रामलला की मूर्ति बनाने के लिए कौन से भाव की थी जरूरत? अरुण योगीराज के बड़े भाई ने NDTV को बताया

Ram Mandir: मूर्तिकार के बड़े भाई ने कहा कि उनके छोटे भाई अरुण योगीराज ने 6 महीने तक एक ही जगह पर ठहरकर रामलला की मूर्ति (Ayodhya Ramlala Idol) बनाने का काम पूरा किया है. इस मूर्ति को अयोध्या में ही बनाया गया है.

रामलला की मूर्ति बनाने के लिए कौन से भाव की थी जरूरत? अरुण योगीराज के बड़े भाई ने NDTV को बताया

Ayodhya Ramlala Idol: कैसे बनाई रामलला की मूर्ति, अरुण योगीराज के भाई ने बताया.

नई दिल्ली:

Ramlala Pran Pratishtha: अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए तैयारियां जोरों पर हैं. राम मंदिर में कौन सी मूर्ति स्थापित ( Arun Yogiraj) की जाएगी, ये साफ हो गया है. कृष्णशिला पर बनाई गई मूर्ति को गर्भग्रह में स्थापित करने के लिए चुना गया है. इस मूर्ति को कर्नाटक के मैसूर के रहने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज ने अपने भाव से सजाया और संवारा है. एनडीटीवी की टीम योगीराज अरुण की उस कार्यशाला में पहुंची, जहां वह मूर्तियां बनाते हैं. 

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रामलला की मूर्ति बहुत सुंदर-योगीराज के भाई 

अरुण योगीराज के बड़े भाई और शिल्पकार सूर्य प्रकाश ने अपने भाई की इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए कहा कि एक आर्टिस्ट के लिए इससे शुभ कुछ हो ही नहीं सकता. उनके छोटे भाई ने इतना बढ़िया काम किया है. उन्होंने कहा कि रामलला की उस मूर्ति को उन्होंने भी देखा है, जो गर्भग्रह के लिए सलेक्ट की गई है, लेकिन प्रोटोकॉल है. उन्होंने कहा कि रामलला की मूर्ति बहुत ही सुंदर है. अरुण योगीराज के बड़े भाई ने कहा कि उनके छोटे भाई ने 6 महीने तक एक ही जगह पर ठहरकर रामलला की मूर्ति बनाने का काम पूरा किया है. इस मूर्ति को अयोध्या में ही बनाया गया, लेकिन खास बात यह है कि इसका पत्थर मैसूर से गया था, जो यहां के लोगों के लिए गर्व की बात है.

"रामलला की मूर्ति बनाने पर गर्व"

उन्होंने कहा कि उनकी जानकारी के मुताबिक18 से 20 लोगों की टीम ने रामलला की मूर्ति बनाने में अरुण योगीराज की मदद की. कई करीबी रिश्तेदारों ने इस काम में उनका साथ दिया. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही गर्व की बात है कि रामलला की प्रतिमा बनाने  का काम उनको सौंपा गया. मूर्ति पूरी हो गई और सलेक्ट भी हो गई है, इस बात से वह बहुत ही खुश हैं. 

"100 साल से ज्यादा समय से मूर्ति बना रहा परिवार"

योगीराज अरुण के एक प्रोफेसर दोस्त डॉक्टर नवीन कुमार ने दोस्त की इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर की. उन्होंने कहा कि अरुण का परिवार मैसूर में पिछले 100 सालों से ज्यादा समय से इस काम को बहुत ही मेहनत के साथ कर रहा है. करीब 4 से 5 जनरेशन इस काम तो कर चुकी हैं. उन्होंने अब तक बहुत सी मूर्तियां बनाई हैं. लेकिन यह क्षण उनके लिए बहुत ही खुशीभरा है. 

अरुण योगीराज के पड़ोसी ने कहा कि उन्होंने अब तक बहुत सी खूबसूरत मूर्तियां बनाई हैं. उनके दादा जी की बनाई गई मूर्तियां मैसूर पैलेस में लगी हैं. दिल्ली के इंडिया गेट पर बनाई गई सुभाष चंद्र बोस की मू्ति भी अरुण योगीराज ने ही बनाई थी. केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की मूर्ति भी योगीराज ने ही बनाई है.

कैसे बनाई जाती है मूर्ति? योगीराज के भाई ने बताया

योगीराज के बड़े भाई ने बताया कि जो काम वह करते हैं, वह बहुत ही अलग है. दादाजी और पिताजी ने जिस तरह से काम सिखाया था, उसी तरह से वह मूर्ति बनाने का काम करते आ रहे हैं. उन्होने बताया कि मूर्ति बनाने से पहले मन में ये क्लियर होना चाहिए कि हमें करना क्या है. हम पत्थर पर क्या कर सकता हैं. इसके लिए कि, तरह का पत्थर चुनना है और कौन से टूल्स का इस्तेमाल इसके लिए करना है. उन्होंने कहा कि मर्ति बनाने के लिए ड्रॉइंग का अभ्यास बहुत ही अच्छा होना चाहिए. मूर्ति बनाने के लिए जरूरी चीज अनुभव होना चाहिए कि भगवान ऐसे ही खड़े हैं. जैसा भावनात्मक चित्र मन में आता है, वैसी ही मूर्ति बनकर तैयार होती है. 

"मूर्ति बनाने के लिए श्रद्धा की जरूरत"

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मूर्तिकार के बड़े भाई ने बताया कि एमबीए की डिग्री लेने के बाद भी अरुण योगीराज को महसूस हुआ कि वह भी यही काम करना चाहते हैं. उनके अंदर यह चाह थी कि वह दुनिया को कुछ अलग मूर्ति बनाकर दिखाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इस काम को करने के लिए बहुत ही श्रद्धा होनी चाहिए, जो कि उनके भाई अरुण योगीराज के पास है. जिसके पास श्रद्धा होती है वही ऐसी मूर्ति बना सकता है. ये बात वह गर्व से कह सकते हैं और सभी ये देख भी रहे हैं.
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