- पश्चिम बंगाल में 2026 विधानसभा चुनाव में टीएमसी और भाजपा के बीच मुख्य राजनीतिक लड़ाई देखने को मिलेगी
- तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी के नेतृत्व में लगातार 15 वर्षों से सत्ता में है और 2021 में रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी
- कांग्रेस और वाम दल अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन अभी भी संगठनात्मक कमजोरियों से जूझ रहे हैं
पश्चिम बंगाल में चुनावी मौसम आते ही उपनगरीय लोकल ट्रेनों में माहौल बदल जाता है. रोजाना सफर करने वाले यात्री राजनीतिक बहसों में जुट जाते हैं. सुबह के अखबारों के आधार पर तर्क, बहस, तीखी टिप्पणियां और कई बार गरमागरम विवाद, यह सब आम बात है. चुनावी रुझानों की असल नब्ज पकड़ने के लिए कोलकाता की लोकल ट्रेनों की चर्चाओं को लंबे समय से सबसे विश्वसनीय माना जाता रहा है.
2026 के विधानसभा चुनाव करीब आते ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. कोलकाता से उत्तर 24 परगना के बनगांव, नदिया के रानाघाट और दक्षिण 24 परगना के लक्ष्मीकांतपुर तक जाने वाली लोकल ट्रेनों में हर दिन चुनावी समीकरणों पर जोरदार बहसें सुनाई दे रही हैं.
ऐसे में उन प्रमुख दलों पर नजर डालते हैं जो इस बार बंगाल की चुनावी जंग में उतरने वाले हैं और जिनका प्रदर्शन 2021 में निर्णायक रहा था.

तृणमूल कांग्रेस (TMC)
ममता बनर्जी की अगुआई वाली तृणमूल कांग्रेस अपनी ‘प्रो-बंगाली', ‘प्रो-विकास' और सर्वसमावेशी राजनीति के दम पर लगातार 15 सालों से सत्ता में बनी हुई है. पार्टी का दावा है कि उसका सबसे बड़ा आधार उसका मजबूत जमीनी संगठन और ममता बनर्जी का करिश्माई नेतृत्व है.

तृणमूल कांग्रेस, जिसे आधिकारिक तौर पर अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के नाम से जाना जाता है, एक राजनीतिक दल है जो पिछले 15 सालों से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है. इसकी स्थापना ममता बनर्जी ने 1 जनवरी 1998 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर की थी और उनके नेतृत्व में यह पश्चिम बंगाल की राजनीति में तेजी से उभरी.
इस बार 2026 के चुनाव में, ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के जोशीले नेतृत्व वाली तृणमूल प्रमुख पार्टी है. उसे उम्मीद है कि बंगाल की जनता उसके पक्ष में मतदान करेगी और ममता बनर्जी चौथी बार मुख्यमंत्री बनेंगी.
भारतीय जनता पार्टी (BJP)
भाजपा का जन्म 1980 में भारतीय जनसंघ पार्टी से हुआ था, जो धुर दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की एक शाखा थी. पिछले 10 सालों से भाजपा बंगाल में तृणमूल के खिलाफ मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी है. 2016 के बाद से पार्टी ने लेफ्ट‑कांग्रेस को पछाड़कर खुद को TMC के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित किया है.
भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं ने महसूस किया है कि राज्य विधानसभा में मजबूत उपस्थिति के बावजूद, सत्ता में आने के लिए उन्हें अपने संगठन पर काम करना होगा.

2021 में BJP सत्ता से दूर रह गई, जिसकी प्रमुख वजहें ये मानी जाती हैं -
- अल्पसंख्यक मुस्लिम और उदारवादी हिंदुओं के एक बड़े वर्ग ने भाजपा की हिंदू कट्टरपंथी राजनीति का समर्थन करने से इनकार कर दिया
- भाजपा जमीनी स्तर पर मजबूत संगठन बनाने में विफल रही. अधिकतर अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में भगवा पार्टी के लिए यह एक कठिन चुनौती रही है.
- बंगाली लोगों के एक बड़े वर्ग ने भाजपा को यह सोचकर नकार दिया कि यह उनकी संस्कृति को नुकसान पहुंचाएगी.
- भाजपा ममता बनर्जी जैसी नेता के सामने अपने नेतृत्व की ठोस रूपरेखा पेश करने में भी विफल रही
- कुछ लोग भाजपा की 2021 की हार के लिए उसके गुटीय संघर्षों को भी जिम्मेदार ठहराते हैं
2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने बंगाल से 12 सीटें जीतीं, जिससे विधानसभा सीटों पर भाजपा की बढ़त 90 सीटों पर हो गई. शमिक भट्टाचार्य, सुवेंदु अधिकारी और सुकांत मजूमदार जैसे नेताओं की अगुआई में BJP इस बार ‘इतिहास रचने' का दावा कर रही है.
कांग्रेस
कभी बंगाल की राजनीति में मजबूत स्तंभ रही कांग्रेस आज नेतृत्व संकट, संगठनात्मक कमजोरियों और बदलते राजनीतिक समीकरणों से जूझ रही है. 1998 में ममता बनर्जी के अलग होकर TMC बनाने के बाद से पार्टी का जनाधार लगातार सिमटता चला गया. 2016 तक, कांग्रेस संगठन उत्तर दिनाजपुर, मालदा और मुर्शिदाबाद जैसे जिलों के कुछ ही नेताओं तक सीमित था. चुनावों में कांग्रेस और वामपंथियों की स्थिति लगातार कमजोर होने के साथ, कांग्रेस मुख्यधारा से अलग हो गई.

