शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री बनकर इतिहास रचने को तैयार
देश दम साधकर एक और भारतीय नागरिक के अंतरिक्ष में उड़ान भरने का इंतज़ार कर रहा है. हालांकि ये इंतज़ार आज दो दिन लंबा हो गया. Axiom 4 मिशन के तहत 8 जून की अंतरिक्षण उड़ान 10 जून हो गई है. इसकी वजह क्या रही ये अभी साफ़ नहीं है. इस बीच भारतीय वायुसेना के 39 साल के अधिकारी ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में एक नया अध्याय लिखने को तैयार हैं. वो सुनहरा अध्याय जिसका पहला भाग क़रीब 41 पहले भारतीय वायुसेना के एक और अधिकारी तत्कालीन स्क्वॉड्रन लीडर राकेश शर्मा ने लिखा था. जब वो रूस के सोयूज़-T11 स्पेसक्राफ्ट में सैल्यूत 7 ऑर्बिटल स्टेशन गए थे. उन दिनों पूरे देश का ध्यान अंतरिक्ष में राकेश शर्मा पर लगा हुआ था.

कुछ वैसा ही उत्साह अब ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष उड़ान को लेकर दिख रहा है. इससे जुड़ा मिशन Axiom 4, जिसकी उड़ान के लिए अमेरिका के फ़्लोरिडा में कैनेडी स्पेस सेंटर में तैयारियां अंतिम चरणों में हैं. आठ जून को इलॉन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स का ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट अपने सबसे भरोसेमंद फॉल्कन 9 रॉकेट के ज़रिए अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरेगा. ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट के मिशन पायलट होंगे. उनके साथ तीन और अंतरिक्षयात्री इस उड़ान में साथ होंगे. लक्ष्य होगा धरती से क़रीब 400 किलोमीटर ऊंचाई पर उड़ रहे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर पहुंचना. जहां अगले दो हफ़्ते ये टीम कई तरह के वैज्ञानिक प्रयोग करेगी. अंतिम तैयारियों के तहत ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अपनी टीम समेत कैनेडी स्पेस सेंटर में इस समय क्वॉरंटीन में हैं. इस पूरे मिशन का संचालन नौ साल पुरानी एक कंपनी Axiom Space कर रही है, जो वाणिज्यिक अंतरिक्ष उड़ानों के लिए बनाई गई है.
भारत के लिहाज़ से ये उड़ान इसलिए काफ़ी अहम है क्योंकि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन - इसरो अपने दम पर अंतरिक्ष में मानव को भेजने की तैयारियों के अंतिम दौर में है. इसके तहत गगनयान मिशन भेजा जाना है. और उस मिशन के लिए तैयार हो रहे एक अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला को Axiom Space ने अपने मिशन के लिए चुना है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA इस मिशन को पूरी मदद दे रही है.
शुभांशु शुक्ला इतिहास रचने को तैयार
शुभांशु शुक्ला उन चार एयरफोर्स अधिकारियों में से एक हैं जिन्हें गगनयान मिशन के लिए तैयार किया गया और इसके तहत रूस के मॉस्को में यूरी गागारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में एक साल के कठिन प्रशिक्षण के लिए भेजा गया. बाकी तीन अधिकारी हैं ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन और ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालाकृष्णन नायर. 27 फरवरी,2024 को तिरुवनंतपुरम के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गगनयान मिशन के लिए चुने गए इन चारों अधिकारियों के नाम का एलान किया था. ख़ास बात है के ये सभी वायुसेना के टेस्ट पायलट रहे हैं और उन्हें कई किस्म के लड़ाकू विमानों और अन्य ट्रांसपोर्ट विमानों की उड़ान का भी लंबा अनुभव है. टेस्ट पायलट की ट्रेनिंग और ज़िम्मेदारियां काफ़ी ख़ास होती हैं जो उन्हें अंतरिक्ष यात्राओं की चुनौतियों के लिए तैयार करती हैं. 1984 में अंतरिक्ष में गए भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा भी एक टेस्ट पायलट थे. एक ख़ास बात ये है कि गगनयान मिशन के लिए चुने गए ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालाकृष्णन नायर ने भी Axiom 4 मिशन के लिए एडवांस्ड ट्रेनिंग ली है और वो इस मिशन में एक बैकअप के दौर पर तैयार हैं.

- इसरो के चेयरमैन डॉ वी नारायणन के मुताबिक इस मिशन से एक बेशक़ीमती अनुभव मिलेगा जो गगनयान मिशन के भी काम आएगा.
- ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुुक्ला जून 2006 में भारतीय वायुसेना की फाइटर विंग में कमीशन हुए
- एक फाइटर पायलट और टेस्ट पायलट के तौर पर उनके पास 2000 घंटे से ज़्यादा की उड़ान का अनुभव है.
- सुखोई 30MKI, मिग 29, मिग 21, जैगुआर, हॉक, डोर्नियर और AN-32 जैसे हर प्रकार के विमान उड़ाने का उन्हें अच्छा ख़ासा अनुभव है.

Axiom 4 मिशन के तहत वो ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में उड़ान भरेंगे जिसमें सात यात्री बैठ सकते हैं. आपको याद होगा कि भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स को पिछले साल इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक ले जाने वाले बोइंग स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट में जब दिक्कत आई थी तो उन्हें इस साल 18 मार्च को ड्रैगन कैप्सूल में ही वापस लाया गया था.
किसी भी स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए एक रॉकेट का इस्तेमाल किया जाता है. ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट को जिस रॉकेट के ज़रिए अंतरिक्ष में छोड़ा जाएगा वो SpaceX का सबसे विश्वसनीय रॉकेट Falcon 9 है. ये एक टू स्टेज रॉकेट है जो reusable है यानी इसे कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है. स्पेसक्राफ्ट को धरती की कक्षा में सुरक्षित छोड़ने के बाद ये वापस लौट आता है.
- 2010 में सबसे पहले इस्तेमाल किए गए Falcon 9 रॉकेट की सफलता दर 99.4% है.
- अब तक 481 उड़ानों में से 478 कामयाब रही हैं और सिर्फ़ तीन उड़ान ही नाकाम रही हैं.
- ये रॉकेट क़रीब 70 मीटर ऊंचा है, लगभग उतना ही जितना दिल्ली का क़ुतुब मीनार.
- इसका वज़न है 549 टन.
- अब तक 10 उड़ानों के ज़रिये ये 26 अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है.
- टू स्टेज रॉकेट Falcon 9 में क्रायोजैनिक इंजन लगा है जो रॉकेट ग्रेड कैरोसीन पर चलता है.
इस तरह ये दुनिया का पहला ऑर्बिटल क्लास रीयूज़ेबल रॉकेट है. फिर से इस्तेमाल किए जाने की क्षमता के कारण अंतरिक्ष तक जाने की लागत कम हो जाती है क्योंकि रॉकेट के सबसे कीमती हिस्से बार-बार इस्तेमाल किए जा सकते हैं.
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