भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) मामले में केंद्र सरकार की क्यूरेटिव पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा है कि पीड़ितों को मुआवजा बढ़ाने पर आपका स्टैंड क्या है? इस संविधान पीठ में जस्टिस एस के कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओक, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल हैं.
दरअसल, केंद्र सरकार ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे के लिए क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी. केंद्र की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने कहा था कि अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कंपनी, जो अब डॉव केमिकल्स के स्वामित्व में है, को 7413 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा देने के निर्देश दिए जाएं.
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दिसंबर 2010 में दायर इस याचिका में शीर्ष अदालत के 14 फरवरी, 1989 के फैसले की फिर से जांच करने की मांग की गई है, जिसमें 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (750 करोड़ रुपये) का मुआवजा तय किया गया था. केंद्र सरकार के अनुसार, पहले का समझौता मृत्यु, चोटों और नुकसान की संख्या पर गलत धारणाओं पर आधारित था, और इसके बाद के पर्यावरणीय नुकसान को ध्यान में नहीं रखा गया था.
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ये मुआवजा 3,000 मौतों और 70,000 घायलों के मामलों के पहले के आंकड़े पर आधारित था. बाद में दायर क्यूरेटिव पिटीशन में मौतों की संख्या 5,295 और घायल लोगों का आंकड़ा 527,894 बताया गया है.
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