मध्यप्रदेश में उद्यानिकी विभाग में करोड़ों रुपए का घोटाला सामने आया है, जिसमें सामान खरीदे बिना ही भुगतान कर दिया गया. आरोप ये भी है कि नेताओं-अफसरों की मिलीभगत से घोटाला करने के लिए अफसरों ने न सिर्फ नियम बदले, बल्कि किसानों को घटिया उपकरण मुहैया कराए. किसानों की सब्सिडी का हिस्सा भी सीधा निजी कंपनी को भुगतान कर दिया गया है. वहीं एक दूसरे मामले में करोड़ों के पौधे सिर्फ कागजों पर ही लगा दिये गये. इस घोटाले के तार गुजरात, छत्तीसगढ़ होते मध्यप्रदेश से जुड़े हैं.
मिली जानकारी के मुताबिक उद्यानिकी विभाग में 100 करोड़ की यंत्रीकरण योजना में पॉवर टिलर खरीदने में प्रारंभिक जांच में आर्थिक अनियमितता की पुष्टि हो चुकी है. किसानों को केंद्र से अनुदान देने के नाम पर इस मशीन की जगह सस्ते और घटिया चीन के बने उपकरण किसानों को बांट कर फर्जी कागज पर बनी कंपनियों ने करोड़ों कमाए और इसमें मदद की किसानों का हक़ छीनने वाले उद्यानिकी विभाग के अफसरों ने, अकेले मंदसौर जिले में 3 करोड़ रुपए के पॉवर टिलर खरीदने के लिए अफसरों ने किसानों के खाते में सीधे पैसा डालने की बजाय कंपनी के खाते में भेज दिया.
मंदसौर के किसान मुकेश पाटीदार ने बताया, 'भारत सरकार का नियम है कि सिर्फ औऱ सिर्फ डीबीटी (सब्सिडी सीधा खाते में ट्रांसफर होना चाहिए) होना चाहिये. कोई भी अनुदान हो किसान के खाते में ही आना चाहिये. इनके द्वारा ऐसा नहीं किया. वेंडर पेमेंट कर रहे हैं. इसमें तो एक ही व्यक्ति को ठेका दे दिया. ये बड़ा घोटाला है. बिहार के चारा घोटाले से बड़ा'
दरअसल उद्यानिकी विभाग की इन मशीनों में बड़े घोटाले हुए, केन्द्र की इस योजना में नियमों के मुताबिक हितग्राही के खाते में सीधे 50 फीसद रकम जाती है, यानी डीबीटी, नियम था किसान का पंजीयन, सत्यापन, स्वीकृति आदेश के बाद किसान बाजार से यंत्र खरीदे, अधिकारी जाकर सत्यापन करें फिर बिल जेनेरेट होकर किसान को अनुदान का पैसा जाता था, लेकिन आरोप है कि किसानों के खातों में राशि भेजने की जगह कंपनियों को भुगतान करवा दिया गया. यही नहीं, उद्यानिकी विभाग से यंत्रीकरण योजना में किसानों के लिए पहली बार ट्रैक्टर विथ रोटावेटर की जगह पॉवर टिलर और पॉवर वीडर खरीदे गए थे.
आरोप है कि उपकरणों को दोगुने से ज्यादा दामों में खरीदा गया, किसानों के खाते की जगह सीधे कंपनियों को भुगतान किया गया, पहले योजना में ट्रैक्टर विथ रोटावेटर दिए जाते थे, जिनका आरटीओ में रजिस्ट्रेशन होता है, लेकिन 2019-2020 में पॉवर टिलर और पॉवर वीडर दिये गये जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं होता है. ये जानकर आप आप अपना माथा पीट लेंगे कि एमपी एग्रो ने जिन कंपनियों से पॉवर टिलर खरीदे हैं, उनका रजिस्ट्रेशन नहीं मिला है.
सूत्रों के मुताबिक साल 2019-20 में अफसरों ने किसानों को डेढ़ लाख रुपए कीमत के पावर टिलर की जगह 21 से 52 हजार रुपए के सस्ते पावर विडर और पावर स्प्रेयर बांटे. ये सारे कृषि यंत्र मेड इन चाइना हैं.
डीबीटी खत्म करके, एमपीएग्रो से खरीदी शुरू हुई, आरोप लगे कि सप्लायर एमपीएग्रो में रजिस्टर्ड नहीं थे, उन्हें फायदा पहुंचाने ऐसे आदेश निकाले गये कि कंपनी के खाते में अनुदान की राशि जा सकती है, काम को भी ऑफलाइन करने के आदेश दे दिये गये ताकी घटिया काम, भ्रष्टाचार नजर से बचे रहें.
जाहिर सी बात है, घटिया मशीन है सो किसानों के किसी काम की नही हैं. छतपुर के किसान गंगाराम कुशवाहा की मानें,' मोटी जमीन है वो काम नहीं करती, ट्रैक्टर भर दिया कल्टीवेटर दिया'. वहीं खुद उद्यानिकी विभाग के अफसर कह रहे हैं, जो सामग्री दी गई वो टिलर का विकल्प नही हैं. कृषि इंजीनियर एस पी अहिरवार के मुताबिक '85000 किसान को सब्सिडी देने का है मॉडल वाइज, वीडर अलग चीज है निंदाई, गुड़ाई के लिये काम आता है पावर टिलर छोटा ट्रैक्टर है कृषि कार्य के लिये उपयोग होता है.'
