भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) मामले में अधिक मुआवजे की केंद्र की याचिका को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा खारिज करने के कुछ ही घंटों बाद आपदा में अपनों को खोने वालों ने फैसले को 'धोखा' करार दिया है. 2 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बइड संयंत्र (Union Carbide plant) से गैस लीक के चलते करीब एक लाख लोग प्रभावित हुए थे. इस घटना को व्यापक रूप से अब तक की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदा माना जाता है. मौतों का अनुमान 5000 से 25000 तक है.
रशीदा बी ने इस हादसे में अपने परिवार के सात सदस्यों को खो दिया है. अपने भोपाल स्थित घर में एनडीटीवी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि गैस लीक के कारण उनके स्वास्थ्य पर लगातार प्रभाव पड़ा है. उन्होंने कहा, "स्वास्थ्य समस्याएं लगातार जारी हैं, मेरा भाई आज अस्पताल में भर्ती था. कोर्ट का फैसला अन्याय है."
उन्होंने आरोप लगाया कि भोपाल के पीड़ितों को पीठ ने "कॉर्पोरेट समर्थक पक्षपात" के कारण अदालत में अपना दिन देने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, "यूनियन कार्बाइड के वकील को बोलने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था, लेकिन पीड़ितों के संगठनों के वकील को सिर्फ 45 मिनट के लिए सुना गया."
केंद्र ने यूनियन कार्बाइड की उत्तराधिकारी फर्मों से 7,844 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा मांगा था. 1989 में 715 करोड़ रुपये का मुआवजा वापस किया गया था. केंद्र ने तर्क दिया था कि निपटान के समय मानव जीवन और पर्यावरण नुकसान के पैमाने का ठीक से आकलन नहीं हो सका था.
हालांकि कोर्ट ने कहा कि केंद्र ने इस मुद्दे को अभी उठाने के लिए कोई तर्क नहीं दिया है. यूनियन कार्बाइड की उत्तराधिकारी फर्मों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने अदालत से कहा कि 1989 से रुपये का मूल्यह्रास मुआवजे के "टॉप-अप" की मांग का आधार नहीं हो सकता है.
हादसे में जीवित बची शहजादी ने कहा, '1989 में धोखा हुआ था. यह फिर धोखा है.'
बचे लोगों की मांगों को लेकर एक संगठन के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने सवाल किया कि जब गैस रिसाव आपदा में प्रभावित लोग लगातार मर रहे हैं और पीड़ित हैं तो अदालत मामले पर पर्दा कैसे डाल सकती है.
उन्होंने कहा, "जब अपराधी फरार रहता है और पीड़ितों सहित उनके बच्चों की पीड़ा जारी रहती है, तो सुप्रीम कोर्ट की बेंच भोपाल में हो रहे अन्याय पर कैसे पर्दा डाल सकती है?"
तत्कालीन यूनियन कार्बाइड के अध्यक्ष वारेन एंडरसन इस मामले में मुख्य अभियुक्त थे, लेकिन मुकदमे के लिए उपस्थित नहीं हुए. भोपाल की एक अदालत ने उन्हें 1992 में भगोड़ा घोषित कर दिया था. 2014 में उनकी मृत्यु से पहले दो गैर-जमानती वारंट जारी किए गए थे. वहीं 7 जून 2010 को भोपाल की एक अदालत ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के सात अधिकारियों को दो साल की जेल की सजा सुनाई थी.
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