भोपाल गैस त्रासदी मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने लगातार दूसरे दिन केंद्र पर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने कहा कि किसी को भी त्रासदी की भयावहता पर संदेह नहीं है. फिर भी जहां मुआवजे का भुगतान किया गया है, वहां कुछ सवालिया निशान हैं. जब इस बात का आंकलन किया गया कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार था. बेशक, लोगों ने कष्ट झेला है, भावुक होना आसान है लेकिन हमें इससे बचना है.
अदालत ने कहा कि कल भी हमने पूछा था कि जब केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की है, तो क्यूरेटिव याचिका कैसे दाखिल कर सकते हैं. शायद इसे तकनीकी रूप से न देखें, लेकिन हर विवाद का किसी न किसी बिंदु पर समापन होना चाहिए. 19 साल पहले समझौता हुआ था, फिर पुनर्विचार का फैसला आया. सरकार द्वारा कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं हुई, 19 साल बाद क्यूरेटिव दाखिल की गई. 34 साल बाद हम क्यूरेटिव क्षेत्राधिकार का प्रयोग करें?
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हमें लगता है कि सरकार जो डेटा हमारे सामने रखती है, उसके तहत भुगतान अधिक होना चाहिए था. केंद्र सरकार ने समझौते का पालन किया. उस समय कुछ मुद्दों को नहीं उठाया था, क्या अब हम कर सकते हैं?
कोर्ट ने कहा कि कल आप कह सकते हैं कि हवा भोपाल से बहुत आगे तक जाती है, हम भोपाल की सीमा वाले क्षेत्र को लाभ देना चाहेंगे. शिकायत व्यापक रूप से शब्दों में है. कल्याणकारी राज्य अलग सिद्धांत अपनाते हैं. क्या आप उत्तरदायी हैं या नही? क्या ऐसा है कि मैं भुगतान नहीं करना चाहता, लेकिन मुझे लगता है, इसे हासिल कर सकता हूं.
दरअसल अटार्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि मैं इस त्रासदी की भयावहता के बारे में सोच रहा था, जो अभूतपूर्व थी. मानवीय त्रासदी के मामलों में कुछ पारंपरिक सिद्धांतों से परे जाना बहुत महत्वपूर्ण है.
इससे पहले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि मुआवजे के लिए 50 करोड़ का फंड जस का तस पड़ा है. इसका यह मतलब है कि पीड़ितों को मुआवजा नहीं दिया जा रहा है. क्या इसके लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है?
केंद्र सरकार की ओर से AG ने कहा था कि वेलफेयर कमिश्नर सुप्रीम कोर्ट की योजना के अनुसार काम कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने जवाब पर असंतुष्टि जाहिर करते हुए कहा था कि फिर पैसा क्यों नहीं बांटा गया?
SC ने केंद्र से पूछा था कि वह अतिरिक्त मुआवजा (8 हजार करोड़ रुपये) कैसे मांग सकता है, जब यूनियन कार्बाइड पहले ही 470 मिलियन डॉलर का भुगतान कर चुका है. SC ने 50 करोड़ रुपये की बकाया मुआवजा राशि पर भी चिंता जताई.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि समझौता कैसे फिर से शुरू किया जा सकता है, जबकि यूनियन कार्बाइड ने पहले ही भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों को 470 मिलियन डॉलर से अधिक का भुगतान कर दिया है, और 50 करोड़ रुपये का मुआवजा बांटा क्यों नहीं गया.
यूनियन कार्बाइड का प्रतिनिधित्व कर रहे हरीश साल्वे ने कहा कि सरकार द्वारा दस्तावेजों का एक नया सेट जमा करने का प्रयास किया जा रहा है. पीठ ने एजी से आगे सवाल किया, क्या क्यूरेटिव पिटीशन में किसी नए दस्तावेज की अनुमति दी जा सकती है?
पीठ ने कहा कि सरकार ने कोई पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की और 19 साल के अंतराल के बाद क्यूरिटिव याचिका दायर की गई. इसमें कहा गया है कि समझौता दो पार्टियों के बीच है और पार्टियों में से एक भारत सरकार है और यह एक कमजोर पार्टी नहीं है.
जस्टिस कौल ने पूछा कि 50 करोड़ रुपये बिना बांटे क्यों पड़े हैं. उन्होंने आगे कहा कि इसका मतलब यह है कि लोगों को पैसा नहीं मिल रहा था, और क्या लोगों के पास पैसा नहीं जाने के लिए सरकार जिम्मेदार थी?
भोपाल गैस त्रासदी मामले में पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग करने वाली क्यूरेटिव याचिका पर पांच जजों का संविधान पीठ सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना रुख रखा था कि वो इस मामले में आगे कार्रवाई चाहती है.
एजी आर वेंकटरमणि ने कहा कि पीड़ितों को अधर में नहीं छोड़ा जा सकता. 20 सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार से पूछा था कि पीड़ितों को मुआवजा बढ़ाने को लेकर दाखिल क्यूरेटिव याचिका पर उसका स्टैंड क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि केंद्र का 2010 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार द्वारा दाखिल याचिका पर क्या रुख है.
केंद्र का डाउ केमिकल्स से गैस आपदा के खिलाफ 1.2 बिलियन डॉलर के अतिरिक्त मुआवजे के लिए दायर क्यूरेटिव याचिका पर क्या विचार है. बेंच में जस्टिस एस के कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओक, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल हैं.
दरअसल केंद्र सरकार ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे के लिए क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी. केंद्र ने कहा है कि अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कंपनी, जो अब डॉव केमिकल्स के स्वामित्व में है, उसको 7413 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा देने के निर्देश दिए जाएं.
दिसंबर 2010 में दायर याचिका में शीर्ष अदालत के 14 फरवरी, 1989 के फैसले की फिर से जांच करने की मांग की गई है, जिसमें 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (750 करोड़ रुपये) का मुआवजा तय किया गया था. केंद्र सरकार के अनुसार, पहले का समझौता मृत्यु, चोटों और नुकसान की संख्या पर गलत धारणाओं पर आधारित था और इसके बाद के पर्यावरणीय नुकसान को ध्यान में नहीं रखा गया.
ये मुआवजा 3,000 मौतों और 70,000 घायलों के मामलों के पहले के आंकड़े पर आधारित था. क्यूरेटिव पिटीशन में मौतों की संख्या 5,295 और घायल लोगों का आंकड़ा 527,894 बताया गया है.
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