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'घायल' अरावली को बचाने के लिए सरकार का बड़ा आदेश, दिल्ली से गुजरात तक नए खनन पट्टों पर रोक

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को पूरे अरावली क्षेत्र में अतिरिक्त क्षेत्रों/जोनों की पहचान करने का निर्देश दिया है.

'घायल' अरावली को बचाने के लिए सरकार का बड़ा आदेश, दिल्ली से गुजरात तक नए खनन पट्टों पर रोक
  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अरावली पर्वतमाला में नए खनन पट्टे देने पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश दिए हैं
  • भारतीय वानिकी अनुसंधान परिषद को अरावली क्षेत्र में प्रतिबंधित खनन क्षेत्रों की पहचान करने का आदेश मिला है
  • सुप्रीम कोर्ट ने अरावली क्षेत्र के 99 प्रतिशत हिस्से को खनन से पूरी तरह सुरक्षित रखने का निर्णय दिया है
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नई दिल्ली:

दिल्ली से गुजरात तक फैली संपूर्ण अरावली पर्वतमाला को अवैध खनन से बचाने और संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने राज्यों को अरावली में किसी भी नए खनन पट्टे के अनुदान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के निर्देश जारी किए हैं.

यह प्रतिबंध संपूर्ण अरावली भूभाग पर समान रूप से लागू होता है और इसका उद्देश्य पर्वतमाला की अखंडता को बनाए रखना है. इन निर्देशों का उद्देश्य गुजरात से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक फैली एक सतत भूवैज्ञानिक श्रृंखला के रूप में अरावली पर्वतमाला की रक्षा करना और सभी अनियमित खनन गतिविधियों को रोकना है.

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इसके अलावा, MoEF&CC ने भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को पूरे अरावली क्षेत्र में अतिरिक्त क्षेत्रों/जोनों की पहचान करने का निर्देश दिया है, जहां केंद्र द्वारा पहले से ही खनन के लिए प्रतिबंधित क्षेत्रों के अलावा, पारिस्थितिक, भूवैज्ञानिक और भूदृश्य स्तर के विचारों के आधार पर खनन प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.

  • केंद्र ने राज्यों को अरावली में नये खनन पट्टे देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया है
  • सरकार अरावली पारिस्थितिकी तंत्र के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है, जैव विविधता के संरक्षण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देती है
  • अरावली में हो रही खनन गतिविधियों को पर्यावरण की सुरक्षा के मद्देनजर सख्ती से नियंत्रित किया जाएगा

केंद्र द्वारा किया गया यह कार्य स्थानीय स्थलाकृति, पारिस्थितिकी और जैव विविधता को ध्यान में रखते हुए, पूरे अरावली क्षेत्र में खनन से संरक्षित और प्रतिबंधित क्षेत्रों के दायरे को और बढ़ाएगा.

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केंद्र ने यह भी निर्देश दिया है कि पहले से ही परिचालन में मौजूद खानों के लिए, संबंधित राज्य सरकारें सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप सभी पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करें. पर्यावरण संरक्षण और सतत खनन प्रथाओं के पालन को सुनिश्चित करने के लिए, चल रही खनन गतिविधियों को अतिरिक्त प्रतिबंधों के साथ सख्ती से विनियमित किया जाना है.

कहा गया है कि भारत सरकार अरावली पारिस्थितिकी तंत्र के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है, क्योंकि वह मरुस्थलीकरण को रोकने, जैव विविधता के संरक्षण, जलभंडारों के पुनर्भरण और क्षेत्र के लिए पर्यावरणीय सेवाओं में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानती है.

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सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अरावली क्या है. नए वैज्ञानिक नियमों के मुताबिक, अरावली के पूरे क्षेत्र में से सिर्फ 0.19% हिस्से पर ही खनन का विचार हो सकता है. बाकी 99% से ज्यादा हिस्सा पूरी तरह सुरक्षित रहेगा. यहां तक कि जो छोटी पहाड़ियां हैं, उन पर भी एक किमी का बफर जोन, पानी के स्रोतों की सुरक्षा और सख्त पर्यावरणीय शर्तें लागू होंगी.

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नई व्यवस्था ज्यादा पारदर्शी और वैज्ञानिक है. साथ ही, अब उपग्रह से ली गई तस्वीरों से लगातार निगरानी होगी, जिससे जमीन पर क्या हो रहा है, यह साफ दिख जाएगा.

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2025 की नई खनन नीति सब कुछ बदल देने वाली है. अब कोई भी मनमाना फैसला नहीं ले सकता. मास्टर प्लान में बदलाव के लिए सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी जरूरी है. हर तीन महीने पर स्वतंत्र ऑडिट होगा. उपग्रह हर हफ्ते नजर रखेगा. अगर कोई कंपनी नियम तोड़ेगी तो उसकी जमा राशि (बॉन्ड) जब्त कर ली जाएगी और उसे पहाड़ को फिर से हरा-भरा करना

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