छोटे से पावर टिलर जो राज्य में कुल 1647 किसानों को बांटा गया है, इसने मध्यप्रदेश में सत्ता के गलियारों में हलचल मचा दी है. कांग्रेस साल 2017 से ही जांच कराने की मांग कर रही है. दरअसल कई सालों से चल रहे इस घोटाले के सबूत कई जिलों से सामने आने लगे तो उद्यानिकी विभाग ने मगर इस मामले की जांच के लिए विभाग की चार सदस्यों वाली कमेटी बना दी मगर कमेटी ने भी जांच का दायरा सिर्फ 2019-2020 यानी कमलनाथ सरकार का ही शासन काल रखा.
एनडीटीवी के पास इस जांच दल के ग्यारह पेज की एक्सूक्लूसिव रिपोर्ट हैं जिसमें परत दर परत इस घोटाले की पोल खोली गयी है, हमारे पास केन्द्र सरकार की भी वो रिपोर्ट है जो कहती है चीन के ये उपकरण घटिया दर्जे के हैं.
मध्य प्रदेश के उद्यानिकी मंत्री भरत सिंह कुशवाहा का इस मामले में कहना है कि कृषि यंत्रो और टिलर पंप को लेकर जांच कमेटी की रिपोर्ट मिल गई है. जिसका परीक्षण कर दोषियों के खिलाफ चाहे अधिकारी औऱ संस्था हो कड़ी कार्रवाई होगी. यह किसानों से जुड़ा मुद्दा है.
आपको बता दें कि तीन करोड़ रुपए के पॉवर टिलर खरीदने वाला मंदसौर अकेला ज़िला नहीं है. जांच समिति ने जब टीकमगढ़, बुरहानपुर, होशंगाबाद औऱ देवास ज़िलों में बांटे गये यंत्रों का देखा तो पता चला कि वो पॉवर टिलर थे ही नहीं, सभी मशीनों में इंजन नंबर एक ही लिखा है. इन पर किस कम्पनी ने बनाया उनका नाम नहीं लिखा था. सभी मशीनों में एक ही इंजन नम्बर मिला. मशीन से संबंधित मापदंड खुदे हुये नहीं बल्कि स्टीकर से चिपकाये हुये थे. पांच हार्स पावर की मशीन की जगह दो और तीन हार्स पावर की मशीन लगी हुई थी.
जिस डीलर ने ये यंत्र दिये वो कनाडा का नागरिक है, गुजरात से कारोबार किया, फिर छत्तीसगढ़ आ गया लेकिन वहां भी ना रजिस्टर्ड दफ्तर था ना जीएसटी नंबर, इसी एक मालिक की 3 कंपनियों को सांठगांठ करके पूरी योजना का लगभग 95 फीसद काम दिया गया .
भारत सरकार के कृषि कल्याण मंत्रालय ने जिस कंपनी, मॉडल और मापदंडों की बात कही उसकी भी धज्जियां उड़ाई गईं. कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है कि नियम है भारत सरकार की सूची में होना चाहिये, फिर टेस्टिंग होती है कमेटी होती है किसान को छूट देना चाहिये उसमें सब्सिडी भारत सरकार देगी....भारत सरकार की सूची में नहीं.... जांच चल रही है जेल जाएगी.
शिवराज सरकार के मंत्री पूर्व कमल नाथ सरकार पर ऊंगली उठा रहे हैं. लेकिन पूर्व उद्यानिकी मंत्री सचिन यादव वो नोट शीट लेकर बैठे है जिसमें पिछले साल 23 अक्टूबर को ही मामले की जाँच के आदेश दे दिये गये थे. उनका कहना है कि ये घोटाला पूर्व बीजेपी सरकार के वक्त से चल रहा है. साल 17, 18, 19 से. जब मैं मंत्री था तो मंदसौर से शिकायत मिली जिसके आधार पर 23/10/2019 को नीटशीट पर मामले की जाँच करने को कहा लेकिन हमारी सरकार चली गई.
कुछ मामले में नजर में आते हैं, कुछ ठंडे बस्ते में ...बड़वानी से मुनाफ ने ड्रिप इरिगेशन से परेशान किसान की तस्वीर भेजी, इस घोटाले की परतें हमने 2017 में उधेड़ी थीं. लेकिन हालात जस के तस हैं. इस उद्यानिकी विभाग ने शिवराज सरकार की महत्वकांक्षी नमामी देवी नर्मदे योजना में भी एक बड़ा कारनामा किया था. जबलपुर से हमारे साथी संजीव चौधरी ने तस्वीरें भेजीं, ऐसी दुकानों जो सालों से खुली नहीं, इलेक्ट्रॉनिक मार्केट के बीच बनी नर्सरी से करोड़ों के पौधे कागजों पर खरीदे गये थे. रिपोर्ट बताती है अकेले जबलपुर में करीब ढाई लाख पौधे नर्सरी से लिए गए ही नहीं. इसके एवज में दो करोड़ रुपये का भुगतान भी कर दिया गया.
इस योजना में पूरे प्रदेश में जिन क्षेत्रों से नर्मदा नदी गुजरी है, वहां दोनों किनारों पर एक किलोमीटर के दायरे में पौधारोपण किया जाना था. इसके लिए 550 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था. इसमें से 41 करोड़ रुपये से पौधों की खरीदी होनी थी, यंत्रीकरण और पौधा रोपने में करोड़ों सिर्फ कागजों में स्वाहा हो गए.
2017-18 में शिवराज सिंह ने नमामि देवी नर्मदे के तहत पौधे लगाने का दावा गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए किया था, यंत्रीकरण केन्द्र के ही बीजेपी सरकार की महत्वकांक्षी योजना है. लेकिन योजनाएं भ्रष्टाचार से सींची जा रही हैं.
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