नई दिल्ली: बिहार सरकार द्वारा जातिगत जनगणना कराने के फैसले पर रोक लगाने की मांग का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट 27 जनवरी को मामले पर सुनवाई करेगा. इस दौरान कोर्ट मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगा. इससे पहले पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो 20 जनवरी को इस मामले में सुनवाई करेगा.
बिहार में जातिगत जनगणना कराने के खिलाफ तीन याचिकाएं दाखिल की गई हैं. एक याचिका हिंदू सेना ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है. हिन्दू सेना ने अपनी याचिका में कहा है कि बिहार सरकार जातिगत जनगणना कराकर भारत की अखंडता एवं एकता को तोड़ना चाहती है. इस याचिका में बिहार में जातिगत जनगणना के लिए 6 जून को राज्य सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग की गई है.
इस मामले में पहली याचिका बिहार निवासी अखिलेश कुमार ने दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि बिहार राज्य की अधिसूचना और फैसला अवैध, मनमाना, तर्कहीन, असंवैधानिक और कानून के अधिकार के बिना है. भारत का संविधान वर्ण और जाति के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है. जाति संघर्ष और नस्लीय संघर्ष को खत्म करने के लिए राज्य संवैधानिक दायित्व के अधीन है. याचिका में कहा गया है कि कानून का सवाल ये भी है कि क्या भारत के संविधान ने राज्य सरकार को ये अधिकार दिया है कि वो जातीय आधार पर जनगणना कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट के सामने इस याचिका में सात सवाल उठाए गए हैं...
- बिहार सरकार जातिगत जनगणना कराने की कार्यवाही की जा रही है वह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है?
- क्या भारत का संविधान राज्य सरकार को जातिगत जनगणना करवाए जाने का अधिकार देता है?
- क्या 6 जून को बिहार सरकार के उप सचिव द्वारा जारी अधिसूचना जनगणना कानून 1948 के खिलाफ है?
- क्या कानून के अभाव में जाति जनगणना की अधिसूचना, राज्य को कानूनन अनुमति देता है?
- क्या राज्य सरकार का जातिगत जनगणना कराने का फैसला सभी राजनीतिक दलों द्वारा एकसमान निर्णय से लिया गया हैं?
- क्या बिहार जाति जनगणना के लिए राजनीतिक दलों का निर्णय सरकार पर बाध्यकारी है?
- क्या बिहार सरकार का 6 जून का नोटिफिकेशन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का अभिराम सिंह मामले में दिए गए फैसले के खिलाफ है?
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