2021 का चुनाव कांग्रेस के लिए अब तक के सबसे कठिन चुनावों में था. न नेतृत्व, न वित्तीय संसाधन, न जमीनी संगठन - परिणामस्वरूप पार्टी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर सकी. हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 4.68% वोट मिले और 11 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त दर्ज की. ईशा खान चौधरी पार्टी के इकलौते सांसद बने. लेकिन रणनीति और नेतृत्व स्पष्ट न होने से पार्टी अब भी पुनर्जीवन की राह तलाश रही है.
सीपीआई-एम (CPI-M)
एक समय 40 लाख सदस्यता वाली बंगाल की सबसे शक्तिशाली पार्टी CPI-M आज गंभीर अस्तित्व संकट से जूझ रही है. 2021 विधानसभा और 2024 लोकसभा, दोनों ही चुनावों में इसका खाता नहीं खुला. वोट शेयर सिर्फ 0.38% पर सिमट गया. पार्टी फिर से जमीन पर पकड़ मजबूत करने के लिए “बंगला बचाओ यात्रा” जैसी कैम्पेन चला रही है, जो उत्तर बंगाल से दक्षिण बंगाल तक आयोजित हुई, लेकिन संगठन कमजोर है और गठबंधन को लेकर भी आंतरिक मतभेद बने हुए हैं.

विधानसभा चुनावों से पहले अपने जनसंपर्क अभियान के तहत, लाल पार्टी का राज्यव्यापी अभियान "बांग्ला बचाओ यात्रा" 29 नवंबर को कूच बिहार के तुफानगंज से शुरू हुई और उत्तरी बंगाल के एक बड़े हिस्से को कवर करते हुए मालदा, मुर्शिदाबाद, नादिया, पूर्वी बर्धमान और हुगली से होते हुए दक्षिणी बंगाल पहुंची. 17 दिसंबर को उत्तरी 24 परगना के कमरहटी में रैली के साथ इसका समापन हुआ.
पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनावों में मुख्य प्रतिद्वंद्वी दल तृणमूल कांग्रेस और भाजपा हैं. वामपंथी दल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस समय, नेतृत्व का एक वर्ग एक बार फिर कांग्रेस के साथ गठबंधन का रास्ता अपनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इसमें भी उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
इंडियन सेकुलर फ्रंट (ISF)
2021 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले नौशाद सिद्दीकी के नेतृत्व में बनी इंडियन सेकुलर फ्रंट (ISF) पार्टी अब मुस्लिम युवाओं के बीच लोकप्रिय हो गई है. ISF को TMC के लिए बंगाल की धरती से उभरती एक चुनौती के रूप में देखा जा सकता है. फुरफुरा शरीफ के धर्मगुरु और राजनीतिज्ञ पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने 2021 में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) की स्थापना की थी.

उन्होंने इस पार्टी का गठन कोलकाता के सत्ता गलियारों में उपेक्षित महसूस करने वाले मुसलमानों, दलितों और गरीबों को राजनीति की सुर्खियों में लाने के उद्देश्य से किया. 2021 में उनकी पार्टी की मामूली शुरुआत को कई लोगों ने नजरअंदाज कर दिया, लेकिन भांगर की एक सीट ने उनकी ताकत का परिचय दिया. वे लोगों को एकजुट करने, प्रेरित करने और उन जगहों पर अपनी जड़ें जमाने में सक्षम थे, जहां टीएमसी को लगता था कि उनकी स्थिति मजबूत है. आईएसएफ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ सबसे मजबूत दावेदारों में से एक बनी हुई है.
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM)
असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत करने का फैसला किया है. एआईएमआईएम ने 2021 के विधानसभा चुनाव में बंगाल में अपना पहला कदम रखा था, लेकिन कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाई. पार्टी ने मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तर दिनाजपुर जिलों से सात उम्मीदवार उतारे थे, जो अल्पसंख्यक बहुल सीटें हैं - राज्य की 294 विधानसभा सीटों का एक छोटा सा हिस्सा. उन्होंने बंगाल में सदस्यता अभियान शुरू किया है. वे आगामी विधानसभा चुनाव में भी मालदा और मुर्शिदाबाद की सीटों से उम्मीदवार उतारना चाहते हैं.

हुमायूं कबीर की पार्टी
हाल ही में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा पार्टी नेतृत्व के साथ बार-बार होने वाले टकराव के बाद निलंबित किए गए विधायक हुमायूं कबीर ने अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से पहले अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला किया है. वह 22 दिसंबर को एक नई राजनीतिक पार्टी लॉन्च करेंगे. उनकी पार्टी बंगाल की 135 अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर चुनाव लड़ेगी. यह ऐसे समय हो रहा है जब असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) की पश्चिम बंगाल इकाई हुमायूं कबीर के साथ गठबंधन को लेकर आशावादी है.

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