बिहार के विकास की प्राथमिकताएं भूल जाती हैं. राजद प्रवक्ता एजाज अहमद ने आरोप लगाया कि एनडीए के भीतर कई चीज़ें सुचारू रूप से नहीं चल रही हैं और कुछ दल नीतीश कुमार की विरासत को आगे बढ़ाना नहीं चाहते.
सीट बंटवारे की अहमियत
बिहार की राजनीति में सीट बंटवारा सिर्फ गठबंधन की अंदरूनी खींचतान नहीं है, बल्कि यह जनता की उम्मीदों, कार्यकर्ताओं की मेहनत और दलों की ताक़त का भी पैमाना है. लोजपा (रामविलास) ने पिछले चुनावों में दिखाया है कि कम संसदीय प्रतिनिधित्व होने के बावजूद वह गठबंधन में निर्णायक भूमिका निभा सकती है.
साफ है कि बिहार की राजनीति में हर चुनाव से पहले समीकरण बदलते हैं. ऐसे में किसी भी दल की अहमियत को केवल आंकड़ों से तौला नहीं जा सकता. सीट बंटवारे की खींचतान बिहार की सियासत की पुरानी परंपरा है, और इस बार भी इसका बड़ा असर देखने को मिलेगा.
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